वाराणसी । आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, कल्लीपुर, वाराणसी द्वारा 10 जुलाई से 30 जुलाई, 2025 तक केंचुआ खाद उत्पादन तकनिकी विषय पर 21 दिवसीय व्यवसायिक प्रशिक्षण कराया गया। केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, ड़ॉ. नवीन कुमार सिंह ने बताया कि केंचुआ खाद उत्पादन तकनीकी विषय का प्रशिक्षण प्राप्त करके बेरोजगार नवयुवक रोजगार का साधन बना सकते है। पशुओं से प्राप्त होने वाली गोबर की खाद की तुलना में वर्मी कम्पोस्ट खाद में 5 गुना नाइट्रोजन, 7 गुना फोस्फोरास, 11 गुना पोटाश, 2 गुना मैग्नेशियम, 2 गुना कैल्शियम तथा 7 गुना एक्टिनोमाईसिटीज होता है। केन्द्र के सस्य वैज्ञानिक डॉ. अमितेश कुमार सिंह के कहा कि केंचुआ के द्वारा जैविक पदार्थों के खाने के बाद उसके पाचन-तंत्र से गुजरने के बाद जो उपशिष्ट पदार्थ मल के रूप में बाहर निकलता है उसे वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद कहते हैं। यह हल्का काला, दानेदार या देखने में चायपत्ती के जैसा होता है यह फसलों के लिए काफी लाभकारी होता है। इस खाद में मुख्य पोषक तत्व के अतिरिक्त दूसरे सूक्ष्म पोषक तत्व तथा कुछ हारमोंस एवं एंजाइमस भी पाए जाते हैं जो पौधों की वृद्धि के लिए लाभदायक होते हैं। केंचुआ द्वारा तैयार खाद में पोषक तत्वों की मात्रा साधारण कम्पोस्ट की अपेक्षा अधिक होती है।
भूमि की उर्वरता में वृद्धि होती है।
फसलों की ऊपज में वृद्धि होती है। इस खाद का प्रयोग मुख्य रुप से फूल-पौधों एवं किचेन गार्डेन में किया जा सकत है जिससे फूल एवं फल के आकार में वृद्धि होती है। वर्मी कम्पोस्ट खाद के प्रयोग से भूमि वायु का संचार सुचारू रूप से होता है। यह खाद भूमि संरचना एवं भौतिक दशा सुधारने में सहायक होता है। इसके प्रयोग से भूमि की दशा एवं स्वास्थ्य में सुधार होता है। कार्बिनक पदार्थों का विघटन करने वाले एंजाइम से भी इसमें काफी मात्रा में रहते है जो वर्मी कम्पोस्ट के एक बार प्रयोग करने के बाद लंबे समय तक भूमि में सक्रिय रहते हैं।
इसके प्रयोग से मिट्टी की भौतिक संरचना में परिवर्तन होता है तथा उसकी जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है। इसके प्रयोग से फसलों की उपज में 15-20% तक की वृद्धि होती है। इसके किसानों के द्वारा बहुत कम पूंजी से अपने घरों के आस-पास बेकार पड़ी भूमि पर तैयार करके अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है। केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. श्रीप्रकाश सिंह नव बताया कि वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाते समय यह ध्यान रखें कि नमी की कमी न हो। नमी बनाये रखने के लिए आवश्कतानुसार पानी का छिड़काव् करें। खाद बनाते समय यह ध्यान रखें कि उनमें ऐसे पदार्थ (सामग्री) का प्रयोग नहीं करे जिसका अपघटन (सड़न क्रिया) नहीं होता है या जो पदार्थ सड़ता नहीं है जैसे– प्लास्टिक, लोहा, कांच इत्यादि का प्रयोग नहीं करें। कम्पोस्ट बेड (ढेर) को ढंककर रखें। वर्मी कम्पोस्ट बेड का तापमान 35 से.ग्रे. से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
चींटी एवं मेढ़क आदि से केंचुओं को बचाकर रखें। ये इनके शत्रु होते हैं कीटनाशक दवाओं का प्रयोग नहीं करें। खाद बनाने के सामग्री में किसी भी तरह रसायनिक उर्वरक नहीं मिलाएं। कम्पोस्ट बेड के आस-पास पानी नहीं लगने दें। केन्द्र के उद्यान वैज्ञानिक डॉ. मनीष पाण्डेय ने उद्यानिक फसलों में वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग तथा महत्व बताया। कृषि प्रसार वैज्ञानिक डॉ राहुल कुमार सिंह ने केंचुआ खाद की उत्पादन और उसका बाजारीकरण कैसे करके अधिक से अधिक उसका मूल्य प्राप्त कर सकें। गृह वैज्ञानिक डॉ. प्रतिक्षा सिंह ने प्रशिक्षण में केंचुआ उत्पादन अपने विचार रखें। इस प्रशिक्षण में केन्द्र के पशु वैज्ञानिक श्रीमती पूजा सिंह ने गोबर से कैसे केंचुआ खाद एवं पालन कैसे किया जाता है उसको व्यवहारिक रूप से करके दिखाया गया साथ साथ कुल 25 प्रशिक्षणार्थी उपस्थित रहें।

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