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रस- रंग -भंग-व्यंग्य : चले थे मनाने…..”होली”

रस- रंग -भंग-व्यंग्य : चले थे मनाने…..”होली”

      - सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"            किस्सा कुछ पुराना है। कुछ सालों पूर्व की घटना है। होली का त्योहार आने वाला था मेरा मित्र प्रदीप उपाध्याय जो पेण्ड्रा तहसील में जटगा-पसान के रास्ते के मध्य में पड़ने वाला एक छोटा सा गांव है बांधापारा, जो घनघोर जगलों (फिलहाल तो जितने जंगल बचे हैं उनमें तो यहां के जंगल अभी भी सुरक्षित बचे हुए हैं। ) के बीच मात्र बीस तीस घरों का छोटा सा गांव है।              वहीं वह प्राध्यापक के पद पर पदस्थ था। एक दो दिनों…
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