रांची। चंद्रगुप्त कोल परियोजना को लेकर कुछ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों को लेकर सीसीएल ने स्थिति स्पष्ट की है। जनसंपर्क अधिकारी के अनुसार, हजारीबाग जिले के केरेडारी अंचल में परियोजना से संबंधित 417 एकड़ वन भूमि दस्तावेजों की हेराफेरी और अरबों रुपये के मुआवजा घोटाले की खबरें पूरी तरह से भ्रामक हैं।
उन्होंने बताया कि चंद्रगुप्त परियोजना के लिए कोयला मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा कुल 1495 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया गया है, जिसमें से 699.38 हेक्टेयर वन भूमि का अपयोजन सक्षम प्राधिकारियों की अनुशंसा एवं केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति के बाद किया गया है। विवादित 417 एकड़ भूमि इस स्वीकृत वन भूमि में शामिल नहीं है।
झारखंड सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग और हजारीबाग जिला प्रशासन द्वारा संबंधित प्रपत्रों में स्पष्ट रूप से भूमि की स्थिति का उल्लेख किया गया है। परियोजना से संबंधित सभी दस्तावेज और सूचनाएं विभागीय पोर्टल पर उपलब्ध हैं।
खबरों में जिस 25 लाख रुपये प्रति एकड़ मुआवजे और अरबों के घोटाले की बात कही गई है, वह पूरी तरह तथ्यहीन है। सीसीएल ने स्पष्ट किया है कि उक्त भूमि के बदले अब तक किसी भी व्यक्ति या राज्य सरकार को कोई मुआवजा नहीं दिया गया है। भूमि का सत्यापन पूर्ण होने से पहले कोई भुगतान नहीं किया जा सकता।
सीसीएल ने यह भी जानकारी दी कि इस परियोजना के लिए सुशी इन्फ्रा एंड माइनिंग लिमिटेड को एमडीओ के रूप में नियुक्त किया गया है, जिसकी नियुक्ति के लिए पर्यावरणीय एवं वन स्वीकृति (EC व FC) की बाध्यता नहीं होती।
सीसीएल के अनुसार, उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि मीडिया में प्रकाशित समाचार भ्रम फैलाने वाले हैं और वास्तविकता से परे हैं।

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