गाज़ीपुर के चंवर गाँव में जीरो-टिलेज गेहूँ की जीरो टिलेज विधि पर सार्वजनिक कटाई और जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन

 वाराणसी। अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान- दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क) द्वारा मरदह ब्लॉक के चंवर गाँव (गाजीपुर, उत्तर प्रदेश) में जीरो-टिलेज गेहूँ पर प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के द्वारा किसानों को धान की सीधी बुवाई और जीरो-टिलेज गेहूँ की  तकनीकों के बारे में जानकारी प्रदान की गई।

इस कार्यक्रम में 100 से अधिक किसानों ने भाग लिया। साथ ही यूपीडास्प, कृषि विभाग-उत्तर प्रदेश, आईसीएआर-अटारी कानपुर, कृषि विज्ञान केंद्र  और अन्य संगठनों के विशेषज्ञ भी उपस्थित रहे। किसानों के सामने गेहूँ की कटाई कराई गयी जिसमे गेहूँ की पैदावार 5.6 टन/हेक्टेयर रही । जीरो टिलेज तकनीक के द्वारा  किसानों को कम लागत, बेहतर उत्पादन, मिट्टी की सेहत में सुधार और जलवायु अनुकूल खेती जैसी विशेषताओं का भी लाभ मिलता है। 

कार्यक्रम की शुरुआत में आइसार्क के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह ने सभी अतिथियों और किसानों का स्वागत करते हुए कहा, “हम उत्तर प्रदेश में टिकाऊ और मशीनीकृत खेती को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसमें डायरेक्ट सीडेड राइस (डीएसआर) और ज़ीरो टिलेज गेहूँ (जेडटीडब्लू) जैसी तकनीकों पर ज़ोर है। हमारा ध्यान कार्बन क्रेडिट, हरित सर्कुलर अर्थव्यवस्था और कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के माध्यम से मशीनीकरण को मजबूत करने पर है। आज का ज़ीरो टिल गेहूँ का  प्रक्षेत्र दिवस कार्यक्रम हमारे नवाचार-आधारित कृषि के संकल्प को दर्शाता है, जिसमें आइसार्क, वाराणसी एक प्रमुख केंद्र के रूप में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।”

इरी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. आर.के. मलिक ने बताया “धान की सीधी बुवाई और जीरो टिल विधि से गेहूँ की बुवाई अपनाने से किसानों की लागत कम होंगी तथा साथ ही गेहूं बुवाई अगेती की जा सकती है, अगेती बुवाई होने पर गेहूं की पैदावार बढ़ती है।

आईसीएआर-अटारी, कानपुर के निदेशक डॉ. शांतनु कुमार दुबे ने अपने संबोधन में कहा, “समय पर बुआई, उन्नत किस्में और मशीनीकरण – इन तीनों के मेल से धान की सीधी बुवाई और जीरो टिलेज गेंहू जैसी तकनीकों को अपनाकर हम कृषि में बदलाव ला सकते हैं।”

गाज़ीपुर के कृषि उपनिदेशक (कृषि विभाग) डॉ. अतिंद्र सिंह ने कहा, “आज की कटाई से यह बात प्रमाणित होती है कि इस जनपद मे भी किसान नई तकनीक अपना कर अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। पराली जलाने की समस्या को भी मशीनों और समयबद्ध खेती से हल किया जा सकता है।”

यूपीडास्प, कृषि विभाग-उत्तर प्रदेश के तकनीकी समन्वयक डॉ. जय प्रकाश ने बताया कि पूर्वांचल में उत्तर प्रदेश सरकार एवं वर्ल्ड बैंक के समन्वय से 6 वर्षीय यूपीएग्रिस नामक एक प्रोजेक्ट शुरू हो रहा है इस प्रोजेक्ट के माध्यम से धान की सीधी बुवाई और जीरो टिल विधि से गेहूँ की बुवाई पर खास ध्यान दिया जाएगा, जिससे किसानों को खेती में कम लागत होगी, बेहतर मुनाफा, उन्नत तकनीक, समय पर मौसम जानकारी, मशीनरी और बेहतर विपणन के साधन मिलेंगे।

इस अवसर पर केवीके गाज़ीपुर के हेड – डॉ. वी के. सिंह व जौनपुर केवीके के हेड और विशेषज्ञ भी उपस्थित थे। आइसार्क के वैज्ञानिक डॉ. विक्रम पाटिल ने बताया कि गेंहूँ की बुआई देर से करने पर गेहूँ के उत्पादन में कमी आती है। उन्होंने अवशेष प्रबंधन, लागत कम करने की रणनीति पर ज़ोर दिया। उन्होंने यह भी साझा किया कि पिछले खऱीफ सीजन में इसी खेत के में धान की सीधी बुवाई की पैदावार 6.5 टन/हेक्टेयर और आज की जीरो टिलेज गेहूँ की पैदावार 5.6 टन/हेक्टेयर रही – यानि कुल मिलाकर धान -गेहूँ प्रणाली की उत्पादकता 12.1 टन/हेक्टेयर रही।

प्रगतिशील किसान अमरजीत सिंह ने अपने खेत पर जीरो-टिलेज गेहूँ की खेती का अनुभव साझा किया और बताया कि इससे लागत कम हुई और काम में आसानी भी आई। गेहूँ की कटाई उनके खेत पर हुई, जिससे अन्य किसानों ने जीरो टिल गेहूँ की व तकनीक को करीब से देखा। इन्होंने पहले अपने उसी खेत मे धान की सीधी बुवाई तकनीक से खेती करी थी, जिससे वह बेहद खुश थें।

कार्यक्रम का समापन यूपीडास्प, कृषि विभाग-उत्तर प्रदेश के कृषि विशेषज्ञ डॉ. वी.पी. सिंह के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।उन्होंने कहा, “यह कार्यक्रम किसानों को टिकाऊ खेती और नवाचारों की ओर प्रेरित करने की दिशा में बड़ा कदम है।” उन्होंने किसानों से अपील की वह अपने खेती से जुड़े खर्चों का और खेती से जुड़े आय का विवरण रखें।यह आयोजन आइसार्क की ऑन-फार्म डेमोंस्ट्रेशन श्रृंखला एवं क्षमता विकास का एक हिस्सा था जिसके जरिये किसानों को टिकाऊ कृषि तकनीकों से जोड़ना तथा खेत स्तर पर प्रशिक्षण व जागरूकता के माध्यम से उनकी क्षमता सुदृढ़ करने का प्रयास किया जाता है।

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