उद्गार की विशेष काव्यगोष्ठी ‘काव्यदीपांजलि’ में कवियों ने बिखेरा साहित्यिक प्रकाश

“मोहब्बत से दिन बिता ले, मोहब्बत से रात कर, मोहब्बत से होठ खोल, मोहब्बत से बात कर…” —‘कुण्ठित’

वाराणसी। सरसौली, भोजूबीर स्थित स्याही प्रकाशन के ‘उद्गार सभागार’ में ‘उद्गार’ संस्था द्वारा 128वीं विशेष काव्यगोष्ठी ‘काव्यदीपांजलि’ का भव्य आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री नंदलाल राजभर ‘नन्दू’ ने की, जबकि कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एन. बी. सिंह रहे। मंचासीन गणमान्य अतिथियों में ‘उद्गार’ के संस्थापक पंडित छतिश द्विवेदी ‘कुण्ठित’ तथा संस्था के वर्तमान अध्यक्ष डा. लियाकत अली ‘जलज’ शामिल रहे।

कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। तत्पश्चात सरस्वती वंदना के साथ काव्यपाठ आरम्भ हुआ। गोष्ठी के अध्यक्ष नंदलाल राजभर ‘नन्दू’ का जन्मदिवस भी समारोहपूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर उन्हें अंगवस्त्र एवं दीपोपहार भेंट कर सम्मानित किया गया।

काव्यपाठ के क्रम में कवि रामनरेश पाल ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर वातावरण को भावनात्मक बनाया। कवि जी. एल. पटेल ‘अयन’ ने कविता “एक विनती सुनो इस दीवाली की शाम”खलील अहमद ‘राही’ ने “फिर आयी दीवाली दीपों की एक बारात लिये” और डा. लियाकत अली ‘जलज’ ने अपनी रचना “हो नहीं सकती सुरक्षा अब कंटीले तार से” सुनाकर खूब वाहवाही प्राप्त की।
वहीं कवि सुनील कुमार सेठ की कविता “कितने राम न जाने अबकी घर को आये” ने भी उपस्थित जनों की सराहना पाई।

गोष्ठी में काव्यपाठ करने वाले प्रमुख कवियों में अलियार प्रधान (चन्दौली)वृद्ध कवि शिवदास (मिर्जापुर)बुद्धदेव तिवारी (वाराणसी)कवयित्री विदुषी सहानाडा. प्रकाशानंदडा. जगदीश नारायण गुप्ताआनंद पालजयप्रकाश मिश्रमुनीन्द्र पाण्डेयडा. अनिल सिन्हा ‘बहुमुखी’, तथा आशिक बनारसी आदि ने अपनी-अपनी रचनाओं से गोष्ठी को गरिमामय बनाया।

गोष्ठी के समापन पर ‘उद्गार’ के संस्थापक पंडित छतिश द्विवेदी ‘कुण्ठित’ ने दीप पर्व दीपावली की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ दीं और अपनी भावनाएँ इन पंक्तियों के माध्यम से व्यक्त कीं—

“मोहब्बत से दिन बिता ले, मोहब्बत से रात कर,
मोहब्बत से होठ खोल, मोहब्बत से बात कर…” —‘कुण्ठित’

उन्होंने कहा कि “दीपोत्सव केवल दीपक जलाने का पर्व नहीं, बल्कि हृदय में प्रेम, प्रकाश और सहृदयता जगाने का अवसर है।”
कार्यक्रम का संचालन प्रभावशाली ढंग से कवि सुनील कुमार सेठ ने किया। पूरा सभागार कविताओं की गूंज और तालियों की गड़गड़ाहट से आलोकित रहा।

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