नैतिक वकालत महात्मा गांधी की ‘कानून और न्याय’ की संकल्पना का आधार -कुलपति प्रो. आर. वेंकट राव

रायपुर/ हिदायतुल्लाह नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (एचएनएलयू ), रायपुर ने 4वां महात्मा गांधी स्मृति व्याख्यान 30 जनवरी 2025 को शहीद दिवस के अवसर पर आयोजित किया। यह व्याख्यान, जिसका मुख्य विषय “कानून और न्याय पर गांधी के विचारों की शाश्वत प्रासंगिकता” रहा , प्रो. (डॉ.) आर. वेंकट रावकुलपति, IIULER गोवा एवं डिस्टिंगुइश्ड जूरिस्ट प्रोफेसर , एचएनएलयू  द्वारा दिया गया।

गांधी की अहिंसा और सत्याग्रह की प्रासंगिकता

एचएनएलयू के कुलपति प्रो. वी.सी. विवेकानंदन ने अपने प्रारंभिक संबोधन में गांधी के अहिंसा और सत्याग्रह के दर्शन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि ये सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उन्होंने प्रो. आर. वेंकट राव का परिचय देते हुए कहा कि वे इस स्मृति व्याख्यान को प्रस्तुत करने के लिए सर्वथा उपयुक्त वक्ता हैं।

गांधी के नैतिक कानून और न्याय पर विचार

अपने व्याख्यान में प्रो. वेंकट राव ने बताया कि महात्मा गांधी का नैतिक कानून, न्याय और समाज में कानून की भूमिका पर गहरा प्रभाव था। उन्होंने सत्य, अहिंसा और मानव गरिमा के उनके शाश्वत सिद्धांतों को रेखांकित किया।

प्रो. राव ने कहा कि गांधी केवल एक राजनीतिक नेता ही नहीं, बल्कि एक महान विधि विचारक भी थे, जिन्होंने नैतिक रूप से जागरूक कानूनी व्यवसाय का समर्थन किया। गांधी का विधिक दर्शन इस सिद्धांत पर आधारित था कि न्याय सत्य और सामाजिक कल्याण से जुड़ा होना चाहिए

उन्होंने गांधीवादी दृष्टिकोण को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया:

●     नैतिक वकालत जिसमें नैतिक मूल्यों को तकनीकी कानूनी प्रक्रियाओं से अधिक महत्व दिया जाता है।

●     मुकदमेबाजी के बजाय सुलह को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

●     व्यक्तिगत लाभ के बजाय समाज की सेवा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

गांधी के औद्योगीकरण और शहरीकरण पर विचार

प्रो. राव ने गांधी द्वारा अनियंत्रित औद्योगीकरण और शहरीकरण की आलोचनाविकेन्द्रीकृत शासन की वकालत, और यह विचार कि वकीलों को संघर्ष बढ़ाने के बजाय विवादों के समाधान पर कार्य करना चाहिए, पर प्रकाश डाला।

उन्होंने बताया कि गांधी का यह विचार कि वकालत का उद्देश्य व्यक्तिगत संपत्ति अर्जन न होकर समाज सेवा होना चाहिए, आज भी अत्यंत प्रासंगिक है

सत्य और न्यायिक प्रक्रियाओं में गांधी का योगदान

प्रो. राव ने यह भी बताया कि गांधी न्यायिक प्रक्रिया में सत्य को सर्वोच्च मानते थे। उन्होंने कभी भी केवल मुकदमा जीतने के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत नहीं किया। उन्होंने विवाद समाधान के लिए मध्यस्थता और समझौते को प्राथमिकता देने की बात कही, जो कि आधुनिक विधिक सुधारों के लिए एक अनुकरणीय मॉडल हो सकता है।

एचएनएलयू में व्याख्यान एवं पत्रिका का विमोचन

इस कार्यक्रम की स्वागत भाषण प्रो. (डॉ.) योगेंद्र श्रीवास्तव, डीन, पीजी स्टडीज ने दिया, जबकि डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव, रजिस्ट्रार (प्र.) ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन एचएनएलयू के अंतिम वर्ष के छात्र श्री विनीत बछवानी द्वारा किया गया।

कार्यक्रम के दौरान एचएनएलयू जर्नल ऑफ़ लॉ एन्ड  सोशल साइंसेस – वॉल्यूम X – इशू II का विमोचन भी माननीय अतिथियों द्वारा किया गया।

महात्मा गांधी स्मृति व्याख्यान की परंपरा

4वां महात्मा गांधी स्मृति व्याख्यान, एचएनएलयू द्वारा 2022 में आरंभ की गई वार्षिक परंपरा का हिस्सा है। इस व्याख्यान श्रृंखला का उद्देश्य राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करना और भावी नेताओं को सुशासन एवं नैतिक नेतृत्व के सिद्धांतों से प्रेरित करना है। एचएनएलयू इस श्रृंखला के माध्यम से गांधी के विचारों को कानूनी शिक्षा एवं सामाजिक न्याय में लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है

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