वाराणसी। भारत की आगम परम्परा का शाश्वत एवं जाग्रत स्वरूप है काशी। यहाँ की संस्कृति में शाश्वत भारतीय ज्ञान परम्परा को सहेजने हेतु प्रतिबद्ध इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के क्षेत्रीय केन्द्र, वाराणसी द्वारा विषय ‘भारत की आगम परम्परा’ पर आधारित द्विदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के अन्तिम दिवस का संचालन 28 मार्च, 2025 को कला केन्द्र के सभागार में प्रथम सत्र का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. केदार नाथ शर्मा थे। इस सत्र में जम्मू से प्रो करतार चंद शर्मा ने पवनविजय स्वरोदय के महत्त्वपूर्ण व्याख्याओं को तन्त्रग्रन्थों से प्रतिपादित किया, नालन्दा डॉ. प्रांशु समदर्शी ने तिब्बत में बौद्ध तंत्र का वर्गीकरण एक ऐतिहासिक विश्लेषण प्रस्तुत किया। इसके उपरान्त नेपाल देश के विशिष्ट विद्वान् एवं सत्राध्यक्ष प्रो. केदारनाथ शर्मा द्वारा काश्मीर की स्रोत परम्परा पर संभाषण किया गया।
इस सारस्वत दिवस के द्वितीय सत्र के अध्यक्ष जैनागम के उद्भट विद्वान् प्रो. कमलेश कुमार जैन ने की। प्रो. जैन ने जैनधर्म में उपदिष्ट तन्त्र-मन्त्र विधानों को विशिष्ट रूप में व्याख्यायित। उसके उपरान्त पार्श्वनाथ विघापीठ के प्रो. दीनानाथ शर्मा ने अर्धमागधी आगमसाहित्य, क्षेत्रीय केन्द्र के निदेशक डॉ अभिजित् दीक्षित ने शाक्तपरम्परा को ललिता सहस्रनाम से व्याख्यायित किया तथा डॉ. के.टी.वी राघवन ‘पांचरात्र के सन्दर्भ में अपने शोध आधारित व्याख्यान दिये।

अन्तिम शैक्षणिक सत्र के अध्यक्ष विजय शंकर त्रिपाठी ने काशी की ‘श्रीविद्या’ को मठपरम्परा के अन्तर्गत व्याख्यायित किया। प्रो. रजनीश कुमार मिश्रा (डीन स्कूल ऑफ़ संस्कृत एवं इण्डिक अध्ययन, जेएनयू, नई दिल्ली) ने आगम परम्परा के वैशिष्ट्य को प्रतिपादित किया। इसके उपरान्त दो विद्वान् वक्ताओं डॉ. कृष्णानन्द सिंह एवं डॉ. देवाशीष जाना द्वारा क्रमशः निगमागममूलक भारतीय संस्कृति और कश्मीरीय-शैवागमस्थ-योगसमीक्षणम् पर अपना विशिष्ट शोध प्रस्तुत किया।

इस अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र के मुख्यातिथि के रूप में पूर्व अध्यक्ष संस्कृत कलासंकाय बी.एच.यू से प्रो. जयशंकरलाल त्रिपाठी ने काशी और आगम की एकरूपता तथा सर्वांगीण व्यापकता को परिभाषित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये प्रो. राजाराम शुक्ल (पूर्व कुलपति सम्पूर्णानानंद विश्वविद्यालय, वाराणसी एवं समन्वयक वैदिक विज्ञान केन्द्र, बीएचयू) ने अन्त में आगम परम्परा के वैशिष्ट्य को व्याख्यायित करते हुये यह कहा कि काशी कालातीत है और समस्त आगमों का आदिस्रोत रहा है। कला केन्द्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अभिजित् दीक्षित ने सभी अभ्यागतों को धन्यवाद ज्ञापित किया। इन दो दिवसीय संगोष्ठी में कार्यक्रम का संचालन डॉ. रजनीकांत त्रिपाठी ने किया। इस विशेष अवसर पर प्रो. चंद्रभूषण झा, प्रो. सीताराम दुबे, प्रो. शीतला प्रसाद उपाध्याय, प्रो. भक्तिपुत्र रोहतम, प्रो. प्रह्लाद गिरि, प्रो. श्रीप्रकाश पाण्डेय, डॉ. कृष्णानन्द सिंह, प्रो. फूलचन्द्र जैन, प्रो. कमलेश कुमार जैन, डॉ. संजय त्रिपाठी एवं काशी के कई विशिष्ट विद्वान् उपस्थित थे। इसके अतिरिक्त बड़ी संख्या में रणवीर संस्कृत विद्यालय एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शोधार्थी एवं संस्कृत अध्ययनरत छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

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