राष्ट्र और स्वयं के उत्थान हेतु विकृतियों से दूर होकर श्रम करें – औघड़ गुरुपद संभव राम जी

अघोरेश्वर भगवान राम जी की 89वीं जयंती हर्षोल्लास से संपन्न

पड़ाव, वाराणसी/ बहुत से माध्यमों से अनेक विचारों को सुनकर हमलोग दिग्भ्रमित हो जाते हैं। लिकं ऐसे स्थानों से परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु के वचनों द्वारा हम सभी को प्रेरणा मिलती रहती है। परमपूज्य अघोरेश्वा हमेशा हमारे साथ हैं, जैसा हम बोलते हैं, करना चाहते हैं, वह भी वह सुनते हैं, अच्छा हो, बुरा हो- जो हम सोचते भी हैं, वह भी। लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि हम उनका अनुसरण नहीं करते, उनको याद नहीं करते, याद नहीं रखते। इधर से जाने बाद या इन बातों को सुनने के बाद विस्मृत कर जाते हैं। न हम उनको याद रखते हैं और न हम अपने-आप को। अपने-आप को याद रखने का क्या अर्थ है? क्योंकि हमलोग अनेक शरीर हैं, लेकिन प्राण एक है। इसीलिए मानव सेवा की सेवा करने के लिए कहा जाता है। लेकिन हमलोगों की बुद्धि-विवेक में यह सब बातें नहीं आ पाती हैं। जब तक समय-काल रहते हमलोग सचेत नहीं होंगे, नहीं चेतेंगे, हमारा समय धीरे-धीरे बीतता जाएगा, फिर पछतावा ही हमारे पास रह जाएगा। इतनी सब बातों को बार-बार दुहराया जाता है, किसी के भी मुख से कहलवा दिया जाता है, हम सुनते रहते हैं, लेकिन हम उसके प्रति समर्पित नहीं हैं, उस चीज के प्रति हमको विश्वास नहीं होता। विश्वास नहीं होने से ही अनेक तरह की दिक्कतें होती हैं। जो चकाचौंध हमलोग देख रहे हैं इससे आज का समाज दिग्भ्रमित होता जा रहा है। पहले भी समस्यायें आने-जाने की थीं, रहने-करने की थीं, लेकिन वह हमें जीवन जीने की प्रेरणा देती थीं, उत्साहित करती थीं कि हम आगे बढें, मेहनत करें। वह हमारे आत्मबल को मजबूत करती थीं।

आज हम देख रहे हैं कि हमारे पास बहुत सी सुविधाएं उपलब्ध हो गई हैं, चाहे आश्रम में हो, चाहे आपके घरों में हो, कहीं भी हो, बहुत आसानी से हर चीज हमलोग उपलब्ध कर दे रहे हैं और जितनी आसानी से हमें यह सारी चीजें उपलब्ध हो जा रही हैं, उतने ही कमजोर हमलोग होते जा रहे हैं। पहले के लोगों की  जो स्थिरता थी, कर्मठता थी, जो हमलोगों को दे चुके हैं, वह आज हमारी आने वाली पीढ़ी में नहीं दिखाई दे रहा है। क्योंकि उनके माता-पिता अपने बच्चों को नहीं बता पा रहे हैं, क्योंकि वह भी इसी ऊहापोह में हैं, दिग्भ्रमित हो चुके हैं। समाज के साथ कंधे-से-कंधा मिलाना है, लेकिन इसमें भी हम क्या देखते हैं कि येन-केन-प्रकारेण हमारे पास अकूत धन-संपत्ति इकट्ठा हो जाए। जब धन अधिक होता है तो बहुत ही कम लोग उसका सदुपयोग जानते हैं, उसका महत्व समझते हैं कि वह किस लिए है। लेकिन वही ज्यादा अधिक हो जाने से फिर अनेक तरह के व्यसन हमलोगों में व्याप्त हो जाते हैं। जैसे अनेक तरह के नशा हैं, अनेक तरह कि प्रवृत्ति है, अनेक तरह की हमारी मानसिकताएं हैं, जो विस्फोटक हो जाती हैं और वह समाज-देश के लिए बहुत ही घातक हैं। धन के पीछे भागते-भागते हमलोग अपने-आप को गर्त में डाल देते हैं और उस चीज को भी नहीं समझ पाते जो हमारे गुरुजन हमें समझाना चाहते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि वह सब की सुनते हैं, सबको देखते हैं, फिर भी हमारा ध्यान नहीं जाता है। हम तो अपने ही में लगे हुए हैं, अपने बाल-बच्चों में ही लगे हुए हैं, अपने परिवार ही में लगे हुए हैं। जब तक यह भाव नहीं रहेगा तो वह पूर्ति भी ढंग से नहीं होगी, न बच्चों की देखभाल ढंग से कर पाएंगे, न उनका भविष्य बना पाएंगे, न परिवार को हम ठीक रख पाएंगे और न ही हम अपने देश-राष्ट्र को आगे बढ़ा पाएंगे। धन के पीछे अंधाधुंध भागते रहने से हमारा स्वास्थ्य भी बिगड़ रहा है, क्योंकि खानपान की चीजों में भी पैसा ही कमाना है, वही जहर हमको खिलाया जा रहा है, दिया जा रहा है और हमलोग बिना देखे उसको अपने अंदर प्रवेश करा ले रहे हैं हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँच रहा है, चाहे वह शारीरिक हो चाहे मानसिक। जैसा अन्न वैसा मन। शुद्धता और सफाई का हमको बिल्कुल भी ख्याल नहीं है। कागज का टुकड़ा जिसे हम धन कहते हैं वह भी आवश्यक है, यह भी हमारे लिए, राष्ट्र और परिवार के उत्थान के लिए आवश्यक है, लेकिन इसी के पीछे भागते भागते आज हम क्या देख रहे हैं कि चाहे हमारे नेतागण हों, अधिकारीगण हों, हमारे देश के कर्मचारीगण हों या हम-आप हों, उसी में लिप्त हो जा रहे हैं। बहुत से लोग भाईचारा दिखाते हैं, लेकिन उनका थोड़ा सा भी पैसा इधर-से-उधर हो गया या किसी ने ठग लिया तो उसके पीछे पड़ जाएंगे और उसको गाली भी देने लगेंगे। क्योंकि रिश्ता एक-दूसरे से संवेदनाओं का नहीं है वह आर्थिक रिश्ता है।

पूज्य बाबा जी ने कहा कि हमारा देश जो संकट से गुजर रहा है, इसमें एक तो जनसंख्या बहुत अधिक है और दूसरे अन्य देश भी हमारे देश के ऊपर तरह-तरह की समस्याएं खड़ी करने को तैयार हैं। लेकिन हम अपने-आप को बचाने के लिए तैयार नहीं हैं। देश में जहाँ भी जाईये वहीं भ्रष्टाचार है। किसी स्तर पर जाइए, बगैर पैसा दिए कोई काम नहीं होगा। वह संवेदनहीन हो चुके हैं, उनका बुद्धि विवेक जाता रहा है। ऐसी विषम परिस्थिति में हमलोगों को रहना है, जीना है और अच्छे से जीना है। महापुरुषों की जो वाणियाँ हैं उनको आत्मसात करके चलेंगे, मेहनत करेंगे तो सफल होंगे। कैसे देश महान बनेगा कैसे देश इन आततायियों से बचेगा? हमारे देश में ऐसे भी लोग हैं जो अपने देश का ही खिलाफत कर रहे हैं।

इस अवसर पर आयोजित गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ० विजय प्रताप सिंह ने किया और मुख्य अतिथि के रूप में यू.पी. कालेज के प्राचार्य डॉ. धर्मेन्द्र कुमार सिंह उपस्थित थे। कार्यक्रम का सञ्चालन डॉ. बामदेव पाण्डेय तथा धन्यवाद हरिहर यादव ने किया। गोष्ठी में अवधूत भगवान राम नुर्सरी विद्यालय के मेधावियों को मैडल, वार्षिक शिक्षण शुल्क कि पूरी राशि का चेक व प्रसस्ती पत्र पूज्य बाबा जी द्वारा प्रदान किया गया। इसके पश्चात् ‘श्री गुरुपद वाणी’ पुस्तक का लोकार्पण किया गया। इसके पूर्व भाद्र शुक्ल सप्तमी, संवत् 2082, तदनुसार शनिवार, 30 अगस्त 2025 को अघोर पीठ, श्री सर्वेश्वरी समूह संस्थान देवस्थानम्, अवधूत भगवान राम कुष्ठ सेवा आश्रम, पड़ाव, वाराणसी के पुनीत प्रांगण में परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी की 89वीं जयंती संस्था के अध्यक्ष पूज्यपाद बाबा औघड़ गुरुपद संभव राम जी के सान्निध्य में तथा संस्था के हजारों सदस्यों, शिष्यों एवं श्रद्धालुओं की उपस्थिति भक्तिमय वातावरण में मनाई गई।

प्रातःकाल 5:30 बजे प्रभातफेरी से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। श्रद्धालु बड़ी संख्या में अघोरेश्वर महाप्रभु का जयकारा लगाते हुए अघोरेश्वर भगवान राम घाट, गंगातट, अघोरेश्वर महाविभूति स्थल पहुँचे। वहाँ से कलश में गंगाजल लिया और पड़ाव आश्रम वापस आये। आगे भक्तों ने आश्रम परिसर में सफाई-श्रमदान किया। सुबह 8:00 बजे पूज्यपाद बाबा औघड़ गुरुपद संभव राम जी ने अघोरेश्वर महाप्रभु के चिरकालिक आसन का विधवत् पूजन संपन्न किया। पृथ्वीपाल जी ने सफलयोनि का पाठ किया। पाठ के उपरांत पूज्यपाद बाबा द्वारा मन्दिर परिसर में हवन किया गया। श्रद्धालुओं ने दर्शन-पूजन कर अघोरेश्वर महाप्रभु की चरण-पादुका पर पुष्पांजली देकर आशीर्वाद प्राप्त किया और अन्नपूर्णा नगर में जाकर प्रसाद ग्रहण किया।

उल्लेखनीय है कि पड़ाव आश्रम पर दो दिवसीय लोलार्क षष्ठी व अघोरेश्वर जयंती पर्व का आयोजन किया गया था। इससे पूर्व दो दिनों से चल रहे “अघोरान्ना परो मन्त्रः नास्ति तत्त्वं गुरो: परम्” के अखंड संकीर्तन का समापन अपराह्न 3:30 बजे पूज्य बाबा औघड़ गुरुपद संभव राम जी द्वारा पूजन के साथ किया गया।

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