37 खदानों पर लगी रोक का असर: मजदूरों की रोज़ी पर संकट, महंगाई की मार

खनन निदेशक के दौरे से जगी उम्मीद

सोनभद्र। (राकेश जायसवाल)पत्थर खदान में हुए भीषण हादसे में सात मजदूरों की दर्दनाक मौत ने न सिर्फ जिले बल्कि पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया। हादसे के बाद खान सुरक्षा निदेशालय द्वारा लगाए गए प्रतिबंध ने सोनभद्र की लाइफ लाइन कहे जाने वाले खनन व्यवसाय को पूरी तरह ठप कर दिया है। एक साथ 37 खदानों पर लगी रोक का असर अब केवल खनन क्षेत्र तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका व्यापक प्रभाव मजदूरों, कारोबारियों, आम जनता और सरकार तक साफ दिखाई देने लगा है।खनन बंद होने से हजारों मजदूरों के सामने रोज़गार का गंभीर संकट खड़ा हो गया है। दिहाड़ी पर निर्भर मजदूरों के लिए रोज़ी-रोटी का सवाल दिन-ब-दिन और गहराता जा रहा है। वहीं खनन से जुड़े व्यवसायी, स्टोन क्रशर संचालक, मोटर मालिक और ट्रांसपोर्टर भारी आर्थिक दबाव में हैं। रॉयल्टी का भुगतान, बैंकों की किस्तें, मजदूरी और वाहनों की देनदारियां अब उनके लिए बड़ी चुनौती बन चुकी हैं।इस स्थिति का सीधा असर सरकार के राजस्व पर भी पड़ रहा है। खनन पूरी तरह बंद होने से राज्य सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व नुकसान की आशंका जताई जा रही है। इसके साथ ही पत्थर खदानें बंद होने से गिट्टी की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई है। नतीजतन मकान निर्माण में इस्तेमाल होने वाली गिट्टी के दाम तेजी से बढ़ गए हैं, जो अब आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही है। बढ़ती महंगाई का असर सड़क निर्माण समेत अन्य सरकारी विकास कार्यों पर भी साफ नजर आने लगा है, जिससे कई योजनाओं की लागत बढ़ने और कार्य प्रभावित होने की आशंका है।

इन्हीं बेहद संवेदनशील हालात के बीच आज हादसे के बाद पहली बार राज्य की खनन निदेशक माला श्रीवास्तव सोनभद्र पहुंचीं। उनके आगमन को सिर्फ जांच तक सीमित नहीं देखा जा रहा, बल्कि खनन व्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने की उम्मीद से भी जोड़ा जा रहा है। सर्किट हाउस पहुंचते ही जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बंद कमरे में समीक्षा बैठक हुई, जहां मौजूदा हालात और आगे की रणनीति पर मंथन किया गया।

सूत्रों के मुताबिक खनन निदेशक हादसे वाली खदान के साथ-साथ अन्य खदानों की भी जांच कर सकती हैं और सुरक्षा मानकों के आधार पर आगे का फैसला लिया जाएगा। फिलहाल पूरे जिले की निगाहें इस दौरे पर टिकी हुई हैं। अब देखना यह है कि क्या सुरक्षा के साथ खनन व्यवस्था दोबारा शुरू हो पाएगी, या फिर मजदूरों की रोज़ी, व्यवसायियों का भविष्य और आम जनता की जेब पर यह संकट और गहराता जाएगा।

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