ललित निबंध (जन्मदिन पर विशेष)
डॉ. विनय कुमार वर्मा
जीवन की भीड़ में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका परिचय किसी पद, किसी उपाधि या किसी बाहरी चमक से नहीं होता, बल्कि उनके व्यक्तित्व से फैलने वाली एक अदृश्य आभा से होता है। ये लोग बिना किसी औपचारिक घोषणा के, बिना किसी प्रदर्शन के, अपने आसपास के लोगों के मन पर गहरी छाप छोड़ जाते हैं। वे यह साबित कर देते हैं कि जीवन की सबसे बड़ी शक्ति मांसपेशियों में नहीं, बल्कि मन में होती है। आदरणीय दिनेश चंद्र जी ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी हैं – जिन्होंने अपनी शारीरिक अक्षमता को भी अपने मानसिक दृढ़ निश्चय, अदम्य साहस और बौद्धिक प्रखरता से मात दी और समाज में अपनी अलग पहचान बनाई।
उनका जीवन एक ऐसे योद्धा का जीवन है, जिसने रोज़-रोज़ युद्ध लड़ा, लेकिन हथियार लोहे के नहीं, बल्कि विचारों के थे; कवच चमड़े का नहीं, बल्कि आत्मविश्वास का था। उनके संघर्ष की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह केवल व्यक्तिगत विजय की कहानी नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो जीवन की कठिनाइयों के सामने खुद को असहाय महसूस करता है।
पूर्व मध्य रेलवे में वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी के पद पर रहते हुए उन्होंने अपने दायित्वों को कभी भी केवल सरकारी कामकाज की सीमाओं में नहीं बाँधा। उनके लिए राजभाषा का अर्थ था – एक सांस्कृतिक सेतु, जो प्रशासन, साहित्य और समाज को जोड़ता है। वे जानते थे कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि एक जीवित संस्कृति की धड़कन है और इस धड़कन को जीवंत बनाए रखने के लिए उन्होंने अपने पूरे मन से काम किया। सरकारी बैठकों की गंभीरता और साहित्यिक आयोजनों की आत्मीयता – दोनों ही मंचों पर वे समान रूप से सहज, सशक्त और प्रभावी दिखाई देते थे।

..लेकिन दिनेश चंद्र जी की पहचान केवल एक अधिकारी की नहीं है। वे शब्दों के सच्चे साधक हैं। उनकी कलम गद्य और पद्य दोनों में समान अधिकार रखती है। वे जिस निपुणता से प्रशासनिक दस्तावेजों में स्पष्टता और गरिमा भरते थे, उसी सहजता से कविता में संवेदनाओं की गहराई और लय का सौंदर्य रचते थे। उनके लिए कविता केवल पंक्तियों का विन्यास नहीं, बल्कि आत्मा का स्पंदन है। उनका साहित्यिक जीवन किसी व्यक्तिगत साधना तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने न केवल अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि अनेक रचनाकारों की सृजनशीलता को भी पोषित किया। कितने ही लेखकों की पुस्तकें उनके प्रयासों और मार्गदर्शन से प्रकाशित हुईं। वे इस बात की गहरी चिंता करते कि कोई भी रचनाकार केवल संसाधनों की कमी के कारण अपनी कृति को प्रकाशित कराने से वंचित न रह जाए। किसी पुस्तक का लोकार्पण उनके लिए केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि लेखक के जीवन का उत्सव है और इस उत्सव को गरिमा और स्नेह से भर देना उनकी आदत है।
साहित्यिक मंचों की बात करें तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वह मंच अधूरा होता है, जिस पर दिनेश चंद्र जी उपस्थित न हों। उनकी उपस्थिति मात्र से वातावरण में एक गरिमा और आत्मीयता आ जाती है। वे जब बोलते हैं तो उनके शब्द केवल कानों में नहीं, बल्कि हृदय में उतरते हैं। वे श्रोताओं को केवल प्रभावित नहीं करते, बल्कि उनकी सोच में नई दिशा का संचार करते हैं। उनका वक्तव्य सुनना किसी गहन नदी के प्रवाह में डूबने जैसा है — जिसमें सतह पर सौम्यता है और गहराई में अपार शक्ति।
उनका व्यक्तित्व संवेदनशीलता और नेतृत्व का अद्भुत संगम है। वे रचनाकार के रूप में भावनाओं के महासागर में डूबते हैं, तो मार्गदर्शक के रूप में कठोर सच्चाइयों का सामना करने का साहस भी रखते हैं। यही संतुलन उन्हें सबका प्रिय और आदरणीय बनाता है।
सेवानिवृत्ति के बाद जहाँ अधिकांश लोग अपनी रफ्तार खो देते हैं, वहीं दिनेश चंद्र जी की गति जैसे और तेज हो गई। अब वे पहले से भी अधिक साहित्यिक और सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय हैं – कहीं कविता-पाठ, कहीं संचालन, कहीं किसी नए लेखक की किताब के विमोचन में शामिल होना, तो कहीं मंच से नई पीढ़ी को प्रेरित करना। वे यह मानते हैं कि सेवा केवल पद से जुड़ी नहीं होती, बल्कि जीवन से जुड़ी होती है।
उनका जीवन इस सत्य का प्रमाण है कि अक्षमता केवल शरीर में हो सकती है, मन में नहीं। उन्होंने यह दिखाया कि मनुष्य अपनी सीमाओं को अपनी शक्ति में बदल सकता है, अगर उसके भीतर आत्मविश्वास और लक्ष्य के प्रति निष्ठा हो। उनकी राह यह बताती है कि कठिनाइयाँ केवल रोकने के लिए नहीं आतीं, बल्कि भीतर सोई हुई ताकत को जगाने के लिए आती हैं।
दिनेश चंद्र जी का साहित्य और समाज, दोनों के प्रति यह भाव कि “दूसरे की प्रगति ही मेरी खुशी है” उन्हें एक साधारण व्यक्ति से विलक्षण बनाता है। वे हर उस क्षण में शामिल होते हैं, जब किसी को स्नेह, प्रेरणा और समर्थन की आवश्यकता होती है। वे दूसरों की उपलब्धियों को उतना ही महत्व देते हैं, जितना अपनी रचनाओं को। आज उनके जन्मदिन के अवसर पर यह कहना एक औपचारिक शुभकामना नहीं, बल्कि सच्चे हृदय की पुकार है कि वे यूँ ही शब्दों के जादूगर बने रहें, संवेदनाओं के संरक्षक बने रहें और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा के दीपक की तरह जलते रहें। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उनके जीवन का यह प्रवाह कभी न थमे, उनके सभी मनोरथ पूर्ण हों, और उनका मुस्कुराता चेहरा यूँ ही जीवन के हर पन्ने को रोशन करता रहे। क्योंकि श्रद्धेय दिनेश चंद्र जी केवल एक नाम नहीं, वे एक जीवित कविता हैं – जिसे जितनी बार पढ़ा जाए, उतनी बार वह और सुंदर और प्रेरक लगती है।

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