कड़ी मेहनत और लगन की कहानियाँ रचती  दीपिका इस्पात शिक्षा सदन

राउरकेला । स्थानीय इस्पात नगरी के हृदय में, जहाँ मशीनों की आवाज़ गूंजती है और इस्पात आकार लेता है, एक शांत लेकिन अत्यंत प्रभावशाली परिवर्तन हो रहा है। दीपिका इस्पात शिक्षा सदन में जो  सेल राउरकेला इस्पात संयंत्र  द्वारा संचालित और परोपकारी संस्था दीपिका महिला संगति के प्रबंधन में चलाया जा रहा एक निःशुल्क विद्यालय है — वहाँ की तीन छात्राओं ने संघर्ष, गरीबी और व्यक्तिगत समस्याओं को पीछे छोड़ते हुए कक्षा 10वीं की बोर्ड परीक्षा में विद्यालय में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है। इनकी कहानियाँ वास्तव में प्रेरणादायक और प्रतिभासंपन्न हैं।

प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली, सुभालक्ष्मी साहू,  माता-पिता से दूर अपने मामा-मामी के साथ रहती हैं जिन्होंने हर मुश्किल समयों में उसका साथ दिया है । उनके प्रति  प्रेम और आभार व्यक्त करते हुए वह कहती है,  “उन्होंने मेरी शैक्षणिक सफ़र के दौरान हर ज़रूरत पूरी की। एक प्रतिभाशाली चित्रकार और वाद-विवादकर्ता, सुभालक्ष्मी अब बैंकिंग क्षेत्र  में अपना करियर बनाने का सपना देख रही हैं। 

दूसरे स्थान पर रहीं सुप्रभा तांडी के लिए, चुनौतियाँ घर से ही शुरू हुईं थीं । सेक्टर-20 की झुग्गियों-बस्तियों में रहते हुए, उसने ट्यूशन कक्षाओं की मदद लिए बिना बिजली कटौती, शोर और निरंतर वित्तीय अनिश्चितता के बीच पढ़ाई की । भुवनेश्वर में एक निजी ड्राइवर के तौर पर कार्यरत उनके पिता  परिवार से दूर रहकर अपने तीन बच्चों की शिक्षा के लिए पैसे का जुगाड़ कर घर भेजते हैं । उनकी माँ, जो कभी गृहिणी थीं,  अब घर-घर काम कर दो वक्त की रोटी का इंतजान करती है । सुप्रवा कहती हैं, “ऐसे दिन भी थे जब हमारे पास ठीक से खाना नहीं होता था, लेकिन मेरे माता-पिता ने कभी हार नहीं मानी।” उनका सपना एक आईएएस अधिकारी बनना है – एक ऐसा लक्ष्य जिसे वह न केवल अपने लिए, बल्कि उन माता-पिता के लिए भी मज़बूती से थामे हुए हैं, जिन्होंने उन्हें बेहतर जीवन जीने का मौका देने के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया। यह सब बताते हुए वे सरलता से कहती हैं, “मैं उन्हें गौरवान्वित करूँगी” I

तीसरे स्थान पर रहीं श्रुतिस्मिता पटनायक अपनी सफलता का श्रेय पूरी तरह से अपने माता-पिता को देती हैं। वह कहती हैं, ”उन्होंने सारा दर्द अपने ऊपर ले लिया ताकि मैं चैन से पढ़ाई कर सकूँ।” अपने नतीजों से खुश श्रुतिस्मिता कहती हैं कि उन्हें कोई अफसोस नहीं है, सिर्फ और ज्यादा मेहनत करने का दृढ़ संकल्प है। वह भी सिविल सेवा में शामिल होने और अपने माता-पिता और देश को गौरवान्वित करने का सपना देखती हैं। 

इन नतीजों के पीछे विशेषाधिकार की नहीं, बल्कि दृढ़ता की जीवन गाथाएँ छिपी हैं। सुभालक्ष्मी, सुप्रभा और श्रुतिस्मिता को जो चीज उन्हें एक सूते में पिरोती है, वह सिर्फ उनकी शैक्षणिक रैंकिंग नहीं, बल्कि दृढ़ विश्वास है कि शिक्षा उनकी जिंदगी बदल सकती है – और एक स्कूल का अटूट समर्थन जिसने उन पर विश्वास किया। वे सभी शिक्षा को सुलभ और सम्मानजनक बनाने के लिए सेल आरएसपी और दीपिका महिला संघति के प्रति गहरा आभार व्यक्त करती हैं। इस्पात गढ़ने वाले शहर में इन तीन लड़कियों ने दिखा दिया है कि मानवीय भावनाएँ कितनी मजबूत हो सकती हैं।

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