बाढ़ के उपरान्त करें धान की फसलों का कीटों से बचाव, ए हैं सटीक उपचार…

चन्दौली। जिला कृषि रक्षा अधिकारी स्नेह प्रभा ने पत्र के माध्यम से अवगत कराया कि वर्तमान समय में धान की फसल अपनी वानस्पतिक अवस्था में चल रही है । कृषक भाइयों एवं विकास खण्डों से प्राप्त साप्ताहिक कीट / रोग सर्वेक्षण की रिपोर्ट से पता चल रहा है कि जनपद में धान की फसल में जड़ की सूड़ी, तना बेधक कीट धान का जीवाणु झुलसा रोग एवं खैरा रोग की समस्या आ सकती है।  जिनके पहचान व उपचार के लिए जड़ की सूड़ी (रूट वीविल) कीट :- जिस क्षेत्र में जल का अधिक भराव रहता है, वहीं पर इस कीट का अधिक प्रकोप होता है। जड़ की सूड़ी कीट चावल के आकार की होती है, जो पौधों के जड़ों में पायी जाती है । ये कीट जड़ों के तथा मुख्य तने के रसों को चूसकर पौधे को सुखा देती है जिसके कारण पौधे

मृतप्राय हो जाते है । ऐसी स्थिति में तत्काल पानी का निकास करें । कर्बोफ्यूरान 3 जी० आर० 18-20 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर अथवा क्लोरोपायरीफास 20 ई० सी० 2.000- 2. 500 ली0 प्रति हेक्टेयर अथवा कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 प्रति० दानेदार रसायन 17-18 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें ।

तना बेधक :- इस कीट की सूड़ियाँ ही हानिकारक होती है । पूर्ण विकसित सूड़ी हल्के पीले शरीर वाली तथा नारंगी पीले सिर वाली होती है । इसके आक्रमण के फलस्वरूप फसल की वानस्पतिक अवस्था में मृतगोभ तथा बाद में प्रकोप होने पर सफेद बाली बनती है ।  यदि 5 प्रतिशत मृत गोभ अथवा एक अण्डे का झुण्ड वानस्पतिक अवस्था में तथा एक पतंगा/वर्ग मीटर बाल निकलने की अवस्था में दिखाई पड़ने पर कारटापहाइड्रोक्लोराइड 4 प्रतिशत दानेदार रसायन के 17-18 किग्रा0 प्रति हेक्टे0 की दर से प्रयोग लाभकारी है, जो एक सुरक्षित रसायन भी है अथवा 1.500 ली0 नीम आयल प्रति हेक्टेयर की दर से 600.000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। जीवाणु झुलसा रोग पत्तियों पर लहरदार पीले-सफेद या सुनहरे पीले रंग की सीमांत परिगलन, पत्तियों का सिरे से पीछे की ओर सूखना और मुड़ जाना, बीच की पसली को बरकरार रखना इसके प्रमुख लक्षण हैं ।

सुबह-सुबह नयी घावों पर दूधिया या अपारदर्शी ओस की बूंद जैसा दिखने वाला जीवाणु रिसाव दिखता है। गंभीर रूप से संक्रमित पत्तियाँ जल्दी सूख जाती हैं।  यदि किसान भाई प्रारंभ ही स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट + टेट्रासाइक्लिन की 4-0 ग्राम मात्रा को 25 किग्रा. बीज की दर से बीज शोधन कर देने से 70% रोग से बचने की संभावना बढ़ जाती है । अतः इससे बचने के लिए बीज शोधन की सलाह दी जाती है।  स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट + टेट्रासाइक्लिन 30 ग्राम एवं कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 1.25 किग्रा प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें।  गर्भावस्था के दौरान म्यूरेट ऑफ पोटाश 6 ग्राम / लीटर, जिंक उर्वरक 4 ग्राम / लीटर और एलेमेंटल सल्फर 6 ग्राम / लीटर का छिड़काव कर सकते हैं। यदि लक्षण स्वाभाविक रूप से या हवा – बारिश के मौसम के बाद दिखाई देते हैं, तो 7 दिन के अंतराल के साथ उसी घोल का दो बार छिड़काव करें।

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