आइसार्क में धान-आधारित फसल प्रणालियों में चार दिवसीय मृदा-स्वास्थ्य प्रबंधन पर उन्नत प्रशिक्षण संपन्न

वाराणसी। अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र(आइसार्क) ने इरी-एजुकेशन के सहयोग से “दक्षिण एशिया की धान-आधारित फसल प्रणालियों में मृदा-स्वास्थ्य प्रबंधन के उन्नत तरीके” विषय पर 17 से 20 सितंबर तक चार दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का सफल आयोजन किया गया। 

इस कार्यक्रम में देश के प्रमुख कृषि विश्वविद्यालयों और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् संस्थानों – जैसे भा.कृ.अनु.प.-भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान भोपाल, भा.कृ.अनु.प.-भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान मोदिपुरम, बीएचयू-वाराणसी, सैम हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय प्रयागराज, पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी आदि के प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। बीएचयू, भा.कृ.अनु.प.-राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो, भा.कृ.अनु.प.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अंतर्राष्ट्रीय उर्वरक विकास केंद्र और आइसार्क के विशेषज्ञों ने अपने अनुभव साझा किए। 

 कार्यक्रम के उद्घाटन पर आइसार्क के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह ने कहा, “मिट्टी हमारे खाद्य तंत्र की नींव है। इस कार्यक्रम के माध्यम से हम क्षेत्रीय विशेषज्ञता विकसित कर रहे हैं और आने वाली पीढ़ी को सुदृढ़ खाद्य सुरक्षा के लिए मृदा स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए तैयार कर रहे हैं।” यह प्रशिक्षण पारंपरिक पाठ्यक्रमों से अलग था, जिसमें व्याख्यान, प्रायोगिक गतिविधियाँ, फील्ड विजिट और प्रयोगशाला प्रदर्शन शामिल थे। आइसार्क के वैज्ञानिक डॉ. एंथनी फुलफोर्ड और डॉ. अजय मिश्रा ने ‘राइस क्रॉप मैनेजर (आरसीएम)’ जैसे डिजिटल टूल्स पर जानकारी दी जो किसानों के लिए पोषक तत्वों के बेहतर उपयोग और उत्पादकता बढ़ाने में मददगार है। प्रतिभागियों ने मृदा स्पेक्ट्रोस्कोपी के माध्यम से मिट्टी की त्वरित और किफायती जांच के तरीके भी सीखे। आइसार्क की अत्याधुनिक प्रयोगशाला में हुए प्रदर्शन से किसानों को समय पर और सटीक मृदा स्वास्थ्य जानकारी देने की संभावनाएँ सामने आईं। 

 आईएफडीसी, यूएसए के डॉ. यशपाल सहरावत ने मृदा स्वास्थ्य नीति और शासन पर व्याख्यान दिया – जिसमें ‘भारत मृदा स्वास्थ्य नीति’ जैसे नीति ढाँचे और शासन तंत्र की आवश्यकता और 2047 तक चरणबद्ध क्रियान्वयन की बात की गई। उन्होंने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर संस्थागत सहयोग और कम लागत वाली, प्रोत्साहन आधारित मृदा स्वास्थ्य नीति की आवश्यकता पर बल दिया। 

क्लासरूम सत्रों के अलावा, प्रतिभागियों ने वाराणसी के प्रगतिशील किसानों के खेतों का दौरा किया और वहाँ एकीकृत मृदा एवं जल प्रबंधन की तकनीकें देखीं। उन्होंने मृदा स्वास्थ्य किट का उपयोग कर प्रयोगशाला में परीक्षण भी किए, जिससे उनकी तकनीकी समझ और मजबूत हुई।  इस प्रशिक्षण ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण, डिजिटल नवाचार और नीति के समावेश से मृदा वैज्ञानिकों, कृषि विशेषज्ञों, विस्तार अधिकारियों और शिक्षकों को जलवायु-स्मार्ट और किसान-केंद्रित मृदा-स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए व्यावहारिक ज्ञान और कौशल प्रदान किया।

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