भारतीय वांगमय के सजग प्रहरी आचार्य आनन्द सुब्रमण्यम शास्त्री का निधन

 वाराणसी/ भारतीय वांगमय के सजग प्रहरी आचार्य आनन्द सुब्रमण्यम शास्त्री जी का निधन 83 वर्ष की आयु मे बेंगलूरु में हो गया। काशी में  जन्में आचार्य आनंद सुब्रमण्यम शास्त्री जी एक प्रतिष्ठित विद्वान, विचारक, चिन्तक एवं गीता मर्मज्ञ थे। पिछले सात दशकों से काशी में रहकर विभिन्न भाषाओं में श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया। विशेष रूप से श्रीमद्भगवद्गीता के सामाजिक पक्ष पर चिन्तन प्रस्तुत किया है। गीत समिति, मालवीय भवन, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित होने वाले रविवासरीय गीत प्रवचन माला में आपने कई व्याख्यान दिए इसके साथ ही आपके सानिध्य में गीत समिति कार्यशाला का भी आयोजन किया गया था।

उन्होंने 1973 में “श्री व्यक्ति विकास संस्थान” और 1993 में झारखंड के चतरा जिले में “श्री कुलेश्वरी बाल विद्यापीठ” की स्थापना की, जिससे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा एवं मानवीय हित-मूल्यों के विकास आधारित था, जिससे उनकी शिक्षाएँ व्यापक रूप से लोगों तक प्रभावी हुई हैं। उन्होंने “हम हिंदू क्यों हैं” (1972), “मोह” (1980), “विवेक वाणी” (1991) और “समय की पुकार” (1991) नई दिशा  (2005) विचारों के फूल ( (1989) जैसी पुस्तकें लिखी हैं।

उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए स्वामी करपात्री पुरस्कार (2021) और टी.वी. कपाली शास्त्री पुरस्कार (2005) से सम्मानित किया गया। उनकी शिक्षाएँ समाज और युवाओं को मानवीय मूल्यों,आत्म-संयम और आध्यात्मिक जागरूकता की ओर प्रेरित करती रहेगी।

अंतिम यात्रा- आज दिनांक: 30.1.2025 को मुमुक्षु भवन, वाराणसी में सुबह 9.00 बजे से 11.00 तक अंतिम दर्शन की व्यवस्था की गई है। जिनका दाह संस्कार हरिश्चन्द्र घाट पर सम्पन्न हुआ। अंतिम यात्रा में मालवीय भवन, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो० राजाराम शुक्ल एवं गीता समिति के सचिव प्रो० उपेन्द्र कुमार त्रिपाठी के साथ ही अन्य विशिष्ठ गणमान्य उपस्थित हुए।

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