– सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
भारत में जेलों में पल रहे नौनिहालों का भविष्य वाकई में गंभीर संकटों से घिरा हुआ है। ऐसे बच्चों के जीवन और व्यक्तित्व के विकास की संभावना जेल की दीवारों के भीतर लगभग अवरुद्ध हो जाती है, जिससे उनका बचपन अंधकारमय हो जाता है। छत्तीसगढ़ जब मध्य प्रदेश के अंतर्गत आता था तब मैंने भी बंदी कल्याणारार्थ किरण परियोजना के अंतर्गत बिलासपुर जेल में कई वर्ष कार्य किया था। जिसके तहत बंदी कल्याण के सभी कार्यों को करने की जिम्मेदारी थी। चाहे वह कानूनी हो पुनर्वास और शिक्षा हो या अन्य मानवीय समस्याओं का समाधान हो। यह बहुत ही अच्छी और सुदृढ़ परियोजना थी। जिसकी पहल तत्कालीन संभाग आयुक्त उपाध्याय जी द्वारा शुरू की गई थी। इस परियोजना के परिणाम भी बहुत अच्छे आ रहे थे लेकिन दुर्भाग्य छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पश्चात इस परियोजना को बंद कर दिया गया।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देशभर कई हजार बच्चे अपनी माताओं के साथ विभिन्न जेलों में रहते हैं। इनमें से बहुसंख्यक उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसी राज्यों में हैं। ऐसे बच्चों को स्वाभाविक बालपन, उचित शिक्षा और सामाजिक अवसरों से वंचित रहना पड़ता है। जेल का वातावरण उनके मानसिक और शारीरिक विकास को प्रभावित करता है। जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों की भीड़ है, जिसके कारण संसाधन और सुविधाएं पहले से ही सीमित होती हैं। बच्चों को पर्याप्त स्वास्थ्य, पोषण और खेलकूद की सुविधा नहीं मिल पाती। स्वास्थ्य सेवाओं, शैक्षिक वातावरण और बच्चों के लिए सकारात्मक सामाजिक माहौल की भारी कमी है। इससे बच्चों का आत्मविश्वास, संप्रेषण कौशल और सामाजिक समझ कमजोर पड़ती है ऐसे बच्चे, किशोर किशोरिया जिन्हें बाहरी अभिभावक परिवार या समाज का सहारा नहीं मिलता है वह अतिरिक्त मानसिक दबाव व असुरक्षा के साथ बड़े होते हैं।

सरकार और प्रशासन को चाहिए कि ऐसे निरूद्ध बच्चों के लिए जेल परिसर से बाहर सुरक्षित आश्रय, शिक्षा, मानसिक परामर्श, स्वास्थ्य और पुनर्वास की व्यवस्था सुनिश्चित करें। वहीं कानूनों में संशोधन करके ऐसे मामलों में बच्चों को प्राथमिकता दी जाए और वह जेल के बजाय संस्थागत देखभाल या परिवार के संरक्षण में रह सके, साथ ही महिलाओं के लिए खुली जेल या ट्रांजिट होम जैसी व्यवस्थाएं मिल सके, जहां माँ और बच्चे मानवीय गरिमा के साथ गुजारा कर सकें।
सरकार और जेल प्रशासन को बाल अधिकारों की रक्षा और बच्चों के कल्याण के लिए एकरूपता के साथ नीति लागू करने की आवश्यकता है ताकि हर बच्चे को समान अवसर मिल सके। जेल में निरूद्ध बंदियों के बच्चों का भविष्य संवारने और उनकी शिक्षा सुनिश्चित करने में जेल प्रशासन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जेल का माहौल बच्चों के लिए सुरक्षित और अनुकूल बनाना, सामाजिक कलंक और बहिष्कार से बचाना, तथा पारिवारिक माहौल की कमी को दूर करना प्रशासन की जिम्मेदारी है। जेल प्रशासन को बच्चों के अधिकारों का सम्मान करना होगा और शिक्षा, सुरक्षा और संपूर्ण विकास के लिए मानवीय दृष्टिकोण अपनाना होगा, जिससे जेल में रहते हुए भी इन बच्चों का भविष्य जेल प्रशासन को बच्चों के सर्वांगीण विकास, शिक्षा और संरक्षण के लिए विशेष प्रबंध करने चाहिए, जिससे वे समाज की मुख्यधारा से कट न जाएं और उनका बचपन जेल की सलाखों में कैद न हो।
कई जेलों में बाल संरक्षण नीति के तहत आंगनबाड़ी, स्वास्थ्य, खेल और शिक्षा की सुविधाएं शुरू की गई हैं, परन्तु ये पूरे देश में एकसमान लागू नहीं हैं? जेल का माहौल बच्चों के लिए सुरक्षित और अनुकूल बनाना, सामाजिक कलंक और बहिष्कार से बचाना, तथा पारिवारिक माहौल की कमी को दूर करना प्रशासन की जिम्मेदारी है। जेल प्रशासन को बच्चों के अधिकारों का सम्मान करना होगा और शिक्षा, सुरक्षा और संपूर्ण विकास के लिए मानवीय दृष्टिकोण अपनाना होगा, जिससे जेल प्रशासन की देखरेख में रहते हुए भी इन बच्चों का भविष्य संवर सके और वे बड़े होकर देश के एक जिम्मेदारी नागरिक की भूमिका निभा सके। बचपन की नींव पर ही जीवन का भवन टिका होता है; जेलों में पलते बच्चों का वह स्वप्निल भविष्य वर्तमान व्यवस्था की सीमाओं में कैद हो जाता है। इसलिए ऐसे नौनिहालों के लिए विशेष और संवेदनशील नीतियों और व्यवस्थाओं की तत्काल आवश्यकता है, ताकि उनका भविष्य फिर से रोशन हो सके। जेल में निरूद्ध बंदियों के बच्चों का भविष्य संवारने और उनकी शिक्षा सुनिश्चित करने में जेल प्रशासन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। जेल का माहौल बच्चों के लिए सुरक्षित और अनुकूल बनाना, सामाजिक कलंक और बहिष्कार से बचाना, तथा पारिवारिक माहौल की कमी को दूर करना प्रशासन की जिम्मेदारी है।
जेल प्रशासन को बच्चों के अधिकारों का सम्मान करना होगा और शिक्षा, सुरक्षा और संपूर्ण विकास के लिए मानवीय दृष्टिकोण अपनाना होगा, जिससे जेल में रहते हुए भी इन बच्चों का भविष्य जेल प्रशासन को बच्चों के सर्वांगीण विकास, शिक्षा और संरक्षण के लिए विशेष प्रबंध करने चाहिए, जिससे वे समाज की मुख्यधारा से कट न जाएं और उनका बचपन जेल की सलाखों में कैद न हो। हालांकि जेल प्रशासन द्वारा महिला बंदियों के बच्चों के लिए ‘सुरक्षित बचपन योजना’ जैसी पहल की गई है, जिसमें संरक्षण, शिक्षा और पोषण की जिम्मेदारी जिला प्रशासन एवं संबंधित विभागों की संयुक्त समिति को दी जाती है। यह एक अच्छी पहल है जिनका स्वागत किया जाना चाहिए।
एवी के न्यूज सर्विस

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