शिव-पार्वती विवाह और यज्ञ विध्वंस ने रचा आध्यात्मिक महाकाव्य
सिंगरौली। हर वर्ष हिंडालको महान मे अपने कर्मियों के द्वारा रामलीला का मंचन करता है लिए इस वर्ष जब मंच पर गणेश वंदना की स्वर लहरियाँ गूंजीं और श्रीराम पूजन की दिव्यता फैली, तब हिंडालको महान की रामलीला ने एक नई आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ किया। शुभमहालया के दिन शुरू हुए इस आयोजन ने न केवल परंपरा को जीवंत किया, बल्कि भावनाओं की गहराई में उतरने का अवसर भी दिया।
कथा नहीं, अनुभव था: शिव-सती से पार्वती विवाह तक-
पहले दिन की लीला में दर्शकों ने केवल दृश्य नहीं देखे—उन्होंने उन्हें जिया। सती का श्रीराम की परीक्षा लेना भगवान शंकर का समाधि में लीन होना सती का यज्ञ में जाना और आत्माहुति देना वीरभद्र का प्रकट होकर यज्ञ विध्वंस करना दक्ष प्रजापति का वध और अंततः पार्वती का जन्म लेकर शिव से विवाह करना हर दृश्य जैसे एक चित्रकाव्य था—जहाँ संवाद नहीं, भाव बोल रहे थे।
इस वर्ष की रामलीला की सबसे अनोखी बात रही—हिंडालको के वरिष्ठ प्रबंधकों ने स्वयं देवभूमि के किरदार निभाए:डॉ. विवेकानंद मिश्रा और श्रद्धा मिश्रा ने शिव-पार्वती के रूप में ऐसा भावनात्मक समर्पण दिखाया कि दर्शक मंत्रमुग्ध रह गए। आदर्श और सोनल ने राम-सीता की भूमिका में न केवल अभिनय किया, बल्कि मर्यादा और प्रेम का प्रतीक बन गए।राम जतन गुप्ता ने हिमालय के रूप में स्थिरता और गरिमा का अद्भुत प्रदर्शन किया।जीनू पाठक ने माता मैना के रूप में मातृत्व की कोमलता को जीवंत किया।इन प्रस्तुतियों ने दर्शकों को ऐसा अनुभव दिया मानो वे स्वयं त्रेतायुग में उपस्थित हों।
शिव-वीरभद्र संवाद और यज्ञ विध्वंस का दृश्य विशेष रूप से दर्शकों को रोमांच और भक्ति से भर गया। व्यास गणों की चौपाइयों ने वातावरण को दिव्य बना दिया। रामजतन गुप्ता ने रामलीला की यात्रा और इसके विकास की जानकारी साझा की।
अभिषेक उपाध्याय के निर्देशन ने मंच को केवल दृश्य नहीं, दर्शन बना दिया। कार्यक्रम के अंत में इकाई प्रमुख सेंथिल नाथ ने सभी महानवासियों को नवरात्र महोत्सव की शुभकामनाएँ दीं और कलाकारों के समर्पण को सराहा।

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