पेठा की खेती, खेत से रसोई तक एक अनोखी सब्जी की रोचक यात्रा 

 

विवेकानन्द मौर्य , सहायक तकनीकी प्रबंधक, कृषि

सोनभद्र। भारत की धरती पर उगने वाली अनगिनत सब्जियों में से एक पेठा(ऐशगार्ड)भी है, जो न सिर्फ स्वाद में निराली है बल्कि अपने भीतर चिकित्सा का खजाना भी समेटे हुए हैं, इसको विभिन्न नाम जैसे बेनिकाशा हिसपिडा, सफेद कद्दू या रेक्साहा कुम्हड़ा के नाम से जानते हैं |अक्सर लोग इसे केवल आगरा की प्रसिद्ध मिठाई तक सीमित समझते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि पेठा एक ऐसी फसल है जिसका इतिहास उपयोग वैज्ञानिक गुण व खेती सब कुछ बेहद रोचक है 

पेठा का उद्भव स्थल जावा और जापान माना जाता है भारत में पेठा कद्दू का आगमन विदेशियों के आने के पहले जापान और जावा के देशों से हुआ| भारत में पेठा की खेती उत्तर प्रदेश,बिहार, उड़ीसा ,केरल ,तमिलनाडु में व्यापारिक स्तर पर की जाती है|

पेठा में पोषक तत्वों की मात्रा (प्रति 100 ग्राम खाने योग्य भाग में)

नमी      93.0 ग्राम

वसा      0.1 ग्राम

रेशा       2.1 ग्राम

प्रोटीन    0.7 ग्राम

कैल्सियम 12 मिग्रा.

पेठा का उपयोग कच्चा एवं पक्का दोनों अवस्था में किया जाता है, इसका उपयोग औषधि तथा पूजा के लिए भी किया जाता है इसमें विटामिन बी एवं सी अधिक मात्रा में पाई जाती है|पेठा कद्दू के फल का पेस्टिक अल्सर के लिए उपयोगी होता है, इसके फलों में पाए जाने वाले कुकर्बिटेशिन से मरकूरिक़ क्लोराइड के कारण हुई किडनी रोगों को उपचारित किया जा सकता है

 *पेठा की उन्नतशील किस्में* 

 *पूसा उज्जवल (डी.ए. जी. 1):* इस किस्म के फल अर्ध गोलाकार वजन 7 किलो होता है इस किस्म के फल दूरस्थ बाजारों में भेजने के लिए उपयुक्त होते हैं|

 *काशी धवल* यह प्रजाति भारतीय सब्जी अनुसंधान वाराणसी द्वारा विकसित की गई है इस किस्म के फल का औसतन वजन 12 से 15 किलोग्राम होता है यह प्रजाति पेठा मिठाई बनाने के लिए उपयुक्त होती है

 *इंदु* यह किम केरल कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई है इसके फल का आकार गोलाकार होता है फल का औसतन वजन 4.52 किग्रा तथा उत्पादन 250 से 300 कुंतल प्रति हेक्टेयर होता है 

 *जलवायु एवं मृदा* 

पेठा की खेती के लिए गर्म ,ठंड जलवायु लंबा दिन औसतन आद्रता की आवश्यकता पड़ती है ज्यादा गर्मी पड़ने पर पौधों में नर फूल ज्यादा निकलते हैं छोटा दिन, रात की अपेक्षाकृत कम तापमान तथा अधिक आद्रता होने पर मादा फुल अधिक आते हैं जिससे उत्पादन अधिक होता है 

पेठा की खेती के लिए भूमि का औसतन पीएच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए|

 *बुवाई तकनीक* 

1 हेक्टेयर पेठा की बुवाई के लिए 6 से 8  किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है प्रति हेक्टेयर पौधों की संख्या 1150 से 1350 होनी चाहिए|इसकी बुवाई जनवरी से अप्रैल तक संचित अवस्था में और दूसरी बुवाई मुख्य फसल के रूप में कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जून से जुलाई में करते हैं, नदी के किनारे वाले भागों में इसकी बुवाई जनवरी से फरवरी के बीच में करते हैं, बीज की बुवाई के पहले बीज को कार्बेंडाजिम से 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से शोधित कर लेना चाहिए ,एक स्थान पर 2 से 3 बीज 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए |

 *पोषक तत्वों की आवश्यकता तथा प्रबंधन* 

खेत की तैयारी करते समय 250 से 300 कुंतल प्रति हेक्टेयर अच्छी प्रकार सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद खेत में मिलना चाहिए, 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 50 किलोग्राम  पोटाश की आवश्यकता होती है|

 *जल प्रबंधन एवं शस्य क्रियाएं* पेठा की जड़ों का विकास बहुत अच्छा होता है, वर्षा ऋतु की फसल में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती लेकिन गर्मियों में तापमान अधिक होने के कारण 8 से 10 दिनों के अंदर सिंचाई की आवश्यकता होती हैं 

पेठा में फूल आने के समय तथा फल बढ़ने के समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए|

बुवाई के 15 से 20 दिनों बाद अच्छी तरह खरपतवार निकाल कर गुड़ाई कर देनी चाहिए पूरी फसल अवधि में 2 से 4 बार निराई आवश्यक कर देनी चाहिए इसके अलावा खरपतवारनाशी जैसे पेंडामेथिलीन (1कि.ग्राम/हेक्टेयर) जमाव के पहले छिड़काव करें जिसे 30 से 35 दिनों तक खेत खरपतवार मुक्त रहता है खरपतवार नियंत्रण तथा नामी संरक्षित रखने के लिए मल्च के रूप में पुआल या प्लास्टिक मल्च का भी प्रयोग करते हैं 

 *पौध सुरक्षा* 

 *कद्दू का लाल किट ( रेड पंपकिन बीटल)* की रोकथाम के लिए मैलाथियोंन 50 ई.सी. का 1.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बना के छिड़काव करें|

 *फल वेधक मक्खी (फ्रूट फ्लाई)* इस किट का मैगट(लार्वा)फलों को हानि पहुंचाता है यह किट फलों के अंदर का भाग खाकर नष्ट कर देता है यह किट जिस फल पर छेद करके अंडा देता है वह फल टेढ़ा हो जाता है इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 इ.सी. को 200 ग्राम चीनी या गुड़ के साथ 20 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए|

 *उपज तथा तुड़ाई के उपरांत भंडारण*  पेठा की सामान्य किस्म का उत्पादन क्षमता 400 से 450 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है जबकि शंकर प्रजातियां की उपज 500 से 600 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है |सब्जी के लिए हर फल को ही तोड़ते हैं लेकिन पेठा मिठाई बनाने के लिए फल पकने पर ही तोड़ना चाहिए, पहचान के लिए पकने पर इसका फल हल्का चिकन तथा ऊपर सफेद पाउडर सा हो जाता है लेकिन कच्चे फल हल्के रोम युक्त होते हैं और ऊपर सफेद पाउडर नहीं पाया जाता है , अच्छी तरहकर से पका हुआ फल सूखे स्थान पर एवं सामान्य तापक्रम पर 2से 6 महीने तक भंडार किया जा सकता है|

                 

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *