रायपुर, / हिदायतुल्लाह राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (एचएनएलयू), रायपुर ने “उभरती न्यायशास्त्र दृष्टि: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का सामाजिक-वैधानिक प्रभाव” विषय पर एक दिवसीय ऑनलाइन अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का सफल आयोजन किया।
यह सम्मेलन, एचएनएलयू के सेंटर फॉर इंटरनेट गवर्नेंस एंड एआई, स्कूल ऑफ लॉ एंड टेक्नोलॉजी तथा सेंटर फॉर प्राइवेसी एंड डाटा प्रोटेक्शन, स्कूल ऑफ लॉ एंड पब्लिक पॉलिसी के संयुक्त प्रयास से आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य कानून और एआई के बीच तेजी से विकसित हो रहे अंतर्संबंध की पड़ताल करना था, विशेषकर इसके नैतिक, विनियामक और सामाजिक चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए।
सम्मेलन में न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, उड़ीसा उच्च न्यायालय, मुख्य अतिथि रहे। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि राज्य और निजी कंपनियाँ आवश्यकताओं से कहीं अधिक डेटा एकत्र और उपयोग कर रही हैं, जिससे “डेटा प्राइवेसी” एक मिथक बन गई है। उन्होंने ईरान पर इज़राइल के हमले का उदाहरण देते हुए बताया कि किस प्रकार डेटा को हथियार बनाया जा सकता है और व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा पर बल दिया।
उद्घाटन सत्र में कुलपति प्रो. वी.सी. विवेकानंदन ने “रेग्युलेटरी वैक्यूम, असमानताओं की वृद्धि, सीमा-विहीन संचालन और दुष्प्रवृत्त तकनीक” जैसी चिंताओं को रेखांकित करते हुए कहा कि ये लोकतंत्र और न्याय प्रणाली का आभासी भ्रम उत्पन्न कर रही हैं।
इसके बाद आयोजित पैनल चर्चा का विषय था – “रेग्युलेटिंग द अनप्रेडिक्टेबल: लीगल फ़्रेमवर्क्स फ़ॉर सेफ़ एंड एथिकल एआई”।
प्रो. विवेकानंदन ने एआई को “जिन्न की बोतल से बाहर आने” के समान बताया, जिसके अच्छे, बुरे और खतरनाक पहलुओं से निपटने के लिए प्रभावी कानूनी ढाँचे की आवश्यकता है।

कश्यप कोम्पेला, संस्थापक, आरपीए टू एआई रिसर्च, ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सहमति की कमी पर प्रकाश डालते हुए अपना “एआईएम-एआई”।
डॉ. ऋषिराज भारद्वाज, असिस्टेंट प्रोफेसर, महिंद्रा यूनिवर्सिटी, ने कहा कि भारत एआई विनियमन में बहुत पीछे है और मौजूदा कानून (जैसे आईटी एक्ट) पर्याप्त नहीं हैं।
डॉ. (श्रीमती) भावना महादेव, यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, मॉरीशस, ने बताया कि डेटा-आधारित एआई सामाजिक बहिष्करण और भेदभाव को जन्म दे सकता है।
प्रो. (डॉ.) होंग ज़ुए, बीजिंग नॉर्मल यूनिवर्सिटी, ने एआई और बौद्धिक संपदा के अंतर्संबंध पर बल देते हुए कहा कि रचनात्मकता का मानवीय तत्व ही बौद्धिक संपदा की मूल धारा रहनी चाहिए।
सम्मेलन में आठ समानांतर तकनीकी सत्र आयोजित हुए जिनमें “एआई इन कोर्टरूम मैनेजमेंट ऐंड ई-जस्टिस”, “रेग्युलेटरी फ़्रेमवर्क्स ऐंड एथिकल गाइडलाइन्स”, “लायबिलिटी ऐंड अकाउंटबिलिटी इन एआई सिस्टम्स” और “प्राइवेसी ऐंड डाटा प्रोटेक्शन” जैसे विषय शामिल थे। सम्मेलन को 172 सार प्राप्त हुए जिनमें से 60 उत्कृष्ट शोधपत्र प्रस्तुतियों के लिए चुने गए।
समापन समारोह की मुख्य अतिथि सुश्री एन. एस. नप्पिनाई, वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय रहीं। उन्होंने भारत के डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन ऐक्ट में मौजूद कमियों पर प्रकाश डाला, विशेषकर ‘राइट टू बी फ़ॉरगॉटन’ की प्रभावी अनुपस्थिति पर। उन्होंने कहा – “प्राइवेसी इज़ नॉट अबाउट सीक्रेसी बट अबाउट चॉइस” और कानून को वर्चुअल स्पेस जैसे मेटावर्स में होने वाले अपराधों से सुरक्षा प्रदान करने हेतु समयानुकूल बदलने की आवश्यकता बताई।
समापन सत्र में कुलपति प्रो. विवेकानंदन ने कहा कि इतिहास में किसी भी समय प्रौद्योगिकी एक डिसरप्टर रही है और क़ानून एक स्टेबिलाइज़र। उन्होंने चेताया कि यदि एआई की ओपेसिटी, अकाउंटबिलिटी और अनचेक्ड एप्लिकेशन पर नियंत्रण नहीं रखा गया तो यह मानवाधिकारों की वर्षों की उपलब्धियों को कमजोर कर सकती है। सम्मेलन का संचालन डॉ. अतुल एस. जयभये (सचिव) और डॉ. प्रियंका धर (सह-सचिव) ने किया। डॉ. दीपक श्रीवास्तव, कुलसचिव (प्रभारी) और डॉ. अविनाश समल, डीन, सामाजिक विज्ञान, ने प्रतिभागियों का स्वागत किया। आयोजन में छात्र समिति की सक्रिय भूमिका रही जिसमें सुश्री प्रीति तलरेजा, सुश्री आयुष्का पांडे, तनीष्क तिवारी एवं अन्य शामिल थे। यह सम्मेलन न्यायाधीशों, शिक्षाविदों, प्रैक्टिशनर्स और छात्रों को एक साथ लाकर एआई के सामाजिक-वैधानिक प्रभाव पर गहन विमर्श का मंच बना। सम्मेलन ने सार्थक शैक्षणिक योगदान और भविष्य की नीति निर्माण के लिए स्पष्ट रोडमैप प्रस्तुत किया।

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