केज कल्चर से मछली उत्पादन ही नहीं, ग्रामीणों के आय में हो रही वृद्धि……

*हसदेव-बांगो डूबान क्षेत्र में बनेगा छत्तीसगढ़ का पहला एक्वापार्क*

*बड़ी संख्या में आसपास के ग्रामीण कर रहे लाभ अर्जन, आने वाले समय में और भी ग्रामीण होंगे लाभान्वित*

*मछली उत्पादन में देश में छठवें स्थान पर है छत्तीसगढ़*

रायपुर, / मछली पालन और उसकी आमदनी ने हसदेव डूबान के आसपास बसे सैकड़ों ग्रामीणों की जीवन को प्रभावित किया है। केज कल्चर के माध्यम से मछली उत्पादन करने की तरकीब ने न केवल उनके हाथों में रोजगार और जेब में पैसे दिए, अपितु जीवनयापन का एक नया जरिया भी विकसित किया है। मछली उत्पादन से वे आत्मनिर्भर की राह में आगे बढ़ रहे हैं, वहीं विदेशों में खासा डिमांड वाले तिलापिया प्रजाति की मछली का पालन करने से मछली पालन करने वालों का व्यापार का द्वार सात समंदर पार भी खुलने लगा है। केज कल्चर के माध्यम से मछली उत्पादन करने वाले ग्रामीणों द्वारा तिलापिया प्रजाति के मछली का पालन किये जाने से उनकी आमदनी भी बढ़ने की संभावना है। देश के अलग-अलग राज्यों और अनेक शहरों में मछलियों को बेचकर आत्मनिर्भर की राह में कदम बढ़ाने वाले ग्रामीण विदेशों से डिमांड आने पर न सिर्फ खुश है, वे अधिक से अधिक उत्पादन कर ज्यादा से ज्यादा आय अर्जित करने की संभावना जता रहे हैं। 

   प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना अंतर्गत भारत सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ का पहला एक्वा पार्क कोरबा जिले में स्थापित करने कुल 37 करोड़ 10 लाख 69 हजार रूपए की स्वीकृति प्रदान की गई है। यहां हसदेव-बांगो डूबान अंतर्गत एतमानगर और सतरेंगा में एक्वा पार्क के रूप समें विकसित किया जाएगा। खास बात यह हैं कि एक्वा पार्क में एतमानगर में फिड मिल, फिश प्रोसेसिंग प्लांट, हेचरी तथा रिसर्कुलेटरी एक्वा कल्चर सिस्टम भी लगाई जाएगी। फिश प्रोसेसिंग यूनिट प्लांट में मछलियों को साफ-सुथरा कर  मांस को पैकिंग, बोन को अलग करके उसका फिल्ले तैयार कर निर्यात किया जाएगा। हेचरी के माध्यम से मछली बीज का उत्पादन किया जाएगा। बांगो बांध में केज कल्चर के माध्यम से मछली का उत्पादन बढ़ाने के लिए और केज लगाए जाएंगे।

एतमानगर के साथ ही प्रसिद्ध पर्यटन स्थल सतरेंगा में एक्वा पार्क का एक्सटेंशन एवं जागरूकता इकाई स्थापित होगी। यहां एक्वा म्यूजियम बनाया जाएगा। मनोरंजन के लिए अन्य सुविधाएं तथा लोगों को लिए एंगलिंग डेस्क ( गरी खेलने की व्यवस्था ) होगी। इसके साथ ही कैफेटेरिया, फलोटिंग हाउस, मोटर वोट चलाया जाएगा। आसपास के लोग यहां मनोरंजन के साथ मछली पालन को देख सकते हैं और यहां पसंदइ की मछलियां खा और खरीद भी सकते हैं। 

कलेक्टर अजीत वसंत ने भी यहां मत्स्य उत्पादन को बढ़ा देने और ग्रामीणों को प्रोत्साहित करने निमउकछार में मत्स्य पालन स्थल का दौरा किया। उन्होंने मौके पर मत्स्य अधिकारियों से चर्चा कर आवश्यक दिशा निर्देश देने के साथ ही जिले में केज कल्चर को बढ़ावा देने तथा इसके माध्यम से स्थानीय ग्रामीणों-मछुवारों को रोजगार का अवसर प्राप्त होने से आर्थिक लाभ मिलने और केज के विस्तार के लिए जिला प्रशासन द्वारा हर प्रकार सहयोग की बात कही। उन्होंने लैण्डिग सेंटर, प्रोसेसिंग यूनिट, एक्वा पार्क विस्तार तथा एक्वा टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए सहयोग करने की बात कही है।

तिलापिया को कम लागत में पाला जा सकता है क्योंकि यह विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों (कम ऑक्सीजन, उच्च तापमान) में जीवित रह सकती है। यह प्रोटीन, ओमेगा-3, और अन्य पोषक तत्वों का अच्छा स्रोत है। इसका स्वाद हल्का होता है, जो इसे विभिन्न व्यंजनों के लिए उपयुक्त बनाता है। भारत में, तिलापिया का पालन तालाबों, टैंकों और जाल पिंजरों में किया जाता है। यह मछली तेजी से बढ़ती है और 6-8 महीने में बाजार योग्य हो जाती है। आर्थिक महत्व यह मछलीपालन उद्योग में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में मांग में है। तिलापिया सामान्य रूप से रोगों के प्रति प्रतिरोधी होती है। इसमें कैलोरी कम होती है और जल्दी पाचन होने वाली मछली होने के कारण जो षरीर के वजन के प्रति जागरूक है वे इसे अधिक पसंद करते हैं।  पंगेशियस (बासा) मछली- इस मछली में बोन कम होता है। और इसे कई प्रकार से बनाया जा सकता है। सस्ती मछली है इसलिए इसकी मांग अधिक है।

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