कालाय तस्मै नम : काल की गति विचित्र

   भोलानाथ मिश्र , पत्रकार / प्राध्यापक

14 जून , 2025 शनिवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय , वाराणसी में लगभग 42 साल तक विभिन्न महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों

पर रहकर अब कृषि कर्म को ऋषि कर्म मानकर जन सेवा कर रहे डॉक्टर मार्कण्डेय राम पाठक से काल की गति को लेकर सार्थक चर्चा हुई । काल की गति अति विचित्र है । इसेआज तक कोई पारिभाषित नहीं कर पाया।काल को – “ काल महा दुरतिक्रम भारी “  कह कर इसकी दुर्धर्शता एवं दुर्लंघ्यता  गोस्वामी तुलसी दासजी ने भी बतलाई है।   काग भुशुण्डि जैसे एकाध कालजयी भक्तों को छोड़कर काल से कोई नहीं बच पाया चाहे किसी ने जितना यत्न प्रयत्न तप किया हो।

बाबा ने लिखा है- 

तुलसी जसि भवितव्यता तैसी मिलइ सहाइ।

आपुनु आवइ ताहि पहिं ताहि तहाँ लै जाइ॥

मृत्यु की गति बहुत विचित्र है वह जीव के भवितव्य के अनुसार कार्य करती है।जहाँ , जब और जैसे मृत्यु का विधान है वैसी ही स्थिति बन जाती है।यह चौपाई महा प्रतापी राजा प्रताप भानु के प्रसंग मे टिप्पणी के रूप मे बाबा ने लिखी है ।पर बस्तुत:यह मृत्यु का सिद्धांत है । महा प्रतापी राजा प्रतापभानु शिकार खेलने निकले और बाराह का पीछा करते करते घनघोर जंगल मे साथियों से विलग , मार्ग भूल कर भटक गए और स्वयं ऐसी जगह पहुँच गए जो उनके विनाश का कारण बना।

आप देखें अहमदाबाद मे मेडिकल कालेज के छात्र अपने हास्टल के भोजन कक्ष मे आराम से दोपहर का लंच ले रहे थे। इनका बिमान हादसे से दूर दूर का कोई लेना देना नही था पर बिमान क्रैश हुआ और ये मारे गए – “और करै अपराध कोउ और पाव फल भोग “ यह – अति विचित्र भगवंत गति – है जिसे समझना कठिन है। इसी भीषण विमान दुर्घटना मे जहाँ सारे लोगमारे गए वहीं एक अद्भुत चमत्कार के रूप मे एक व्यक्ति ज़िंदा बच गया।इसे कैसे व्याख्यायित करेंगे ?

भागवत भाव सम्पन्न प्राणी इसे भगवद् अनुग्रह के रूप में ईश्वरीय चमत्कार कहेंगे और सामान्य जन संयोग।

मै इस पर विचार कर रहा था- तो जिज्ञासा वश अयोध्या के एक संत से इस दुर्घटना के विषय मे पूछा।उनका मानना था कि अनेकानेक जन्म जन्मांतर के कर्म कब किस रूप मे घटित होंगे यह जान पाना कठिन है। इस प्रसंग मे उन्होंने महाराज चित्रकेतु की कथा सुनाई । महाराज चित्रकेतु की तेरह सौ रानियों से विवाह के उपरांत भी पुत्र नहीं हुआ।हार कर उन्होंने ऋषि आज्ञा से एक और विवाह किया जिससे उन्हे एक सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ ।कालांतर मे सारी रानियों ने मिलकर उस पुत्र का वध कर दिया ।  महर्षि नारद ने शोक संतप्त राजा के आग्रह पर उनके पुत्र को यमलोक से बुलाया । पर पुत्र ने कहा – यहाँ कोई किसी का पुत्र नहीं है- मेरा कोई पिता है न माता।राजा को सत्य का बोध हुआ।

महर्षि नारद ने बतलाया कि पूर्व जन्म मे यह बालक तपस्वी ब्रह्मचारी था – हवन की समिधा मे चिटियाँ थीं जो हवनके साथ जल गईं और वहीं चिटियाँ जन्मान्तर मे राजा सत्यकेतु की तेरह सौ रानियाँ बनीं और वह पूर्ब जन्म का ब्रह्मचारी  राजा का पुत्र-  जिसे बदला लेने केलिए सबने मिलकर मार दिया।  इस धरा धाम पर मानव योनि मे जन्म लेने वाली आत्मायें पूर्व जन्मार्जित  कर्मानुसार तद्वत  इस भोग योनि मे कर्म फल का भोग करते हुए मृत्यु तक की यात्रा पूर्ण करती हैं।

इसे संयोग कह लें या ईश्वरीय विधान -कि एकसाथ इतने लोगों के कर्मबंधन की ऐसी परिणति का योग उपस्थित हुआ जिससे यह दुर्घटना घटित हो गई और सारे लोग एकसाथ काल कवलित हो गए। 

बस्तुत: – काल करम गति अगति जीव की सब हरि हाथ तुम्हारे। – सब कुछ परमात्मा के हाथ है।

काल ही भगवाका धनुष है और  लव, निमेष , परमाणु, युग,वर्ष और कल्पादि  उसके गंणना के जितने अवयव हैं सारे बांण हैं ….

लव निमेष परमाणु युग  बरस कलप सर चंड।

भजसि न मन तेहि राम को काल जासु कोदंड ॥

इसीलिए संतों ने कहा है कि हे मन ! तू दीन दयाल , कृपा सिंधु , करुणा सागर प्रभु श्रीराम का भजन क्यों नहीं करता जो सर्वशक्तिमान काल के नियंता हैं…. इन मार्मिक अनुभूतियों के साथ अहमदाबाद विमान दुर्घटना मे काल कवलित हुए यात्रियों – जीवात्माओं के प्रति मै अपनी प्रणत श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए सर्वांतरयामी अपने प्रभु  – करुणासिंधु श्रीराम जी से करबद्ध प्रार्थना करता हूँ कि वे इन्हें सद्गति प्रदान करें… धन्यास्ते कृतिन: पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम्

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