समन्वयवादी थे गोस्वामी तुलसीदास – बद्रीनाथ पाण्डेय

गोस्वामी तुलसीदास की 528 वीं और मुंशी प्रेमचंद की 145 वीं जयंती समारोह

सोनभद्र। ईश्वर प्रसाद स्नातकोत्तर महाविद्यालय, देवरा राजा (तेंदू) का सभागार गुरुवार को गोस्वामी तुलसीदास की 528 वीं और मुंशी प्रेमचंद की 145 वीं जयंती समारोह से गुलजार था। बीए, बीकॉम, एमए के छात्र-छात्राओं के विचार सावन की बरसात की भांति बरस रहे थे और मंत्रमुग्ध होकर प्रबंध तंत्र और महाविद्यालय परिवार सारगर्भित तथ्यों को आंकलन कर रहा था।
   छात्र-छात्राओं के भाषण प्रतियोगिता में प्रेरक बातें कहीं गईं। कहा गया कि संत गोस्वामी तुलसीदास सगुण भक्ति के पथ पर चलने वाले पथिक थे। रामचरितमानस में उनकी समन्वयवादी दृष्टिकोण का विस्तृत परिचय प्राप्त होता है। तुलसीदास की इस समन्वयवादिता का ही यह परिणाम है कि इन्होंने सगुण और निर्गुण दोनों को अपने ढंग से सहेजने और महत्व देने का प्रयास किया। इसीलिए रामचरितमानस में इन्होंने स्पष्ट शब्दों में लिखा है। “अगुन सगुन नहि कछु भेदा“। शैव और वैष्णव के एकत्व के वे पक्षधर थे। “शिव द्रोही मम दास कहावा सो नर मोहि सपनेहू नहि भावा“। तुलसीदास ने कहा-“सियाराममय सब जग जानी“।
   विद्वानों ने कहा कि इस शताब्दी के महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद की कहानियां अपने समय और समाज के मर्मस्पर्शी कथा चित्र हैं। हिंदी-उर्दू कथा साहित्य की कर्मभूमि बदलकर, यथार्थवादी कायाकल्प करने वाले अमर कथाकार प्रेमचंद के साहित्य में आम आदमी का दर्द समाहित है। कलम के सिपाही धनपत राय श्रीवास्तव नबाब राय से मुंशी प्रेमचंद बनने तक लगभग सवा तीन सौ कहानियां और दर्जन भर उपन्यास लिखकर समाज को जागृत किया।
   कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय के संरक्षक बद्रीनाथ पांडेय एडवोकेट ने चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन और माल्यार्पण करके किया। प्रबंध समिति के प्रेमनाथ पांडेय, हेमनाथ पांडेय, प्रबंधक मनीष पांडेय और समाजशास्त्री डॉ. विमलेश कुमार त्रिपाठी ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच जयंती समारोह का शुभारंभ किया। स्वागत भाषण और विषय प्रवर्तन करते हुए उप प्राचार्य हिंदी के सहायक आचार्य राजेश कुमार द्विवेदी ने तुलसीदास और मुंशी प्रेमचंद के कृतित्व और व्यक्तित्व पर सम्यक प्रकाश डाला। भाषण प्रतियोगिता में खुशी, आरती, पूजा तृतीय सेमेस्टर बीए, प्रीति यादव, सुनैना मौर्या, प्रियंका मौर्या, अलका मौर्या, सेमेस्टर प्रथम, श्रुति और वंदना मौर्या बीकॉम पंचम सेमेस्टर ने प्रतिभाग किया।
   “मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में आम आदमी“ विषय पर बृजेश सिंह पटेल, “प्रेमचंद की मर्मस्पर्शी कथाएं“ विषय पर गीता देवी मौर्या, “तुलसीदास का समन्वयवादी दृष्टिकोण“ पर मृत्युंजय नारायण भारद्वाज ने सारगर्भित विचार व्यक्त किए। समाजशास्त्री डॉ. विमलेश कुमार त्रिपाठी ने दोनों महापुरुषों की जयंती के महत्व और उनके कृतित्व को उदाहरण देकर रेखांकित किया। संचालन भोलानाथ मिश्र और अध्यक्षता संरक्षक बद्रीनाथ पांडेय एडवोकेट ने किया।
   इस अवसर पर एमए, समाजशास्त्र और गृहविज्ञान के छात्र-छात्राओं समेत बीए, बीकॉम और एमए प्रथम वर्ष में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थी, कार्यालय अधीक्षक विनीत पांडेय, वाणिज्य संकाय के सहायक आचार्य विनय प्रजापति, भूगोल के सुदीप दुबे, मध्यकालीन इतिहास, समाजशास्त्र के आचार्य विमलेश कुमार पाठक, कार्यालय अधीक्षक विनीत पाण्डेय, रामजी तिवारी, सरिता, संदीप, श्यामा समेत महाविद्यालय का समस्त स्टाफ सफल आयोजन का साक्षी बना। बीए , बी काम, एम ए प्रथम सत्र में प्रवेश लेने आए अभ्यर्थी भी बड़ी संख्या में इस अवसर पर उपस्थित रहे।

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