(युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी की 101वीं जयंती 25 दिसम्बर 2025 पर विशेष कविता)
भारत माँ का सपूत अटल, हिमालय-सा ऊँचा भाल,
जनता के मन का प्रधानमंत्री, जन-जन का रखवाला लाल।
सत्ता नहीं, सेवा थी जीवन, राजनीति बनी साधना,
सरल, संवेदनशील व्यक्तित्व, जिसमें बसती थी करुणा।
अविवाहित तन, पर भारत था उनका विस्तृत परिवार,
करोड़ों युवा-बालक बने उनके स्नेह के अधिकार।
संघ-शाखा से संसद तक, निष्ठा का उजला पथ,
विचारों की लौ जलाए रखी हर संघर्ष, हर यथार्थ-सथ।
कवि की वाणी, ओज के शब्द, संसद में गूँज उठे,
तर्क और मर्यादा के आगे विपक्ष भी झुक उठे।
पोखरण में शक्ति दिखाई, विश्व को दिया संदेश,
भारत अब निर्बल नहीं, चलता है अपने स्वदेश।
लाहौर बस से शांति बढ़ाई, कारगिल में वीरता आई,
विजयश्री का सेहरा बाँधा, भारत की आन बढ़ाई।
स्वर्णिम पथ से राष्ट्र जोड़ा, विकास को दी पहचान,
अटल बिहारी वाजपेयी, युगों तक अमर महान।
ग्वालियर की धरती से निकले, ब्रज-माटी का मान,
संघ-प्रचारक से प्रधानमंत्री तक, अद्भुत थी पहचान।
नेहरू की भविष्यवाणी सच हुई, भारत को मिला महान,
विदेशों में हिंदी की गूँज से बढ़ा देश का सम्मान।
भारत रत्न से विभूषित अटल, मुस्कान बनी पहचान,
भीष्म-पितामह कहलाए, राजनीति के युगपुरुष महान।
16 अगस्त को युग थम गया, पर विचार हुए अमर,
अटल नाम की यह ज्योति रहे, भारत का पथ-प्रहर।

रचियता/लेखक- – ब्रह्मानंद राजपूत
(Brahmanand Rajput)
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