पीएम ने नोटबंदी के तीन प्रमुख लक्ष्य बताए थे-काले धन की वापसी, जाली नोटों पर लगाम और टेरर फंडिंग पर रोक , क्या इनमें से एक भी लक्ष्य प्राप्त हुआ?
सोनभद्र। कांग्रेस नेता एवं अधिवक्ता धीरज पांडेय ने कहा कि देश 8 नवंबर,2016 को कभी नहीं भूल सकता। इसी दिन देश के प्रधानमंत्री मोदी ने अचानक टीवी पर आकर घोषणा की थी कि आज रात 8 बजे से 1000 और 500 के नोट चलन में नहीं रहेंगे और यहीं वो दिन था, जब आजाद भारत के सबसे बड़े घोटाले की नींव रखी गयी थी। पीएम ने नोटबंदी के तीन प्रमुख लक्ष्य बताए थे-काले धन की वापसी, जाली नोटों पर लगाम और टेरर फंडिंग पर रोक , क्या इनमें से एक भी लक्ष्य प्राप्त हुआ? नोटबन्दी के समय लगभग 15.41 लाख करोड़ मूल्य के नोट मार्केट में मौजूद थे, स्टेट बैंक के आंकड़ों के अनुसार इस धनराशि का 20-30 प्रतिशत हिस्सा जाली नोट अथवा ब्लैक मनी के रूप में था। स्टेट बैंक और आरबीआई के मुताबिक यह उम्मीद थी कि कम से कम 2.5 लाख करोड़ रुपया बैंकों में वापस नहीं आएगा और इस तरह ढाई लाख करोड़ का फर्जी धन इंडियन इकॉनमी से साफ हो जाएगा। लेकिन हुआ ठीक उल्टा आरबीआई के ही अनुसार 15.31 लाख करोड़ रुपये बैंक में वापस आ गए, अर्थात 99.99 प्रतिशत नोट जाली थे ही नहीं। ब्लैक मनी अवश्य होंगे पर उस समय हवाला और बैंक अधिकारियों की मदद से लोगों ने धड़ल्ले से ‘कुछ परसेंट’ देकर नोट बदली कराए थे, ये हम सब जानते हैं। अर्थात् जिस स्कीम को भ्रष्टाचार पर प्रहार बताया जा रहा था, वहीं स्कीम ‘मनी लांड्रिंग’ योजना के तहत माल कमाने का जरिया बनकर रह गयी। शेष बचा दस हजार करोड़, जो सिस्टम में आया नहीं। इस धन का बड़ा हिस्सा नेपाल, भूटान अथवा तमाम देशों में बसे एनआरआई के पास था, जो नोट बदलवा ही नहीं पाए। तो ऐसा भी नहीं है कि यह पूरा दस हजार करोड़ काला धन अथवा फेक करंसी था। बहरहाल आर्गुमेंट के लिए दस हजार करोड़ का फायदा गिन भी लिया जाए तो नोटबन्दी के दौरान केंद्र सरकार ने नए नोटों की छपाई और अन्य मदों में ही 16000 करोड़ फूंक दिये।
धीरज पांडेय ने कहा कि उस दौरान गयी नौकरियों, बर्बाद हुए छोटे कामधंधों और जीडीपी गिरावट को भी संज्ञान में लें तो नोटबन्दी से देश को न्यूनतम सवा लाख करोड़ से लेकर अधिकतम 5 लाख करोड़ की चपत लगी है। यानी न्यूनतम नुकसान के हिसाब से भी चलें तो दस हजार करोड़ के फायदे के लिए सवा लाख करोड़ फूंक दिए गए। मोटा-मोटी एक रुपये के फायदे के लिए दस रुपये का खर्च नोटबन्दी लूट का मास्टर स्ट्रोक था। जहां तक टेरर फंडिंग की बात है तो नोटबन्दी वाले महीने में ही तीन बड़े आर्मी अटैक हुए। आतंकवाद कितना खत्म हुआ, सब जानते हैं कि पुलवामा से लेकर पहलगाम तक वास्तव में 2016 की नोटबन्दी आजाद भारत का सबसे बड़ा फ्राड, स्कैम या घोटाला था, जिसकी मूर्खता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि बड़े नोटों को खतरा बता कर 500-1000 का नोट बंद कर दिया गया और दुगनी कीमत का 2000 का चिप वाला नोट मार्किट में ले आये, जो इतना रद्दी था कि 4 दिन बाद उसका फेक वर्जन मार्किट में घूम रहा था, अंततः दो साल बाद वापस लेना पड़ा था आज दो हज़ार की नोट कहीं देखने को भी नही मिल रहा वास्तव में काला धन मौजूद था विदेश में मौजूद स्विस खातों में, वहां से तो मोदी एक अठन्नी वापस न ला पाए अलबत्ता देश पर नोटबन्दी नामक एक त्रासदी अवश्य थोप दिये। लोगों को अनावश्यक लाइन में लगाया। सैकड़ों मौतें हुईं। काम धंधे बर्बाद हुए और आम आदमी का जीवन कष्टमय बना आज तक नोटबन्दी से बड़ा मूर्खतापूर्ण चैप्टर भारत के इतिहास में नहीं लिखा गया है।
बहरहाल कपड़ा ज्यादा कट जाए तो दर्जी कच्छे के फायदे गिनाने लगता है। आगे श्री पांडेय ने कहा कि देश की जनता इतना विचार अवश्य करें कि एक आदमी कहता था कि-बस 50 दिन दे दो नोटबन्दी सफल न हो तो चैराहे पर बुला कर मुझे चाहें जो सजा देना अब तो 50 दिन नहीं, 9 साल बीत चुके हैं भाजपा के लोग पता कर के बताएं कि पीएम आखिरी बार नोटबन्दी शब्द को अपनी जुबान पर कब लाये थे? या किसी सभा में नोटबंदी को उपलब्धि बताकर वोट मांगे हों? सच्चाई यह है कि नोटबन्दी आज़ाद भारत का सबसे बढ़ा घोटाला है इसलिए भाजपा के लोग अन्य योजनाओं की तरह नोटबन्दी का उत्सव व वर्षगांठ मनाना तो दूर नोटबन्दी का नाम से ही बौखला जाते हैं।

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