प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आईएनएस विक्रांत पर दिवाली मनाई
आईएनएस विक्रांत सिर्फ़ एक युद्धपोत नहीं है, यह 21वीं सदी के भारत की कड़ी मेहनत, प्रतिभा, प्रभाव और प्रतिबद्धता का प्रमाण है: प्रधानमंत्री
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज आईएनएस विक्रांत पर दिवाली समारोह के दौरान सशस्त्र बलों के जवानों को संबोधित किया। आज के दिन को एक अद्भुत दिन, एक अद्भुत क्षण और एक अद्भुत दृश्य बताते हुए, श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि एक ओर विशाल महासागर है, तो दूसरी ओर है, भारत माता के वीर सैनिकों की अपार शक्ति। उन्होंने कहा कि जहाँ एक ओर अनंत क्षितिज और असीम आकाश है, वहीं दूसरी ओर आईएनएस विक्रांत की असीम शक्ति है, जो अनंत शक्ति का प्रतीक है। प्रधानमंत्री ने कहा कि समुद्र पर सूर्य की रोशनी की चमक, दीपावली के दौरान वीर सैनिकों द्वारा जलाए गए दीपों की तरह है, जो दीपों की एक दिव्य माला बनाती है। उन्होंने कहा कि मेरा यह सौभाग्य है कि मैं भारतीय नौसेना के वीर जवानों के बीच यह दिवाली मना रहा हूँ।

आईएनएस विक्रांत पर बिताई अपनी रात को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि इस अनुभव को शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है। उन्होंने बताया कि समुद्र में गहरी रात और सूर्योदय ने इस दिवाली को कई मायनों में यादगार बना दिया। आईएनएस विक्रांत से, प्रधानमंत्री ने देश के सभी 140 करोड़ नागरिकों को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ दीं।
आईएनएस विक्रांत को राष्ट्र को सौंपे जाने के क्षण को याद करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि उस समय उन्होंने कहा था—विक्रांत भव्य, विशाल, विहंगम, अद्वितीय और असाधारण है। प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा, “विक्रांत केवल एक युद्धपोत नहीं है; यह 21वीं सदी के भारत की कड़ी मेहनत, प्रतिभा, प्रभाव और प्रतिबद्धता का प्रमाण है।” उन्होंने याद दिलाया कि जिस दिन राष्ट्र को स्वदेश निर्मित आईएनएस विक्रांत प्राप्त हुआ, उसी दिन भारतीय नौसेना ने औपनिवेशिक विरासत के एक प्रमुख प्रतीक का त्याग कर दिया था। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि छत्रपति शिवाजी महाराज से प्रेरित होकर, नौसेना ने एक नया ध्वज अपनाया।
प्रधानमंत्री ने कहा, “आईएनएस विक्रांत आज आत्मनिर्भर भारत और मेड इन इंडिया का एक सशक्त प्रतीक है।” उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि स्वदेशी रूप से निर्मित आईएनएस विक्रांत, समुद्र को चीरता हुआ, भारत की सैन्य शक्ति को दर्शाता है। उन्होंने याद दिलाया कि कुछ महीने पहले ही, विक्रांत के नाम ने पाकिस्तान की नींद उड़ा दी थी। प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि आईएनएस विक्रांत एक ऐसा युद्धपोत है, जिसका नाम ही दुश्मन के दुस्साहस का अंत करने के लिए पर्याप्त है।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर भारतीय सशस्त्र बलों का विशेष अभिनंदन किया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारतीय नौसेना द्वारा उत्पन्न किया गया भय, भारतीय वायु सेना द्वारा प्रदर्शित असाधारण कौशल, भारतीय थल सेना की वीरता और तीनों सेनाओं के बीच असाधारण समन्वय ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को शीघ्र आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने कहा कि इसमें शामिल सभी सैन्यकर्मी बधाई के पात्र हैं।
श्री मोदी ने कहा कि जब दुश्मन सामने हो और युद्ध आसन्न हो, तो जिस पक्ष के पास स्वतंत्र रूप से लड़ने की ताकत होती है, उसे हमेशा फायदा होता है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि सशस्त्र बलों को मज़बूत बनाने के लिए आत्मनिर्भरता ज़रूरी है। प्रधानमंत्री ने गर्व व्यक्त किया कि पिछले एक दशक में भारत की सेनाएँ आत्मनिर्भरता की ओर लगातार आगे बढ़ी हैं। उन्होंने कहा कि सशस्त्र बलों ने हज़ारों ऐसी वस्तुओं की पहचान की है जिनका अब आयात नहीं किया जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप अब अधिकांश आवश्यक सैन्य उपकरण घरेलू स्तर पर निर्मित किए जा रहे हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि पिछले 11 वर्षों में भारत का रक्षा उत्पादन तीन गुना से भी ज़्यादा बढ़कर पिछले साल 1.5 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया है। एक और उदाहरण देते हुए, श्री मोदी ने राष्ट्र को बताया कि 2014 से अब तक भारतीय शिपयार्ड ने नौसेना को 40 से ज़्यादा स्वदेशी युद्धपोत और पनडुब्बियाँ प्रदान की हैं। उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान में औसतन हर 40 दिनों में एक नया स्वदेशी युद्धपोत या पनडुब्बी नौसेना में शामिल हो रही है।
प्रधानमंत्री ने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ब्रह्मोस और आकाश जैसी मिसाइलों ने अपनी क्षमता साबित की है। दुनिया भर के कई देशों ने अब इन मिसाइलों को खरीदने की रुचि व्यक्त की है।” उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत तीनों सेनाओं के लिए हथियारों और उपकरणों के निर्यात की क्षमता का निर्माण कर रहा है। श्री मोदी ने कहा, “भारत का लक्ष्य दुनिया के शीर्ष रक्षा निर्यातकों में शामिल होना है।” उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में भारत के रक्षा निर्यात में 30 गुनी से भी ज़्यादा वृद्धि हुई है। उन्होंने इस सफलता का श्रेय रक्षा स्टार्टअप्स और स्वदेशी रक्षा इकाइयों के योगदान को दिया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि शक्ति और क्षमता के संबंध में भारत की परंपरा हमेशा से “ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय” के सिद्धांत पर आधारित रही है, जिसका अर्थ है कि
प्रधानमंत्री ने कहा कि जैसे-जैसे भारत तेज़ी से प्रगति कर रहा है, यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं कि वैश्विक दक्षिण के सभी देश साथ-साथ आगे बढ़ें। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत ‘महासागर समुद्री विजन’ पर काम कर रहा है और कई देशों के लिए विकास भागीदार बन रहा है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि जब भी ज़रूरत पड़ी है, भारत दुनिया में कहीं भी मानवीय सहायता देने के लिए तैयार रहा है। अफ्रीका से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक, आपदा के समय, दुनिया भारत को एक वैश्विक साथी के रूप में देखती है। श्री मोदी ने याद दिलाया कि 2014 में, जब पड़ोसी मालदीव को जल संकट का सामना करना पड़ा, तो भारत ने ‘ऑपरेशन नीर’ शुरू किया और नौसेना ने उस देश में स्वच्छ जल पहुँचाया। 2017 में, जब श्रीलंका विनाशकारी बाढ़ से जूझ रहा था, तो भारत ने सबसे पहले मदद का हाथ बढ़ाया था। 2018 में, इंडोनेशिया में सुनामी आपदा के बाद, भारत राहत और बचाव कार्यों में इंडोनेशिया के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहा। इसी तरह, चाहे वह म्यांमार में भूकंप से हुई तबाही हो या 2019 में मोज़ाम्बिक और 2020 में मेडागास्कर में संकट, भारत सेवा भावना के साथ हर जगह पहुँचा।
श्री मोदी ने कहा, “भारत के सशस्त्र बलों ने सभी क्षेत्रों – भूमि, समुद्र और वायु – और हर परिस्थिति में राष्ट्र की सेवा की है।” उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि नौसेना भारत की समुद्री सीमाओं और व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए समुद्र में तैनात है, जबकि वायु सेना आसमान की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। ज़मीन पर, तपते रेगिस्तान से लेकर बर्फीले ग्लेशियरों तक, सेना; बीएसएफ और आईटीबीपी के जवानों के साथ, चट्टान की तरह अडिग खड़ी है। उन्होंने आगे कहा कि विभिन्न मोर्चों पर, एसएसबी, असम राइफल्स, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और खुफिया एजेंसियों के जवान भारत माता की लगातार सेवा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका के लिए भारतीय तटरक्षक बल की भी सराहना की और भारत के समुद्र तटों की दिन-रात सुरक्षा के लिए नौसेना के साथ उनके निरंतर समन्वय का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के इस महान अभियान में उनका योगदान बहुत अधिक है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के सुरक्षा बलों के पराक्रम और साहस के कारण, राष्ट्र ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है – माओवादी आतंकवाद का उन्मूलन। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत अब नक्सल-माओवादी उग्रवाद से पूर्ण मुक्ति के मुहाने पर है। 2014 से पहले, लगभग 125 जिले माओवादी हिंसा से प्रभावित थे; आज यह संख्या घटकर केवल 11 रह गई है और केवल 3 जिले ही इससे गंभीर रूप से प्रभावित हैं। श्री मोदी ने कहा कि 100 से अधिक जिले अब माओवादी आतंक के साये से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं और पहली बार आज़ादी की साँस ले रहे हैं और दिवाली मना रहे हैं।
श्री मोदी ने कहा कि सेनाएँ केवल धारा के अनुगामी नहीं हैं; उनमें धारा को दिशा देने की क्षमता है, समय का नेतृत्व करने का साहस है, अनंत को पार करने की शक्ति है और दुर्गम को पार करने की भावना है। उन्होंने घोषणा की कि जिन पर्वत शिखरों पर हमारे सैनिक अडिग खड़े हैं, वे भारत के विजय स्तंभ बने रहेंगे और समुद्र के नीचे की विशाल लहरें भारत की विजय को प्रतिध्वनित करती रहेंगी। इस गर्जना के बीच, एक ही स्वर उठेगा—’भारत माता की जय!’ इसी उत्साह और दृढ़ विश्वास के साथ, प्रधानमंत्री ने एक बार फिर सभी को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए अपने संबोधन का समापन किया।

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