राम की करुणा से विभीषण का उद्धार और समुंदर पर बना धर्म का द्वार

रेणुकूट। हिण्डाल्को रामलीला परिषद के तत्वावधान में रामलीला के सातवें दिन सीता की खोज, विभीषण हनुमान मिलन, अशोक वाटिका का प्रसंग, रावण-हनुमान संवाद, विभीषण शरणागति, लंका दहन, विभीषण शरणागति और सेतुबंध रामेश्वर स्थापना की लीला का जीवंत चित्रण किया गया। हनुमान जी जब अशोक वाटिका में जाते हैं और विभीषण से भेंट होती है तो उनके मधुर वचनों से विभीषण का हृदय रामभक्ति से भर उठता है।

माता-सीता से भेंट कर हनुमान ने राम की मुद्रिका देकर उन्हें आश्वस्त किया। रावण और हनुमान का संवाद दर्शकों के लिए अत्यंत रोमांचक रहा। हनुमान की पूँछ से लगी आग में पूरी लंका जल उठी। रावण को उनके अनुज विभीषण द्वारा समझाया जाता है कि राम और आप संधि कर लीजिए और माता जानकी को आदर सहित राम को सौंप दीजिए, ऐसा करने से आपका ही भला होगा। यह सुनकर रावण क्रोधित हो जाता है, विभीषण को पैर की ठोकर मारकर लंका से बाहर कर देता है। विभीषण राम जी की शरण मे आ जाता है, राम जी विभीषण से पूछते है कि सागर को कैसे पार किया जाए। तब विभीषण के बताए अनुसार राम जी सागर से रास्ता मांगने के लिए उससे विनय करते है। तीन दिन बीत जाने के पश्चात राम जी क्रोध से सागर को सुखाने के लिए ब्रह्मास्त्र का संधान करते है। तब सागर प्रकट हो जाता है। क्षमा याचना करता है और राम जी को सेतु बनाने के लिए मार्ग बताता है। 

नल-नील के नेतृत्व में सेतु निर्माण का कार्य प्रारंभ होता है और राम जी रामेश्वर भोले नाथ की स्थापना करते हैं। मंचन से पहले मुख्य अतिथि जिला श्रम आयुक्त अरुण कुमार व उनकी धर्मपत्नी, कर्मचारी संबंध प्रमुख अजय कुमार सिन्हा व उनकी धर्मपत्नी व अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने वैदिक विधि-विधान से गणेश पूजन कर मंचन का विधिवत शुभारंभ किया। 

इस दौरान रामलीला परिषद के अध्यक्ष पी.के. उपाध्याय, सचिव आदित्य प्रकाश पांडे, कोषाध्यक्ष पद्माकर मिश्रा एवं निर्देशक राजेन्द्र सिंह शेखावत मौजूद रहे।

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