अहमदाबाद/ भारत में फुटबॉल पश्चिम बंगाल, केरल, गोवा और पूर्वोत्तर राज्यों में बेहद लोकप्रिय है। इन राज्यों में फुटबॉल केवल खेल नहीं, बल्कि जीवनशैली का हिस्सा है। लेकिन गुजरात, जो आर्थिक रूप से सशक्त है और खेल इंफ्रास्ट्रक्चर की मजबूत नींव रख सकता है, वह अभी तक राष्ट्रीय फुटबॉल परिदृश्य में अपनी खास पहचान नहीं बना पाया है।

हालांकि, बीते कुछ वर्षों में गुजरात में फुटबॉल के प्रति जागरूकता बढ़ी है और इसे करियर के रूप में अपनाने वाले युवा सामने आए हैं। गुजरात स्टेट फुटबॉल एसोसिएशन (GSFA) भी खेल के विकास के लिए सक्रिय भूमिका निभा रहा है। लेकिन अभी भी गुजरात में क्रिकेट का बोलबाला है और फुटबॉल को वह सम्मान नहीं मिला है, जो अन्य राज्यों में है। अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा जैसे शहरों में फुटबॉल स्टेडियम और एकेडमी जरूर हैं, लेकिन फुटबॉल संस्कृति अभी भी कमजोर है।
गुजरात की टीम संतोष ट्रॉफी जैसे राष्ट्रीय टूर्नामेंट में हिस्सा लेती है, लेकिन अब तक कोई बड़ी उपलब्धि नहीं दर्ज कर पाई है। गुजरात की कोई भी क्लब न तो आईएसएल (ISL) और न ही आई-लीग (I-League) में जगह बना सकी है। इसका सीधा मतलब है कि गुजरात में फुटबॉल के लिए मजबूत इकोसिस्टम की कमी है।
फुटबॉल को गुजरात की दिनचर्या का हिस्सा बनाने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा। साथ ही, राज्य स्तर पर ज्यादा से ज्यादा प्रतियोगिताएं करानी होंगी। इसके अलावा, फुटबॉल के लिए समर्पित स्टेडियम, ट्रेनिंग सेंटर और पेशेवर क्लबों का गठन भी जरूरी है। उद्योग जगत और कॉरपोरेट्स को भी आगे आकर फुटबॉल को समर्थन देना चाहिए।
गुजरात स्टेट फुटबॉल एसोसिएशन (GSFA) पिछले कुछ वर्षों से “गुजरात सुपर लीग” का आयोजन कर रहा है, जिससे नई प्रतिभाओं को मंच मिल रहा है। राज्यसभा सांसद और GSFA के अध्यक्ष परिमल नथवाणी का कहना है कि गुजरात में फुटबॉल की प्रगति के लिए सरकार, खेल प्रशासन, निवेशक और खेलप्रेमियों का संयुक्त प्रयास जरूरी है। सही रणनीति के साथ गुजरात भी भारतीय फुटबॉल में अपनी मजबूत पहचान बना सकता है।

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