छत्तीसगढ़ की आर्द्रभूमि विषय पर भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, छत्तीसगढ़ शाखा की संगोष्ठी सम्पन्न

रायपुर, / भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, छत्तीसगढ़ शाखा, रायपुर द्वारा “छत्तीसगढ़ की आर्द्रभूमि (Wetlands of Chhattisgarh)” विषय पर वक्तव्य एवं परिचर्चा संबंधी बैठक का आयोजन सर्किट हाउस, सिविल लाइंस रायपुर के बोर्ड रूम में किया गया। बैठक की अध्यक्षता सुयोग्य मिश्रा, पूर्व मुख्य सचिव, छत्तीसगढ़ ने की। कार्यक्रम में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, पर्यावरण विशेषज्ञ एवं प्रबुद्ध नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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मुख्य वक्ता प्रो. (डॉ.) एम. एल. नायक का व्याख्यान,कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. (डॉ.) एम. एल. नायक, अध्यक्ष छत्तीसगढ़ जैव विविधता रिव्यू कमिटी तथा विशेषज्ञ सदस्य छत्तीसगढ़ वेटलैंड बोर्ड, वाइल्डलाइफ बोर्ड एवं छत्तीसगढ़ बायोटेक्नोलॉजी प्रमोशन सोसायटी रहे। इस अवसर पर उनके अकादमिक एवं प्रशासनिक जीवन-परिचय से अवगत कराते हुए बताया गया कि वे पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज़ के विभागाध्यक्ष तथा महानिदेशक, छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं तथा उन्हें दीर्घकालीन शिक्षण अनुभव प्राप्त है।

अध्यक्षीय उद्बोधन में विषय की प्रासंगिकता पर प्रकाश अध्यक्षीय उद्बोधन में सुयोग्य मिश्रा ने आर्द्रभूमियों के संरक्षण को राज्य के लोक प्रशासन से सीधे जुड़ा हुआ विषय बताया। उन्होंने कहा कि बदलती जलवायु एवं बढ़ते जल संकट के दौर में यह विषय अत्यंत सामयिक एवं महत्वपूर्ण है तथा डॉ. नायक जैसे अनुभवी विशेषज्ञ का मार्गदर्शन नीति-निर्माण एवं प्रशासनिक दृष्टि से अत्यंत उपयोगी है।

जल संकट और आर्द्रभूमियों का सामाजिक-आर्थिक महत्व

डॉ. नायक ने अपने व्याख्यान में कहा कि वर्तमान समय में जल संरक्षण मानव जीवन से जुड़ा एक अनिवार्य विषय बन गया है। छत्तीसगढ़ को तालाबों का प्रदेश कहा जाता है और राज्य की सामाजिक- आर्थिक संरचना का गहरा संबंध यहां की आर्द्रभूमियों से है। यही आर्द्रभूमियाँ जन-जीवन को जल उपलब्धता सुनिश्चित करने का प्रमुख स्रोत हैं और इन पर संकट राज्य के समस्त जीव-जगत के अस्तित्व के लिए गंभीर चुनौती है।

 रामसर कन्वेंशन एवं आर्द्रभूमियों की परिभाषा

डॉक्टर नायक ने बताया कि वर्ष 1971 में ईरान के रामसर में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के माध्यम से आर्द्रभूमियों की वैश्विक परिभाषा तय की गई, जिसे भारत ने 1 फरवरी 1982 को स्वीकार किया। रामसर कन्वेंशन के अनुसार आर्द्रभूमियों में दलदल, मैंग्रोव, पीट भूमि, ताजे, खारे या समुद्री जल के प्राकृतिक अथवा कृत्रिम, स्थायी या अस्थायी क्षेत्र शामिल हैं, जो जैव विविधता एवं जल-पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

भारत और छत्तीसगढ़ में रामसर आर्द्रभूमियाँ में शामिल

डॉ. नायक ने जानकारी दी कि वर्तमान में भारत में 92 रामसर स्थल अधिसूचित हैं, जबकि छत्तीसगढ़ से केवल बिलासपुर जिले का कोपरा जलाशय रामसर सूची में सम्मिलित है। उन्होंने इस तथ्य पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य की अन्य महत्वपूर्ण आर्द्रभूमियों को भी संरक्षण एवं संवर्धन की दृष्टि से प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता है। सरकारी योजनाएँ और प्रभावी प्रबंधन की आवश्यकता व्याख्यान के दौरान आर्द्रभूमियों के प्रकार, छत्तीसगढ़ की प्रमुख आर्द्रभूमियाँ, उनके समक्ष उत्पन्न हो रहे संकट, तथा जल भंडार के निरंतर क्षरण पर विस्तार से चर्चा की गई। डॉ. नायक ने अमृत- धरोहर योजना, मिशन लाइफ, सेव वेटलैंड अभियान और वेटलैंड मित्र जैसी योजनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में इन प्रयासों को और अधिक सशक्त, वैज्ञानिक एवं सहभागी बनाए जाने की आवश्यकता है।

 संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयास का आह्वान

डॉ. नायक ने कहा कि आर्द्रभूमियों का संरक्षण केवल पर्यावरणीय दायित्व नहीं, बल्कि सामाजिक एवं आर्थिक विकास से जुड़ा हुआ महत्वपूर्ण विषय है। इसके लिए शासन, प्रशासन और नागरिक समाज को मिलकर ठोस एवं प्रभावी प्रयास करने होंगे। कार्यक्रम का समापन परिचर्चा एवं धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

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