सोनभद्र में मौत की सुरंग बनती खदानें, नियमों की बलि चढ़ा रहे खनन माफिया

सोनभद्र। (गिरीश तिवारी) उत्तर प्रदेश का खनिज संपन्न जिला सोनभद्र एक बार फिर खतरनाक खनन गतिविधियों को लेकर गंभीर चर्चा में है। कृष्ण माइंस हादसे में सात मजदूरों की दर्दनाक मौत के बाद भी जिले के ओबरा और आसपास के खनन क्षेत्रों में हालात जस के तस बने हुए हैं। मुनाफे की अंधी दौड़ में खनन माफिया न केवल सरकारी नियमों और आदेशों को नजरअंदाज कर रहे हैं, बल्कि मजदूरों की जान को भी खुलेआम जोखिम में डाल रहे हैं।सूत्रों के अनुसार, सुरक्षा मानकों के घोर उल्लंघन के चलते जिले की 37 खदानों को बंद करने का आदेश जारी किया गया था। इसके बावजूद जमीनी हकीकत प्रशासनिक दावों के बिल्कुल विपरीत नजर आ रही है। प्रतिबंधित घोषित कई खदानों में आज भी भारी मशीनें धड़ल्ले से चल रही हैं। रात के अंधेरे में या रसूख के दम पर हो रहा खनन यह साफ दर्शाता है कि आदेश केवल कागजों तक सीमित रह गए हैं।हालात इतने भयावह हो चुके हैं कि खनन माफियाओं ने खदानों को अब एक तरह के अभेद्य किले में बदल दिया है। खदान परिसरों के चारों ओर ऊंची और अवैध बैरिकेडिंग कर दी गई है, ताकि अंदर की वास्तविक स्थिति न तो किसी बाहरी व्यक्ति तक पहुंचे और न ही मीडिया की नजर वहां तक जा सके। यह घेराबंदी सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि खतरों को छिपाने और जवाबदेही से बचने के लिए की गई है।डीजीएमएस द्वारा निर्धारित सुरक्षा मानकों को खुलेआम दरकिनार किया जा रहा है। कई खदानें डेंजर ज़ोन में तब्दील हो चुकी हैं, जहां कभी भी भूस्खलन या चट्टान धंसने जैसी बड़ी दुर्घटना हो सकती है। इसके बावजूद मजदूरों से जान जोखिम में डालकर काम कराया जा रहा है, जो यह दर्शाता है कि जिम्मेदारों को किसी और बड़े हादसे का इंतजार है।स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब इन अवैध गतिविधियों को उजागर करने वाले पत्रकारों और जागरूक नागरिकों को निशाना बनाया जाने लगता है। खनन माफिया सुरक्षा सुधारने के बजाय दबाव बनाने, डराने-धमकाने और सच को दबाने की कोशिशों में जुटे हैं। वहीं प्रशासन की चुप्पी और निष्क्रियता माफियाओं के हौसले और बुलंद कर रही है।

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