कला में सौंदर्य बोध के साथ अभिव्यक्ति भी होनी चाहिए – राकेश तिवारी

राज्य संग्रहालय में ‘प्राचीन कला उद्भव एवं विकासःकुछ विचार’ पर व्खायान आयोजित

लखनऊ। राज्य संग्रहालय, लखनऊ संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ पब्लिक स्कूल्स एण्ड कॉलेजेस एवं फ्लोरेसेन्स आर्ट गैलरी, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में कला अभिरूचि पाठ्यक्रम के अन्तर्गत कला के विभिन्न आयामों पर आधारित पांच दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन दिनांक 06 मई, 2025 से किया जा रहा है। इस व्याख्यान श्रृंखला के क्रम में कल दिनांक 09 मई, 2025 को राज्य संग्रहालय, लखनऊ में एक महत्वपूर्ण विषय ‘‘प्राचीन कला उद्भव एवं विकासःकुछ विचार’’ पर आधारित व्याख्यान का आयेाजन किया गया। कल के कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य वक्ता डा0 राकेश तिवारी, पूर्व महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व  सर्वेक्षण, नई दिल्ली के आगमन पर किया गया। कार्यक्रम का संचालन कार्यक्रम प्रभारी डॉ0 मीनाक्षी खेमका, सहायक निदेशक के द्वारा किया गया साथ ही डा0 सृष्टि धवन, निदेशक, राज्य संग्रहालय, लखनऊ के निर्देशन में मुख्य वक्ता का स्वागत एवं अभिनन्दन किया!

मुख्य अतिथि एवं वक्ता डा0 राकेश तिवारी ने अपने व्याख्यान में कहा कि मानव द्वार निर्मित कोई भी वस्तु जिसमें सौंदर्य झलकता हो कला है! डॉ. राकेश तिवारी के द्वारा अपने व्याख्यान में शैल कला का परिचय देते हुए कला के अलग-अलग रूप पर प्रकाश डाला! उनके द्वारा कला के क्रमगत विकास को बताया गया, उनको प्रकृति, मान्यता, धर्म आदि से जोड़कर व्याख्या किया गया! डॉ तिवारी ने कला को परिभाषित करते हुए बताया कि कला मनुष्य की बनी हुई वह कृति है जिसमें सौंदर्य बोध के साथ ही अभिव्यक्ति भी हो! इसके विभिन्न ग्रंथों में लिखित वर्णन को व्याख्यान करते हुए कला को अतीत के मूल से जोड़ने हेतु प्रोत्साहित किया! कल के व्याख्यान में उन्होन चित्रकला, औजार, गहने, केश-सज्जा, मूर्तिकला, वास्तुकला आदि कला के विभिन आयामो पर चर्चा की!

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