जीवन इक संगीत हो जाता

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डा. केवलकृषण पाठक
सुख-दुख तो  धूप-छांव हैं, आते हैं और चले जाते हैं ।
सुख में तो मन हर्षाता है, दुख सबको पीड़ा दे जाते  हैं।
ये दोनों ही भाव हैं मन के, यदि करें स्वीकार दोनों को ।
विचार सकारात्मक बन जाते, नहीं पीड़ा देते मन को ।
सहज भाव से सह लेने पर,मन को आनंदित कर देते ।
हृदय में प्रफुल्लता लाते, मन में हैं खुशियां भर देते।
जीवन तो संगीत हो जाता, मधुर-मधुर मन को भाता ।
– संपादक रवींद्र ज्योति मासिक ,343/19,आनंद निवास
 ,गीता कालोनी ,जींद 126102 (हरियाणा ) मोब .9518682355

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