सारा खेल सत्ता का है
हमें भीख में नहीं मिली अयोध्या,
बड़ी भारी तपस्या से पाया है,
हे मेरे राघव,हे मेरे राम, तुम्हें पाने के लिए,
बहुतो ने बहुत कुछ गंवाया है।
किसी ने अपनी सत्ता छोड़ी,
किसी ने प्राणों का त्याग किया,
बहनों ने अपनी राखी त्यागी,
माँओं ने अपना लाल न्योछार दिया।
प्रमाण हैं वो सुनी मांग कि,
किसने कितना झेला है।
राम विरोध में राजनीति कर,
कई नेताओं ने खेल खेला है।
सामूहिक हत्याकांड हुआ ,
लाशों पर लाश लगायी थी।
अरे किस मुँह से वें कहतें हैं कि,
उन्होंने राज्यहित में गोली चलवायी थी?
सरजू रक्त से रंजीत थी वहाँ,
लाशों के ढेर लगाए थे।
हर लाश में रेत कि बोरी बांधी,
फिर सरजू में डुबोये थे।
क्या दिन से क्या दिन आया ज़ब,
खलनायक नायक बन सत्ता में पधारे थे।
सारा खेल सत्ता का है ज़ब,
राम टेंट में विराजे थे।
वह काली रात,भीषण प्रभात
जिसने भगवा को ललकारा था।
तब हिंदू चेतना एक हुई और,
सब ने मिलकर हुंकार था।
सोया हिंदू जाग गया,
संघर्ष राह में सब एक जुट गए।
राम काज करने को आतुर,
सारे एक काम पर टूट गए।
जगह-जगह आंदोलन हुए,
हवन हुए, अनुदान हुआ।
स्वयं की प्राण आहुति दी गई,
जहाँ कई हिंदू बलिदान हुआ।
जाटों ने अपनी पगड़ी छोड़ी,
कईयों ने मौन को साध लिया।
साधु संत एकजुट हुए और,
प्रण कर जटाओं को बाँध लिया।
सरजू के जल से प्रतिज्ञा ली गई,
रामलाल हम आएंगे,
प्राण रहे या न्योछावर हो पर,
मंदिर वहीं बनाएंगे।
दिन,महीने,कई साल गए,
पर भक्तों ने धैर्य संभाला था।
सारा खेल सत्ता का है जिसने ,
श्री राम को हीं अस्वीकारा था।
हुई राम की कृपा हमारे,
इतिहास ने फिर करवट खाया है।
मंदिर बना तभी जब देश में,
भगवा फिरसे लहराया है।
याद रखेगा भारतवर्ष भी कि,
एक नायक ऐसा भी आया था।
जिसने भरत सा जीवन जिया और,
मंदिर वहीं बनवाया था।
प्रभु कि पहली झलक देखकर,
ख़ुशी से अधर मौन हो जाते हैं।
सदियों से जो नैन प्यासे तरसे थे वें,
प्रभु दर्श कर बरसे और हर्षाते हैं।
प्रभु काज सम्पूर्ण हुआ,
सबकी प्रतिज्ञा निभ पायी है।
काँटों भरे सिंघासन पर बैठा वो नायक धन्य है,
धन्य वह एक लाल कि माई है।
एक वह दिन था और एक यह दिन है,
ज़ब राम अयोध्या आये हैं।
सारा खेल सत्ता का है जब
राम महलों में पधारे हैं।
श्वेता पाण्डेय।