पुस्तक समीक्षा : रिंकल शर्मा द्वारा रचित “बुरे फंसे” पुस्तक आज के नीरस जीवन में रस भरने का काम कर सकती है

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आकांक्षा प्रिया

पिछले दिनों मेरे द्वारा पढ़ी जाने वाली पुस्तक रही “बुरे फंसे”, जो कि एक हास्य नाटक है। लेखिका एवं व्यंग्यकार रिंकल शर्मा द्वारा रचित यह पुस्तक आज के नीरस जीवन में रस भरने का काम कर सकती है, या यूँ कहें कि उदास मन में हँसी के फुहारे बरसाते हुए हमारे अंतर्मन को गुदगुदा जाती है। 

175 पृष्ठों के इस हास्य नाटक को पढ़ते हुए पाठक कभी भी उलझता हुआ या बोरियत-जैसा महसूस नहीं कर सकता। बल्कि पढ़ते-पढ़ते ऐसा लगता है जैसे मंच पर कोई नाटक चल रहा हो और हम दर्शक बन अपनी सीट पर बैठ हंसते हुए लोट-पोट हुए जा रहे हों।  

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नाटक में कई पात्र हैं, और नाटक के मूल कथ्य के चतुर्दिक माहौल भी हास्य-रस से भरा पूरा है। नाटक को पढ़ते हुए मुझे कभी-कभी शरद जोशी के उपन्यास पर आधारित हास्य सीरियल “लापतागंज” की याद आ गई जिसका निर्देशन अश्विनी धीर और धरम वर्मा ने किया है। यह नाटक वैसे तो बहुत सारे पात्रों के साथ प्रस्तुत किया गया है और सभी अपने-आप में एक महत्वपूर्ण किरदार निभा रहे हैं, लेकिन नाटक का मुख्य पात्र है जमींदार खानदान का इकलौता चश्मो-चिराग कन्हैयालाल उर्फ़ “कल्लन”। कहानी उसके घर — जो कि उसकी एक पुरानी पुरखों की जर्ज़र हवेली है — से शुरू होती है जिसमें परिवार के नाम पर उसकी दादी और घर की नौकरानी चंपा रहती है। चंपा भले ही नौकरानी है लेकिन रहन-सहन, और बोलचाल में घर के सदस्य-सा ही हक़ रखती है। आय के नाम पर उस जर्ज़र हवेली के दुसरे छोर पर रहने वाले किराएदार रहमत शेख — जो अपनी बेगम फ़रजाना और बेटी शबनम के साथ रहता था– के ही मासिक किराए से ही इनका गुजर-बसर हो जा रहा था। और रहमत भी कुछ बड़ा हासिल करने की फिराक में दाने की तरह-तरह बीच-बीच में दादी और कल्लन पर जरूरत के मुताबिक पैसे फेंका करता है। उसका लक्ष्य यह है कि कल्लन और शबनम की शादी करा सके और हवेली अपने नाम करा ले। लेकिन शबनम छज्जू नाई से प्रेम करती है और उसी से शादी करने की जुगत में कल्लन को शीशे में उतारते हुए ख़ूब बेवकूफ बनाती है। 

बाकी तो मंच पर चल रहे इस नाटक में और भी कई सारे पात्र, जैसे-सब्जी वाला, पान वाला, हलवाई, दर्जी, मैकेनिक आदि भी हैं जिसमें कि हर किसी की अपनी जगह पर दमदार भूमिका रही है। 

इस हास्य नाटक में कल्लन और उसके स्वर्गीय दादाजी को अंग्रेजों से मिली बंदूक ही पूरे नाटक की जान है। नेता जी द्वारा यह घोषणा की जाती है कि 15 अगस्त के अवसर पर स्वतंत्रता सेनानियों को पांच-पांच लाख रुपए दिए जाएंगे। जब कल्लन यह सुनता है तो वो अपने किराएदार रहमत शेख के साथ ख़्याली पुलाव पकाते हुए कई तरह के तिकड़म लगाने में लग जाता है। साथ ही उत्साहित होकर गली-नुक्कड़ के सभी दुकानदारों को आमंत्रित भी करता रहता है जो कि कल्लन की एक ही बनावटी कहानी को सुनने के लिए श्रोता बनते हुए उसकी वाह-वाही करते रहते हैं।

 रिंकल शर्मा, लेखिका एवं व्यंग्यकार

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अब पढ़ते हुए देखना यह है कि क्या कल्लन अपनी योजना में सफल हो पाता है? क्या शबनम की शादी कल्लन से हो पाती है? क्या रहमत शेख हवेली हासिल कर पाता है? लेकिन यह सब जानने के लिए आप सबको तो यह हास्य नाटक “बुरे फंसे” पढ़ना ही पड़ेगा जो कि अमेज़न पर उपलब्ध है। और उसके लिए आप “आद्विक पब्लिकेशन’ या इस हास्य नाटक की लेखिका श्रीमती रिंकल शर्मा जी से संपर्क कर सकते हैं। 

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इस पुस्तक हास्य नाटक “बुरे फंसे” के लिए लेखिका Rinkal Sharma  जी को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई कि हम पाठकों के बीच और भी ऐसी कई पुस्तकें लाएं जो हमारी आज की तनावपूर्ण ज़िंदगी में हास्य का तड़का लगा हमें थोड़ा हल्का महसूस करवा सके। 

आकांक्षा प्रिया

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