चन्दौली लोकसभा संसदीय सीट पर व्यापक पड़ताल कर अपनी बेबाक राय प्रस्तुत कर रहे हैं पत्रकार कालीदास त्रिपाठी…...
आम चुनाव की घोषणा होने के साथ ही चट्टी चौराहों,चाय पान की दुकानों पर चुनावी चकल्लस, हार जीत के दावे कथनी करनी के चर्चे शुरु हो गये हैं। अब तक चंदौली लोकसभा सीट पर प्रत्याशी के रूप में भाजपा ने अपने कद्दावर नेता व दो बार से सांसद डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडेय पर पुनः दाव खेला है तो वही समाजवादी पार्टी ने पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह पर दाव लगाया है। समाजवादी पार्टी ने क्षत्रिय प्रत्याशी पर अपना भरोसा जताते हुए सवर्ण मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की है, वही भारतीय जनता पार्टी ने तमाम विरोध की खबरों को दरकिनार करते हुए ब्राह्मण चेहरे के रूप में एक बार फिर डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडेय पर अपना दाव लगाया है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भारतीय जनता पार्टी में डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडेय के बाद कोई और ब्राह्मण चेहरा नहीं है, या उनको मौका नहीं दिया गया यह तो भाजपा का थिंक टैंक ही बता पाएंगे। महेंद्र नाथ पांडेय को टिकट मिलना अपने आप में भाजपा के अंदर उनकी पकड़ को दर्शाता है । पिछले 10 साल के कार्यकाल में डाक्टर महेंद्र नाथ पांडेय द्वारा लगातार अपने कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने के कारण जमीनी स्तर के कार्यकर्ता भी पार्टी के इस फैसले से नाराज दिख रहे हैं, लेकिन यह अलग बात है कि वह मुखर विरोध नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि वह पार्टी कैडर से जुड़े हुए हैं।
डा महेंद्र नाथ पांडेय के पिछले 10 वर्ष के कार्यकाल को यदि देखा जाए तो यह पाएंगे कि रोड और पुलों को छोड़कर कोई ऐसा कार्य नहीं किए जिसे जनपद के किसानों, युवाओं व व्यापारियों को लाभ मिल सका हो। यद्यपि डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडेय भारी उद्योग मंत्री रहे फिर भी अपने संसदीय क्षेत्र में एक भी उद्योग स्थापित करने में असफल रहे। यह अलग बात है कि कागज पर बहुत विकास हुआ लेकिन धरातल पर कितना हुआ यह उनके खुद के लोग नहीं बता पा रहे हैं। इसका एक छोटा उदाहरण ट्रामा सेंटर के रूप में देख सकते हैं जिसका शिलान्यास तो किया गया लेकिन अभी तक उसपर कार्य प्रारंभ नहीं हो पाया। डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडेय अपने संसदीय क्षेत्र में कोई बड़ा कॉलेज नहीं ला पाए, कोई रोजगार सृजन नहीं कर पाए, किसानों की समृद्धि के लिए भी कुछ नहीं कर पाए, यहां तक की पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल में किए गए कार्य को भी अपना कहने से गुरेज नहीं किए । महेंद्र नाथ पांडेय जी अपनी कोई उपलब्धि जनता को बताने में नाकाम हैं केवल मोदी के नाम पर वोट कब तक यह एक यक्ष प्रश्न है।
चंदौली के लोगों के मन में यह भी एक सवाल रहता है कि क्या भारतीय जनता पार्टी के पास गंगा इस पार का कोई भी पार्टी कार्यकर्ता इस काबिल नहीं है कि जिसे टिकट दिया जा सके बीजेपी के बड़े नेताओं के पास इसका कोई उत्तर नहीं है।
पिछले 10 वर्षों में सांसद किसी भी कार्यक्रम में कभी भी समय से नहीं पहुंचे हैं कोई भी ऐसा विकास कार्य नहीं किए हैं जिस पर उनको जनता वोट करें केवल मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं ।मेडिकल कॉलेज का श्रेय ले रहे हैं। जो सपा सरकार की देन थी सपा सरकार के कार्यकाल में जनकल्याण के लिए कई सीएससी सेंटरों को पास किया गया था जो वर्तमान सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी अधूरे हैं उन पर जांच चल रही है क्या जांच हो रही है इसकी किसी के पास जानकारी नहीं है।
लोकसभा चंदौली में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 18 लाख है कोई भी मतदाता खुलकर अपनी राय देने के लिए तैयार नहीं है इसलिए यह भाप लेना की इस बार का ताज भाजपा के ही सर पर होगा या किसी और को जाएगा कठिन है।
भाजपा का वोट बैंक है राजपूत जिसे सम्भालने के लिए नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य द्वय दर्शना सिंह और साधना सिंह के सहारे भाजपा उन्हें एक जुट रख सकती है । भाजपा के वर्तमान जिलाध्यक्ष भी क्षत्रिय समाज के ही हैं जो इस बार के संसदीय चुनाव में पहली बार अपनी अग्नि परीक्षा से रुबरु होंगे। समाजवादी पार्टी ने विरेन्द्र सिंह को चुनाव मैदान में उतार कर सवर्ण दाव तो खेला है मगर सपा को पिछड़ों का साथ कितना मिल पायेगा यह तो नहीं कहा जा सकता। यादव, मुसलमान, क्षत्रिय वोट का दावा तो सपा के कद्दावर कर रहे हैं बाकी उनके दावे वर्तमान सांसद डाक्टर महेंद्र नाथ पांडेय के नाराज मतों पर ही हैं।
सपा ने जिलाध्यक्ष के रुप में पिछड़े वर्ग के सत्यनरायन राजभर को लम्बे समय से मौका दिया है मगर अधिकांश राजभर जाति के लोग भाजपा से ही जुड़े रहे। खुद राजभर दस वर्षों में अपनी जाति को भी सपा से नहीं जोड़ पाए। भाजपा के अनिल राजभर केविनेट मंत्री हैं जिसे चन्दौली बनारस सोनभद्र, मिर्जापुर का राजभर समाज अपना नेता मानता है। समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता पूर्व सांसद राम किशुन यादव को टिकट न मिलने की नाराज़गी भी सपा प्रत्याशी को झेलनी पड़ सकती है। अति पिछड़ी जातियों में बिंद मतदाता भी इस लोकसभा क्षेत्र में निर्णायक होते हैं जिसका काट भाजपा ने पड़ोसी जिले गाजीपुर से पूर्व विधायक श्रीमती संगीता बलवंत को राज्य सभा में भेज कर दिया है। सपा के पास इसका कोई काट नहीं है। जातीय समीकरण को देखें तो भाजपा के सामने समाजवादी पार्टी के पास पीडीए का भी पूरा समर्थन मिलता नहीं दिख रहा है। पिछले चुनाव में सपा बसपा गठबंधन था जिसमें भारी ध्रुवीकरण होने के कारण समाजवादी पार्टी ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। अब हालात वैसे नहीं हैं।
गेम चेंजर के रुप में पहचान रखने वाली तीसरी बड़ी ताकत बहुजन समाज पार्टी का प्रत्याशी अभी घोषित नहीं हुआ है इसलिए केवल दो दावेदारों के बीच ताज का राज अभी जनता के लिए अबूझ पहेली ही है।
वाराणसी क्षेत्र में पड़ने वाले चन्दौली लोकसभा क्षेत्र के गांवों, कस्बों पर तो मोदी जी की छाया और उनके विधायकों द्वारा कराए गए विकास कार्यों की समीक्षा के ऊपर सब दारोमदार है लेकिन गंगा पार चन्दौली के मुगलसराय,सैयदराजा, सकलडीहा विधानसभा क्षेत्र के विकास का काम तो भाजपा के खाते में ही जाता है जहां चिकित्सा शिक्षा, रोजगार, सिंचाई के क्षेत्र में दस वर्षों का लेखा-जोखा भाजपा को ही देना है। यह दिगर है कि जनता के मुद्दे चुनाव में आते नहीं है अब तो चुनाव छींटाकशी तू-तू-मैं-मैं और भावनाओं पर लड़े जाते हैं।
गांव गोद लिए गए थे, सिंचाई के लिए जल खातों की नहरों को गंगा नदी से जोड़ा जाना था , वर्षों से बंद पड़े अर्धनिर्मित अस्पताल को चलाना था। बबुरी को ब्लॉक बनाकर वहां राजकीय महिला महाविद्यालय देना था । और अनेक दावे और सपने दिखाए गए थे। जनता की मांगों का क्या यहां तो शब्जबागों की खेती हो रही है और सत्ता के लिए सब खेल खेले जा रहे हैं। वोटों का ध्रुवीकरण कैसे हो ,जाति धर्म की पात कैसे सजायी जाय इसके अलावा अब कुछ भी विचार करने का समय नहीं है। जनता को अपने जनमत का क्या करना है यह उसके मिजाज पर है,जाति धर्म या विकास के मुद्दे। सवाल पूछेंगे या फिर ……. सीधे जबाब।