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आसनसोल।हिंदी भाषा के संवर्धन के उद्देश्य से कोल इंडिया लिमिटेड की एक अनुषंगी कंपनी ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ईसीएल) का राजभाषा विभाग एवं पश्चिम बर्द्धमान जिले में अवस्थित काजी नजरूल विश्वविद्यालय (केएनयू) का हिंदी विभाग के संयुक्त प्रयासों द्वारा विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन / बोलपुर में चारजनवरी.2023 को हिंदी का परिदर्शन संपन्न किया गया। परिदर्शन में काजी नजरूल विश्वविद्यालय में हिंदी पठन-पाठन करने वाले विद्यार्थियों एवं प्रोफेसरों के साथ ईसीएल के राजभाषा कर्मियों की सक्रिय सहभागिता रहीं।
ईसीएल एवं केएनयू के संयुक्त प्रयासों से संपन्न यह हिंदी का परिदर्शन हिंदी भाषा के भविष्य निर्माण के लिए रहा ताकि आने वाले समय में कुशल एवं दक्ष राजभाषा अधिकारी, भाषाविद्, सुनामी लेखक, कवि, पत्रकार आदि जैसे वृत्तियों में अधिक-से-अधिक संख्या में विद्यार्थियों को अभिमुख किया जा सकें। यह परिदर्शन ईसीएल के निगमित सामाजिक दायित्व की परिकल्पना को पूर्णता प्रदान करने के लिए उत्तम कृत सिद्ध हुई।
विश्वभारती विश्वविद्यालय के हिंदी-विभाग के प्रधान व प्रोफेसर / डॉ. सुभाष राय द्वारा केएनयू के विद्यार्थियों एवं ईसीएल राजभाषा कर्मियों का ज्ञानवर्धक हिंदी का परिदर्शन करवाया गया। परिदर्शन के क्रम में हिंदी भवन सहित पूरे विश्वभारती विश्विद्यालय का परिभ्रमण करवाया गया।
वर्ष 1938 में हिंदी भाषा और साहित्य का अध्ययन उच्च शिक्षा के केंद्र, विश्व भारती के विद्या भवन का एक महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग बन गया था। अब हिंदी विभाग भाषा-भवन के अधीन है। हिंदी अध्ययन कार्यक्रम पंडित हजारीप्रसाद द्विवेदी के कुशल मार्गदर्शन में तैयार किया गया था। हिंदी-भवन की नींव सी.एफ. एंड्रयूज और क्षितिमोहन सेन और बनारसीदास चतुर्वेदी के अथक प्रयास ने 31 जनवरी, 1939 को रखी थी। कवि रवींद्रनाथ टैगोर के लिए मध्ययुगीन हिंदी साहित्य और संत साहित्य का अध्ययन बहुत रुचि रखता था। क्षितिमोहन सेन, जो स्वयं संत विद्या के एक अनुभवी विद्वान थे, ने इस उद्देश्य के लिए अपना सक्रिय प्रयास किया। वर्तमान में यह शिक्षा विभाग हिंदी अनुवाद में आधुनिक और मध्ययुगीन साहित्य, तुलनात्मक साहित्य और रवींद्र साहित्य के अलावा हिंदी साहित्य और कार्यात्मक हिंदी में स्नातक और स्नातकोत्तर अध्ययन पर शोध कर रहा है।
शान्तिनिकेतन हिन्दी-भवन का निर्माण के समय विश्वभारती में निर्मित भवनों पर भित्तिचित्र अंकित करने की सुदीर्घ परंपरा चल पड़ी थी। नन्दलाल बसु और विनोदबिहारी मुखर्जी तथा अन्य सहयोगियों द्वारा यह कार्य होता था। तदनुसार हिन्दी-भवन के सभाकक्ष में भित्तिचित्र का निर्माण किया गया (1946-1947)। विनोदबिहारी ने अपने छात्रों की सहायता से तीन दीवारों पर भारतीय साधना-धारा के चित्र उकेरे। चौथी दीवार पर कलाभवन के ही राजस्थानी छात्र कृपाल सिंह शेखावत ने भरत-मिलाप का दृश्य अंकित किया। यह भित्तिचित्र विश्वभारती में हिन्दी-भवन के निर्माण के मूल उद्देश्य के अनुरूप है। हिन्दी-भवन का उद्देश्य था भारतीय साहित्य और संस्कृति मुख्यतः भक्ति साहित्य का अध्ययन और उस पर गवेषणा करना। इस भित्तिचित्र में शिल्पी विनोदबिहारी ने भारतवर्ष की संपूर्ण साधना-धारा को एक कलाकार की दृष्टि से प्रस्तुत किया है। इस चित्र-प्रवाह में भक्ति साधना लोकजीवन से संपृक्त है। संतों के महत् रूप को अभिव्यक्त करने के लिए लोकजीवन के भीतर से अचानक एक बड़ी आकृति उभरती है जो स्वाभाविक रूप से अंततः लोकजीवन को प्रभावित करती है। इन आकृतियों में शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, रामानन्द, कबीर, दादू, तुलसी, सूर, गुरु गोविन्द सिंह, महाप्रभु चैतन्य स्पष्ट रूप में पहचाने जाते हैं। दक्षिणी दीवार पर शंकराचार्य से कबीर तक, पश्चिमी दीवार पर बनारस के परिवेश एवं तुलसीदास, उत्तरी दीवार पर सूरदास से लेकर महाप्रभु चैतन्य तक के दृश्य अंकित हैं। पूर्वी दीवार पर कृपाल सिंह शेखावत ने भरत-मिलाप प्रसंग में भगवान राम की पादुका लेकर लौटते हुए भरत का मनोरम दृश्य चित्रित किया है।
केएनयू के कला संकाय अध्यक्ष विजय कुमार भारती एवं हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष बिजय कुमार साव तथा ईसीएल के राजभाषा विभाग के संयुक्त प्रयासों से हिंदी का परिदर्शन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।