विशाल कपूर, संयुक्त सचिव, विद्युत मंत्रालय
संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाए गए एसडीजी-7 लक्ष्यों के तहत निर्धारित प्रमुख परिणामों में एक है – 2030 तक ऊर्जा पहुंच सुनिश्चित करना। ऊर्जा की कमी का लोगों के जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। रोजगार के लिए आर्थिक अवसरों को कम करने के अलावा, ऊर्जा उपलब्धता में कमी स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों में ऐसे सामाजिक परिणामों की ओर ले जाती है, जिन्हें अच्छा नहीं कहा जा सकता। ऊर्जा पहुंच का अभाव समाज के कमजोर वर्गों को सबसे अधिक प्रभावित करता है। घरों में बिजली आपूर्ति की कमी, लैंगिक असमानता से संबंधित प्रभावों के अलावा, महिलाओं को अधिक कड़ी मेहनत के लिए बाध्य करती है तथा दुनिया के शेष हिस्सों से गैर-विद्युतीकृत आबादी के संपर्क को काट देती है।
2014 तक, भारत में कुल 18,374 गांवों में बिजली नहीं पहुंची थी। 15 अगस्त, 2015 को, भारत के माननीय प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से 1000 दिनों के भीतर देश भर में शेष गैर-विद्युतीकृत गांवों को विद्युतीकृत करने का संकल्प लिया। दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीयूजीजेवाई) के तहत एक चुनौतीपूर्ण समय सीमा के भीतर इसे पूरा करना एक विशाल कार्य था। देश के बिजली क्षेत्र द्वारा महीनों के दृढ़ प्रयासों के बाद, 28 अप्रैल 2018 को, मणिपुर के चट्टान वाले पहाड़ों में बसे एक छोटे से गांव, लीसांग में बिजली के पहले बल्ब की रोशनी के साथ, भारत ने 100 शत-प्रतिशत ग्राम विद्युतीकरण के ऐतिहासिक लक्ष्य को हासिल किया।
इस विद्युतीकरण की कहानी को केवल संख्या के आधार पर व्यक्त नहीं किया जा सकता, बल्कि यह धैर्य और परिश्रम के साथ दुर्गम बाधाओं पर विजय प्राप्त करने की कहानी है। ग्रामीण विद्युतीकरण के अंतिम चरण में सबसे दुर्गम इलाके- रेगिस्तान, पर्वत श्रृंखलाएं, नदियां और वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र- शामिल थे। भारत जैसे विशाल और विविधता वाले देश के अंधेरे कोनों में बिजली पहुंचाना, एक महान कार्य था।
देश के कोने-कोने को रोशन करने के संकल्प के साथ, इस कार्य को पूरा करने के लिए एक देशव्यापी ‘टीम पावर’ का औपचारिक रूप से गठन किया गया। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक नयी निगरानी प्रणाली विकसित की गई। प्रक्रिया की शुरू से अंत तक निगरानी की गई और सर्वेक्षण, सरकारी खरीद, अवसंरचना निर्माण एवं बिजली-आपूर्ति समेत प्रत्येक विवरण पर ध्यान केन्द्रित किया गया। उन गांवों को विद्युतीकृत करने के लिए अभिनव ऑफ-ग्रिड समाधानों का उपयोग किया गया, जो राष्ट्रीय ग्रिड से नहीं जुड़े थे। कई दूर-दराज के इलाके सड़क मार्ग से भी नहीं जुड़े थे। कई क्षेत्रों में, भारतीय वायु सेना की मदद से गांवों के विद्युतीकरण के लिए आवश्यक उपकरण पहुंचाए गए। यह केंद्र और राज्यों की विभिन्न संस्थाओं और एजेंसियों के बीच निर्बाध सहयोग का एक आदर्श उदाहरण था।
भारत की लगभग दो तिहाई जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। हालांकि, बुनियादी सुविधाओं तक बढ़ती पहुंच के साथ और ग्रामीण भारत के बदलते परिदृश्य को देखते हुए, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच का अंतर धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। बिजली के घरेलू उपकरण, टेलीविजन और मोबाइल के उपयोग समेत आधुनिक सुविधाएं अब शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं हैं। बच्चे पढ़ाई के लिए दिन के उजाले पर निर्भर नहीं रहते। ग्रामीण इलाकों के विकास पर निरंतर ध्यान देने के साथ, हमारे गांव मुख्यधारा से तेजी से जुड़ रहे हैं।
डीडीयूजीजेवाई की सफलता ने घरेलू विद्युतीकरण योजना- सौभाग्य की शुरुआत करने का मार्ग प्रशस्त किया, जिसका उद्देश्य हर घर को विद्युतीकृत करना है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) भारत के ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम को सफलता की एक स्पष्ट कहानी के रूप में पेश करती है और अपने प्रकाशन “एनर्जी एक्सेस आउटलुक 2017” में इसे ऊर्जा पहुंच के उज्ज्वल प्रतीक के रूप में रेखांकित करती है। हम ‘आजादी का अमृत महोत्सव’- भारत की आजादी के 75 साल, मना रहे हैं, हमें प्रत्येक उपलब्धि को, अंत्योदय के लक्ष्य को हासिल करने के क्रम में भारत द्वारा उठाये गए एक और कदम के रूप में देखना चाहिए।