वाराणसी / महिमा रिसर्च फाउण्डेशन एण्ड सोशल वेलफेयर, वाराणसी के नरसड़ा गाँव मंे ‘‘जैविक खेती‘‘ नामक विषय पर एक किसान गोष्ठि का आयोजन दिनांक-21 फरवरी 2024 को प्रातः 11.30 बजे किया किया गया। इस गोष्ठी का उद्धाटन प्रो0 आर0 सी0 गुप्ता, नागालैण्ड विश्वविद्यालय के कर कमलो द्वारा हुआ। प्रो0 आर0 सी0 गुप्ता ने किसानों को बताया कि भारत में कुल बोरान सामग्री व्यापक रूप से 20 से 200 मिलीग्राम बीकेजी-1 मिट्टी में भिन्न है। आम तौर पर 5-10 प्रतिशत से कम ही ऐसे रूप में होता है जो पौधों को उपलब्ध होता है। वैश्विक स्तर पर बोरॉन की कमी को जिंक के बाद फसल उत्पादन में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व माना जाता है। भारत में, आईसीएआर की मिट्टी और पौधों में सूक्ष्म पोषक तत्वों पर अखिल भारतीय समन्वित योजना के तत्वावधान में 20 से अधिक राज्यों से विश्लेषण किए गए 2.5 लाख मिट्टी के नमूनों में से लगभग 1ध्3 (33ः) मिट्टी के नमूनों में कमी पाई गई। उपलब्ध बोरान. भारत में, बी की कमी वाली मिट्टी व्यापक रूप से बिहार, तमिलनाडु, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गुजरात (चूने वाली मिट्टी), राजस्थान, हरियाणा (रेतीली मिट्टी), उड़ीसा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश (लाल लेटराइट मिट्टी) और पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है।
ऐसे कई मृदा कारक हैं जो मिट्टी में बोरॉन की उपलब्धता को नियंत्रित करते हैं। मिट्टी में बोरॉन के स्तर का आकलन करने के लिए मिट्टी का पीएच सबसे महत्वपूर्ण निर्धारक माना जाता है। मिट्टी के घोल के पीएच और घुलनशील बिन मिट्टी के स्तर के साथ घनिष्ठ संबंध है। मुख्यतः 5.0 पीएच से नीचे की अम्लीय मिट्टी में बोरॉन कम उपलब्ध होता है। यदि मिट्टी मोटी है, तो कम पीएच पर, उच्च वर्षा के कारण लीचिंग के कारण बी नष्ट हो जाता है। दूसरी ओर, बारीक बनावट वाली मिट्टी में, बी लीचिंग स्पष्ट नहीं होती है, यदि मिट्टी का पीएच बहुत कम न हो।
अंत मंे धन्यवाद ज्ञापन महिमम रिसर्च फाउण्डेशन एण्ड सोशल वेलफेयर के सचिव रत्नेश कुमार राव ने किया।