देश का उत्थान एवं पतन माताओं पर ही निहित- मानस मयूरी शालिनी त्रिपाठी

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बबुरी – बौरी ग्राम में चल रही कथा के पंचम निशा में श्वर कोकिला मानस मयूरी शालिनी त्रिपाठी ने भगवान श्री राम की बाललीला का विषद वर्णन करते हुए कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी की बाललीला भी अनुकरणीय है। भगवान जब प्रथम बार पृथ्वी पर चरण रखतें हैं तो अपने प्रतिबिंब को निहारते हुए नृत्य करते हैं- नाचाहिं निज प्रतिबिंब निहारी…. अर्थात माता पृथ्वी को नमन करते हैं, मां की महत्ता को भगवान ने समझाया,”यदि मां न होती तो ये जीवात्मा न होती, मां न होती तो महात्मा न होते इतना ही नहीं, मां न होती तो इस धरा धाम पर परमात्मा भी न आतें। शालिनी त्रिपाठी जी ने बताया कि हमारे देश की माताएं चन्द्र पर जाये या न जाये वे तो स्वयं भगवान श्री रामचन्द्र, कृष्णचंद्र को धरती पर उतारने की क्षमता रखतीं हैं, अपने सतीत्व की शक्ति से पति के प्राण भी यमराज से वापस ले आती हैं तथा त्रिदेवों को बालक बनाकर पालने में झुलातीं हैं।

इसीलिए अपने अलौकिक स्वरूप का दो बार दर्शन केवल मां कौशल्या को ही प्रभु ने दिया। सनातन संस्कृति के सोलह संस्कारों की व्याख्या करते हुए त्रिपाठी जी ने बताया कि भगवान राम जब ग्यारह वर्ष के हुए तब उनका उपनयन संस्कार तत्पश्चात विद्याध्ययन संस्कार हुआ। आगे की कथा का वर्णन करते कहा कि कलुषित विचारों वाले राक्षसों के कारण संत को समाज की चिंता होती है तब वो भगवान के शरण में जाते है क्योंकि संत तो केवल सुधारकर्ता हो सकता है संहारकर्ता नहीं, आश्रम की राक्षसों से रक्षा हेतु ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग कर अपने साथ ले गये। राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों को मार डाला और मारीच को बिना फल वाले बाण से मार कर समुद्र के पार भेज दिया। उधर लक्ष्मण ने राक्षसों की सारी सेना का संहार कर डाला। धनुषयज्ञ हेतु राजा जनक के निमंत्रण मिलने पर विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ उनकी नगरी मिथिला (जनकपुर) आ गये। रास्ते में राम ने गौतम मुनि की स्त्री अहल्या का उद्धार किया। कथा में दीप प्रज्वलन का कार्य देव भट्टाचार्य एवं अन्य विशिष्ट अतिथियों के द्वारा कराया गया।

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