स्वतंत्र प्रेस बेजुबानों की आवाज होता है 

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 *कलम के पुजारी कभी झुकते नहीं है*

धनन्जय राय

भदोही। भारत में स्वतंत्र और स्वतंत्र प्रेस के महत्व को उजागर करने के लिए हर साल 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाया जाता है राष्ट्रीय प्रेस दिवस, प्रेस की स्वतंत्रता और जिम्मेदारियों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है। भारत में पत्रकारिता में उच्च आदर्श कायम करने के उद्देश्य से प्रथम प्रेस आयोग ने एक प्रेस परिषद की कल्पना की थी। इसके बाद 4 जुलाई, 1966 को प्रेस परिषद की स्थापना की गई। स्वतंत्र और स्वतंत्र प्रेस एक मजबूत लोकतंत्र के चार स्तम्भों में से एक माना जाता हैं। भारत को लोकतंत्र बनाने में इसके योगदान का सम्मान करने के लिए भी प्रेस दिवस मनाया जाता है।

जहां मीडिया एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के स्तम्भों में से एक के रूप में कार्य करता है। वही विभिन्न मीडिया हाउस (प्रिंट और प्रसारण) में काम करने वाले पत्रकार दर्पण के रूप में कार्य करते हैं। जिनकी रिपोर्ट और कहानियां समाज के विभिन्न पहलुओं को पूरी सच्चाई के साथ दर्शाती हैं।  

स्वतंत्र प्रेस को अक्सर बेजुबानो की आवाज कहा जाता है। यह व्यवस्था कि बुराइयों और अस्वस्थाता को सामने लाता है और शासन की लोकतांत्रिक प्रणाली के मूल्यों को मजबूत करने कि प्रक्रिया में सरकार को इनका समाधान खोजने में मदद करता है।

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