12 वीं 13 वीं शताब्दी का बताया जाता है यह ऐतिहासिक लाट स्तंभ
पुरातत्व विभाग ने किया है सरंक्षित लेकिन देख रेख के अभाव में घास फूस से ढंक जाता हैं स्तंभ
ए. के. शान्डिल्य
अहरौरा, मिर्जापुर/ बेलखरा गांव के दक्षिण तरफ स्थित अति प्राचीन लाट स्तंभ अहरौरा के इतिहास की कहानी को बयां करता है ।पुरातत्व विभाग द्वारा इस लाट को संरक्षित कर चारों तरफ से घेरा बना दिया गया है लेकिन देख रेख के अभाव में लाट तक पहुंचाना मुश्किल हो जाता है ।और यह स्तंभ चारों तरफ से बड़े-बड़े घास फूस से गिरा रहता है ।
बेलखरा गांव के दक्षिण तरफ एवं अहरौरा जलाशय के ठीक उत्तर स्थित इस प्राचीन स्तंभ के विषय में बताया जाता है कि यह लाट 12 ,13 वीं शताब्दी का है । वाराणसी के पुरातत्व अधिकारी डा सुभाष चन्द्र यादव के अनुसार अहरौना से डेढ़ किलोमीटर दक्षिण चुनार से 12 मील दक्षिण पूर्व में बेलखरा गांव के समीप स्थित इस प्राचीन स्तंभ की लंबाई 11 फीट 7 इंच है ।15 इंच की व्यास में यह पाषाण स्तंभ है ।स्तंभ पर दो शिलालेख में स्थित है और ऊपर गणेश का चित्र बना हुआ है दोनों के बीच में एक भद्र पक्षी बना हुआ है।अश्वशिला लेख के ऊपर की पांच पत्ती अपठनीय है ।अभिलेख 1253 के आसपास का लगता है ।सुभाष चंद्र यादव ने बताया कि जनरल कनिंघम ने बेलखरा गांव में स्थित स्तंभ पर लिखे लेख का हिंदी रूपांतरण किया है।
जनरल कनिंघम के अनुसार कन्नौज के अंतिम राजा जयचंद की पराजय तथा मृत्यु के ठीक 3 वर्ष बाद का यह स्तंभ प्रतीत होता है ।जनरल कनिंघम ने अपने लेख में लिखा है कि 1196 के आसपास में यहां स्तंभ बना होगा जब बख्तियार खिलजी को पाटिल तथा हंडिया के साथ दो जिले भागवत और भूईली मिले होंगे ।शिलालेख में कन्नौज के हिंदू राज्य का भी जिक्र है ।पुरातत्व अधिकारी डा सुभाष चंद्र यादव के अनुसार बेलखरा गांव का नाम लगभग 7 सौ वर्षों से ऊपर का अपवर्तित नाम है ।स्तंभ में लिखें शिलालेख को पढ़ने के बाद जनरल कनिंघम ने लिखा है कि महाराजाधिराज राजा लखन देव ,पशुपति, गजपति ,नरपति तीनों सामंतों के राजा विश्व सम्राट विज्ञान शाला के वाचस्पति के समतुल्य अपनी कन्नौज विजय के दौरान संवत 1253 में वैशाख शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को बेलखरा गांव में आगमन के दौरान इस शिलालेख को बनवाया हो ।
फिलहाल अहरौरा के इतिहास को बयां करने वाला यह शिलालेख उपेक्षित पड़ा हुआ है । बाहर के लोगों को कौन कहे अहरौरा नगर एवं आसपास का युवा भी इस शिलालेख एवं इसके इतिहास के विषय में नहीं जानते हैं ।आवश्यकता है कि इस शिलालेख को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी अहरौरा के इतिहास से परिचित हो सके ।