विशेष लेख : छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्रों में जनजातीय युवाओं के सशक्तिकरण की अभिनव पहल

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*• लक्ष्मीकांत कोसरिया, उप संचालक*

*वनस्पति और जीवों के पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करने तथा युवाओं के लिए रोजगार की संभावनाएं बढ़ाने में मददगार है ग्रीन स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम*

रायपुर, / छत्तीसगढ़ वन विभाग द्वारा राज्य में जनजातीय वनवासियों के हितों के संरक्षण के लिए और पर्यावरण एवं वन्यजीव संरक्षण के लिए लगातार महत्वपूर्ण पहल की जा रही हैं। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और वन मंत्री केदार कश्यप ने जनजातीय समुदायों के युवाओं के सामने आने वाली चुनौतियों और जैव विविधता संरक्षण की आवश्यकता को बखूबी समझा है। उनके दूरदर्शी नेतृत्व में इन समुदायों को सशक्त बनाने एवं छत्तीसगढ़ राज्य की समृद्ध प्राकृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए एक व्यापक रणनीति तैयार की गई है।

छत्तीसगढ़ वन विभाग ने हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रारंभ किए गए ग्रीन स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत एक अनूठा कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है। इस अभिनव पहल का उद्देश्य छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्रों में रहने वाले जनजातीय युवाओं को विशेष प्रशिक्षण और प्रमाणन प्रदान करके उन्हें स्वावलंबी बनाना है। इस कार्यक्रम के तहत युवाओं को पैराटैक्सोनॉमी जैसे महत्वपूर्ण विषय में प्रशिक्षित किया जा रहा है, जो जैव विविधता संरक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक है।

पैराटैक्सोनॉमी एक ऐसी विधा है जिसमें जैविक अनुसंधान के लिए विभिन्न प्रजातियों की त्वरित पहचान और वर्गीकरण किया जाता है। छत्तीसगढ़ जैसे जैव विविधता से भरपूर क्षेत्रों में यह विधा विशेष रूप से उपयोगी है। इस प्रशिक्षण के बाद प्रशिक्षित युवा नेशनल पार्क गाइड, पर्यटक गाइड, नेचर कैंप मैनेजर, पारंपरिक चिकित्सक जैसे विभिन्न पेशों में काम कर सकते हैं एवं बोटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया तथा जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया जैसी संस्थाओं में रोजगार के अवसर प्राप्त कर सकते हैं।

वन मंत्री ने कहा कि हमारे राज्य में मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में जनजातियों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं बनाई है। जिसके उचित क्रियान्वयन से सभी लोगों को समय पर लाभ मिल रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य के वन बल प्रमुख व्ही. श्रीनिवास राव ने इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के पीछे की अवधारणा को साझा करते हुए कहा कि यह पहल स्थानीय समुदायों को छत्तीसगढ़ की जैव विविधता संरक्षण में शामिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह प्रशिक्षण न केवल युवाओं के रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाता है, बल्कि स्थानीय वनस्पतियों और जीवों के बारे में पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करने और इसे अगली पीढ़ी को सौंपने का भी अवसर प्रदान करता है।

इस प्रशिक्षण में भाग लेने वाले 53 प्रतिभागियों में से 40 जनजातीय युवा थे, जिनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि 10$2 से लेकर स्नातक तक थी और वे कांकेर, कोंडागांव, केशकाल, भानुप्रतापपुर और नारायणपुर जैसे विभिन्न वन-मंडलों से आए थे। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम छत्तीसगढ़ राज्य वन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान में 22 जुलाई से 18 अगस्त तक आयोजित किया गया था। 30 दिवसीय इस प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों ने कक्षा शिक्षण और फील्डवर्क दोनों में भाग लिया, जिसमें उन्होंने जंगल सफारी, मोहरेगा, सिरपुर, अर्जुनी, बारनवापारा और उदंती वन्यजीव अभयारण्य जैसे स्थलों पर जाकर विभिन्न प्रजातियों की पहचान और दस्तावेजीकरण किया। प्रशिक्षण के दौरान 93 प्रकार के मैक्रोफंगी, 153 प्रकार की वनस्पतियाँ, 47 औषधीय पौधे और 187 प्रकार के बीज का पहचान और दस्तावेजीकरण किया गया। 

यह प्रशिक्षण प्रतिभागियों के लिए बेहद लाभकारी सिद्ध हुआ है। छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नीतू हर्मुख ने इस प्रशिक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बताया कि सभी प्रतिभागी पैराटैक्सोनॉमी में कौशल सीखने के लिए उत्सुक और तत्पर थे। कांकेर जिले के डुमरपानी गांव के 24 वर्षीय जनजातीय युवक त्रिभुवन कुमार करगा ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, “पैराटैक्सोनॉमी’’ में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद मेरा आत्मविश्वास निश्चित रूप से बढ़ा है। अब मेरे लिए आय सृजन के नए रास्ते खुल गए हैं। इसी प्रकार ग्राम मुढ़ोवा चारामा, कांकेर जिले के 39 वर्षीय जनजातीय समुदाय के प्रतिभागी राकेश नेताम ने कहा इस प्रशिक्षण ने हमारे जंगलों की जैव विविधता को समझने का ज्ञान दिया है। अब मुझे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के प्रति एक अहम जिम्मेदारी का एहसास होता है।

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम ने जैव विविधता संरक्षण में पहले ही महत्वपूर्ण परिणाम दिखाए हैं। प्रतिभागियों ने अपने स्थानीय क्षेत्रों में कई दुर्लभ वनस्पति और जीवों की प्रजातियों की पहचान और दस्तावेजीकरण किया है, जिसमें पीले चमकदार खोल वाला एक अनूठा कछुआ (Lissemys Punctata) और दुर्लभ पौधे जैसे Gloriosa superba, Ophioglossum और Nervelia शामिल हैं। छत्तीसगढ़ के जनजातीय युवाओं को सशक्त बनाने और राज्य की समृद्ध जैव विविधता को संरक्षित करने के इस प्रयास ने यह सुनिश्चित किया है कि हमारी प्राकृतिक धरोहरें आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहेंगी।

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