बबुरी /चंदौली
रोहित वर्मा
स्थानीय कस्बा स्थित शिव मंदिर प्रांगण में शिव कृपा श्री राम कथा समिति द्वारा आयोजित श्री राम कथा ज्ञान गंगा के तेइसवें सोपान के द्वितीय दिवस चित्रकूट से पधारी जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य की परम शिष्या परम पूज्या मानस मणि साध्वी नीलम गायत्री जी ने कथा रसीक भगवत भक्त श्रोताओं को कथा अमृत पान कराते हुए कहा कि जब राघवेंद्र सरकार सीता के विरह में जंगल में भटक रहे थे और मानव की भांति वृक्षों से पक्षियों से व अन्य जीव-जंतुओं से सीता के बारे में पूछ रहे थे उसी समय भूत भावन बाबा भोलेनाथ माता सती के साथ बिहार करते हुए उनके पास से गुजरे तब भूत भावन बाबा भोलेनाथ ने श्री राम को देख प्रणाम किया इस पर माता सती ने उनसे पूछा की देव आप यह क्या कर रहे हैं किसी राजकुमार को प्रणाम करना आपको शोभा नहीं देता है इस पर बाबा ने कहा यही तो राघवेंद्र सरकार हैं जिनका मैं नाम संकीर्तन करता रहता हूं लेकिन माता सती को इस पर विश्वास नहीं हुआ और वह राम जी के रामत्व की परीक्षा लेने के लिए चली गई।रामचरितमानस जी में 3 देवियों का जिक्र तुलसी बाबा ने किया है जिसमें से प्रथम माता सती का है और दूसरा सुपनखा का है तीसरा माता शबरी का है । माता सती जब राम की परीक्षा लेने के लिए सीता का वेश बनाकर राम के सामने आईं तब रामजी ने अपने रामत्व की महिमा दिखाते हुए उन्हें माता कह प्रणाम किया और पूछा की भोलेनाथ को छोड़कर आप अकेले वन में क्या कर रही हैं, इस पर माता सती को बहुत लज्जा आई, दूसरी देवी हैं सुपनखा जिन्होंने राम के स्वरूप की समीक्षा की जिसका दंड उन्हें भोगना पड़ा और तीसरी हैं माता शबरी जिन्होंने राम की प्रतीक्षा की जिस कारण राघवेंद्र सरकार को स्वयं नंगे पांव चलकर माता शबरी के पास जाना पड़ा।परीक्षा ले जब माता सती भोलेनाथ के पास वापस आई तो भोले बाबा ने पूछा कि क्या हुआ तब माता सती ने झूठ बोलते हुए कहा कि हम भी उनको प्रणाम कर वापस आ गए तब भूत भावन शशांक शेखर बाबा भोलेनाथ ने ध्यान लगाकर संपूर्ण विवरण को जान लिया की सती ने सीता का रूप लिया था तब उन्होंने संकल्प किया की इस तन के साथ अब सती स्वीकार नहीं , क्योंकि उन्होंने हमारी माता का स्वरूप लिया था।
कैलाश पहुंचने पर बाबा भोलेनाथ समाधि में लीन हो गए। कुछ समय बाद सती के पिता दक्ष ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया जिसमें सभी को बुलावा दिया है लेकिन भूत भावन शशांक शेखर बाबा भोलेनाथ और माता सती को नहीं बुलाया लेकिन माता सती ने हठकर अपने पिता के यहां चली गई वहां पर उन्होंने अपने पति का अपमान देख स्वयं को योगा अग्नि से भस्म कर दिया। तत्पश्चात कालांतर में माता सती मैना पुत्री पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के यहां अवतरित हुई, नारद जी ने उनकी कुंडली देख बताया कि इन क्या पति सबसे अलग होगा, जिस कारण मैना जी ने कहा इससे बचने के लिए कोई तो उपाय होगा तब नारद जी ने कहा कि पार्वती को शिव जी की तपस्या करनी चाहिए क्योंकि भावी मेट सकही त्रिपुरारी। अपने गुरुदेव नारद की आज्ञा पाकर पार्वती ने बड़ी कठोर तपस्या की जिसके कारण उनका नाम अपर्णा भी पड़ा उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उनको यह आशीर्वाद दिया कि वह उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे तत्पश्चात सप्तर्षियों और नारद जी ने पर्वतराज हिमालय के यहां पार्वती और शिव के विवाह का संयोग बताया जिस पर पर्वतराज हिमालय बहुत प्रसन्न हुए।शिवजी के विवाह के लिए शिव गन बाबा का श्रृंगार करने लगे सर्वप्रथम हल्दी उबटन की जगह बाबा को ताजा जले हुए मुर्दे की भस्म लगाई गई उसके बाद उनका बहुत ही विकट और विकराल श्रृंगार किया गया कानों में कुंडल की जगह बिच्छू गले में हार की जगह मुंडमाला सर पर मौर की जगह सांप और कपड़ा की जगह बाघ अंबर लपेटकर उसे भी सांप के द्वारा बांधा गया और बाबा धर्म रूपी नंदी पर उल्टा बैठ गए। उनके इस स्वरूप को देखकर सब लोग बहुत प्रसन्न हुए और कहे इन के लायक दुल्हन मिलना एक बहुत बड़ी बात है क्योंकि ऐसा वर ढूंढो से भी नहीं मिलेगा बाबा की बारात चली सभी देवता गण अपने अपने वाहन से साथ हो लिए तभी विष्णु जी ने ठिठोली करते हुए कहा कि इस दूल्हे के साथ हम लोग बारात के रूप में असहज महसूस कर रहे हैं इसलिए हम लोगों को इनके आगे चलना चाहिए यह सुन बाबा भोलेनाथ ने बृंगी को आदेश दिया कि जाओ सभी भूत प्रेत पिशाच निशाचर बेताल डाकिनी शाकिनी सबको बारात में आने का निमंत्रण दे आओ। सभी बहुत प्रसन्न मन से बाबा की बारात में आए तब किसी ने कहा “जस दूल्हा तस बनी बराता”, क्योंकि किसी के पास यदि सिर है तो कई कई है नहीं है तो एकदम नहीं है किसी के पास हाथ है किसी के पास हाथ ही नहीं है बहुत विचित्र बाराती और सब के सब ताजे खून से लिपटे हुए। देखी ना ऐसी बारात हो जैसी शिव की बरातिया, बारात को नगर के निकट आई सुनकर नगर में चहल-पहल मच गई, जिससे उसकी शोभा बढ़ गई। अगवानी करने वाले लोग बनाव-श्रृंगार करके तथा नाना प्रकार की सवारियों को सजाकर आदर सहित बारात को लेने चले। देवताओं के समाज को देखकर सब मन में प्रसन्न हुए और विष्णु भगवान को देखकर तो बहुत ही सुखी हुए, किन्तु जब शिवजी के दल को देखने लगे तब तो उनके सब वाहन (सवारियों के हाथी, घोड़े, रथ के बैल आदि) डरकर भाग चले।क्या कहें, कोई बात कही नहीं जाती। यह बारात है या यमराज की सेना? दूल्हा पागल है और बैल पर सवार है। साँप, कपाल और राख ही उसके गहने हैं॥ दूल्हे के शरीर पर राख लगी है, साँप और कपाल के गहने हैं, वह नंगा, जटाधारी और भयंकर है। उसके साथ भयानक मुखवाले भूत, प्रेत, पिशाच, योगिनियाँ और राक्षस हैं, जो बारात को देखकर जीता बचेगा, सचमुच उसके बड़े ही पुण्य हैं और वही पार्वती का विवाह देखेगा। लड़कों ने घर-घर यही बात कही। इस पर मैना ने कहा कि नारद ने हमसे किस जन्म का बदला लिया है हम अपनी बेटी को कुमारी रख देंगे लेकिन उससे विवाह नहीं करेंगे लेकिन सप्तर्षियों और नारद के समझाने के बाद शादी के लिए तैयार हूं शुभ मुहूर्त में देवी पार्वती और भूत भवन शशांक शेखर बाबा भोलेनाथ का पाणिग्रहण संस्कार हुआ।
कथा अयोजन में समिति के संयोजक सारनाथ तिवारी, साधु जायसवाल बिंदे मौर्या लल्लू सिंह राकेश कुमार बनारसी मौर्या गणेश जायसवाल सच्चिदानंद पाठक गोविंद तिवारी जितेंद्र तिवारी सहित समिति के सदस्य अपना कथा को सुचारू रूप से चलाने में अपना सहयोग प्रदान किया मंच का संचालन चंद्र प्रकाश गांधी वह मंगलाचरण श्रवण कुमार तिवारी ने किया।