विषमुक्त खेती की आवश्यकता पर संगोष्ठी का आयोजन 

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स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए जरूरी है विषमुक्त खेती

चौबेपुर, वाराणसी/ खेती में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का प्रयोग घातक कृषि उत्पादों को विषमुक्त बनाने की जरूरत और उसके लिए अपनाए जाने वाली तकनीक के प्रचार प्रसार के लिए आवश्यक रणनीति पर चर्चा के लिए एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन क्षेत्र के भंदहा कला ग्राम में किया गया । सामाजिक संस्था आशा ट्रस्ट के परिसर में आयोजित  ‘विष मुक्त खेती आवश्यकता, संभावनाएं एवं चुनौतियां ‘ विषयक संगोष्ठी  में कृषि में बढ़ते रसायनों के उपयोग पर चिंता व्यक्त की गयी साथ ही विष मुक्त एवं प्राकृतिक पद्धति अपनाये जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया । 

गोष्ठी में पूर्वांचल के कई जिलों के प्रगतिशील किसानो और लोकभारती के प्रतिनिधियों और वैज्ञानिको ने अपने सुझाव रखे ।गोष्ठी को संबोधित करते हुए लोक भारती संगठन  के .प्रान्त समन्वयक डॉ आर आर सिंह ने कहा कि कृषि आय में सम्मानजनक वृद्धि लाने और किसानो की खुशहाली के लिए परम्परागत खेती से मोह त्याग कर विभिन्न नई पद्धतियों को अपनाना होगा  ।  रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से एक तरफ कृषि की लागत बढ़ रही है वहीं खेतों की ऊर्वरता भी प्रभावित हो रही है ऐसे में किसानो को शून्य लागत प्राकृतिक खेती की पद्धति को अपनाना चाहिए, इससे हम विषमुक्त खाद्य समाज को उपलब्ध करा पाएंगे  ।

गोष्ठी के क्रम में वक्ताओं ने किसानों को कृषि के साथ पशु पालन, मधुमक्खी पालन, बागवानी, औषधीय पौधों की खेती, मुर्गी पालन आदि कृषि आधारित उद्यमों को भी अपनाने का सुझाव दिया गया साथ ही पर्यावरण के प्रति सचेत रहते हुए खाली भूमि में अधिकाधिक वृक्षारोपण के लिए कहा गया  ।

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विजय बहादुर सिंह ने कहा कि खेती किसानी के उत्थान से ही देश का भला होगा, किसानो को सरकारी योजनाओं पर निर्भरता छोड़ कर अपने कर्म कौशल से कृषि में लागत न्यूनतम और उत्पादन अधिकतम स्तर तक पहुंचाना होगा  ।  इसके लिए विषमुक्त प्राकृतिक खेती पद्धति को अपनाना श्रेयस्कर होगा  ।

गोष्ठी में आए हुए किसानो और लोक भारती  के प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए आशा ट्रस्ट के समन्वयक वल्लभाचार्य पाण्डेय ने कहा कि ट्रस्ट द्वारा जन कल्याण और जागरूकता के विभिन्न कार्यक्रम लगातार संचालित किये जा रहे हैं,  इसी क्रम में इस गोष्ठी का आयोजन किया गया है  ।  खेती किसानी की उपेक्षा करके राष्ट्र कभी आगे नही बढ़ सकता, अन्नदाता को समय के साथ अपने आप को बदलना होगा और नई तकनीक के साथ किसानी को उत्कृष्ट स्तर तक पहुँचाना होगा  ।
गोष्ठी में प्रमुख रूप से श्रीकृष्ण चौधरी, आशीष कुमार सिंह, शैलेन्द्र रघुवंशी,  हरिशंकर किसान, राम बदन दुबे, रणविजय , सूर्य मणि मिश्र, उदित नारायण शुक्ल,  देवनारायण यादव,   हरेन्द्र सिंह,  फौजदार यादव, शैलेश बरनवाल, पुष्पेंद्र श्रीवास्तव, रणवीर पाण्डेय, दीप मणि मिश्र आदि ने विचार व्यक्त किये । व्यवस्था में प्रदीप सिंह, दीन दयाल सिंह, सरोज देवी, सुनीता यादव, लकी चौबे, संजना, निक्की, पूजा, वंदना  आदि का विशेष योगदान रहा ।

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