[15 जून के स्थापना दिवस पर विशेष ] रमाकांत पांडेय
अपनी भक्ति की शक्ति के द्वारा अपरिमित सिद्धियों को प्राप्त करके हनुमत स्वरूप परम पूज्य गुरुदेव श्री नीब करोरी महाराज द्वारा उत्तराखंड के कैंची धाम के स्थापना दिवस का विशाल भंडारा 15 जून को है। संपूर्ण विश्व को उस संत की महान चमत्कारिक उपलब्धियों से परिचित कराने वालों के लिए यह एक विशेष पर्व है। इस बार यह आयोजन 2 वर्षों के बाद हो रहा है। क्योंकि पिछले 2 वर्षों में कोरोनावायरस के कारण सरकार और मंदिर प्रशासन ने हजारों की जुड़ने वाली भीड़ के डर से यह मेला नहीं कराया था। पवित्र कैंची धाम के स्थापना दिवस के आयोजन में शामिल होने से पूर्व आपको परम पूज्य श्री नीब करोरी महाराज जी के बारे में अवश्य जान लेना चाहिए कि, आखिर इस संत ने ऐसे कौन-कौन से कार्य कर दिए थे जिससे कि अमेरिका सहित समस्त यूरोपीय देश के उनके असंख्य अनुयायी उन्हे “मिरेकल बाबा” कहने लगे थे। लगभग वर्ष 1900 के आसपास इस महान संत का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में एक धनी और संपन्न ब्राम्हण जमीदार के घर में हुआ था। इनके बचपन का नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। 11 वर्षीय अल्पायु में ही शादी हो जाने के बाद इन्होंने घर छोड़कर वैराग्य ले लिया था। भ्रमण करते-करते बालक लक्ष्मीनारायण गुजरात के मोरवी जिले के ‘वावनिया’ नामक गांव पहुंच गए। यह वही गांव है जहां महात्मा गांधी के आध्यात्मिक गुरु रामचंद्र दास रहा करते थे उनसे महाराज जी का संपर्क हुआ अथवा नहीं इसका कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है। लेकिन वावनिया में ही किशोर लक्ष्मीनारायण भगवद् साधना में लीन हो गए। महाराज जी गांव के पास स्थित तालाब में खड़े होकर ‘राम’ नाम की साधना करने लगे। वावनिया के तालाब में उन्होंने लगभग 6 वर्षों तक साधना किया। वहीं पर इनका नाम ‘लक्ष्मण दास’ हो गया। लेकिन आसपास के चरवाहे और ग्रामीण ने तलैया बाबा कहने लगे। बहुत से जानकारों का मानना है कि यहीं पर महाराज जी को अमोघ सिद्धियां और शक्तियां प्राप्त हुई। यहीं पर महाराज जी ने तालाब के किनारे हनुमान जी का छोटा मंदिर और और उनकी मूर्ति की स्थापना की। मेरा मानना है कि यहीं पर लक्ष्मण दास का श्री हनुमान जी से साक्षात्कार हुआ और उनकी अमोघ शक्तियां भी प्राप्त हुई। वावनिया में कई साल तपस्या करने के बाद महाराज जी ने फिर से उत्तर भारत की ओर प्रस्थान किया और फर्रुखाबाद जिले में नीम करोरी गांव में आकर एक सुनसान सी जगह पर अपनी धूनी रमा ली। यहीं पर वह विश्व प्रसिद्ध घटना हुई जिसमें महाराज जी ने रेल गाड़ी के टीटीई द्वारा अपमानित करने पर गाड़ी को आगे बढ़ने से रोक दिया। जिसके बाद अंग्रेज अधिकारियों द्वारा उक्त स्थान को रेलवे स्टेशन के रूप में नीब करोरी नाम देना पड़ा। ट्रेन रोक देने की इस अप्रत्याशित घटना के बाद संपूर्ण देश और विश्व के लोगों को युवा लक्ष्मण दास की अपरिमित शक्तियों का ज्ञान हुआ। किसी घटना के बाद महाराज का नाम एक बार फिर बदला और अब वे संपूर्ण विश्व के लिए श्री नीब करोरी महाराज हो गए। उच्चारण न कर पाने के कारण उनके पाश्चात्य और अनेक भक्तों ने उनका नाम ‘नीम करोली बाबा’ कर दिया। नीब करोरी गांव रहते हुए ही महाराज जी के ही जन्म भूमि के किसी व्यक्ति द्वारा पहचान लिए जाने पर इनके पिता इन्हें पुनः गाँव ले जाने आये। संसार की मर्यादाओं को अपने आराध्य भगवान राम की तरह मानने वाले महाराज पुनः वैराग्य से गृहस्थ जीवन में प्रविष्ट हुए। जहां पर इनके दो पुत्र और एक पुत्री का जन्म हुआ। महाराज जी के छोटे पुत्र स्वर्गीय श्री धर्म नारायण शर्मा ने एक बार इस लेखक को बताया कि ‘हम भाई बहनों को लगभग 33 वर्षों तक महाराज का लाड प्यार मिला। महाराज जी गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए एक बैरागी का जीवन जीते थे। बाद में उन्होंने लगभग पूरी तरह से घर छोड़कर तीर्थाटन करना और अपनी शक्तियों से दीन हीनों का कल्याण करने लगे। इस बीच महाराज की चमत्कारी शक्तियों का आभास संपूर्ण विश्व को हो गया। 1960 ईस्वी के आसपास नैनीताल के हनुमान मंदिर की स्थापना के बाद तो महाराज जी ने हनुमान मंदिरों के निर्माण और भंडारों का आयोजन शुरू कर दिया। कहते हैं कि जिस समय महाराज जी ने भंडारों के माध्यम से दीन दुखियों की सेवा प्रारंभ की उस समय ईसाई मिशनरियों का गरीब हिंदुओं के धर्मांतरण का कार्यक्रम भी जोरों पर था। महाराज जी ने अपने भंडारों और सिद्ध शक्तियों के माध्यम से हिंदुओं के धर्मांतरण का कार्य रोक दिया। पचास और साठ के दशक में महाराज जी की सिद्धियां और चमत्कारिक शक्तियों की धूम न केवल आम जन बल्कि बड़े-बड़े संतों, महात्माओं, उद्योगपतियों और राजनेताओं तक में मच गयी। महाराज जी की अद्भुत शक्तियों का अंदाजा आप भारत के दो महान संतों द्वारा कहे गए इन वाक्यों से आप स्वयं लगा सकते हैं। धर्म सम्राट कहे जाने वाले स्वामी करपात्री जी ने श्री नीब करोरी जी के बारे में कहा ‘ वैसे तो भारत में अनेकों सिद्ध संत हैं, लेकिन एक मात्र सच्चे सिद्ध संत तो परम पूज्य श्री नीब करोरी जी महाराज ही है। ‘ इसी तरह विश्व प्रसिद्ध से योगीराज श्री देवराहा बाबा ने कहा कि, ‘ मृत को जीवनदान प्रदान करने की शक्ति तो केवल श्री नीब करोरी महाराज में ही है। ‘ प्रसिद्ध उद्योगपति के के बिरला जैसे कई उद्योगपति उनकी कृपा पाने के लिए लालायित रहते थे। एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग तक के किस्से तो आज भी सोशल मीडिया में आम है। भारत के तत्कालीन अनेकों राजनेता जिनमें मंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री शामिल जीवन पर्यंत (11 सितंबर 1973) सब उनके पीछे-पीछे घूमा करते थे। आज भी भारत के अनेकों नेता महाराज जी की मूर्ति के समक्ष कैंची धाम में नतमस्तक होते है। आज भी कैंची धाम में महाराज जी की उपस्थिति का आभास जिस तरह से होता है उसका अनुभव तो वहां जाने पर ही किया जा सकता है।