[ मनोज पांडेय ]
प्रयागराज। काले मोती के जन्मदाता पद्मश्री से सम्मानित भारतीय स्वतंत्र वैज्ञानिक अजय कुमार सोनकर ने कहा कि विज्ञान हमारे लिए वरदान है किन्तु इसका उपयोग व्याधियों से बचाने वाली स्वस्थ जीवनशैली की खोज के बजाय बीमारियो के उपचार एवं जांच उपकरणों की खोज के लिए ज्यादा हो रहा है। उन्होने बताया कि हमारे स्वभाव से विज्ञान का उपयोग बदल जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अपने विकृत जीवनशैली को बदल के हम बहुत सी व्याधियों से बच सकते हैं किन्तु आज विज्ञान का उपयोग बीमारियों से बचाने वाली जीवन शैली की खोज के बजाय बीमारियो के उपचार एवं जांच उपकरणों की खोज के लिए हो रहा है ताकि बाजारवाद को सींचा जा सके।
वैज्ञानिक सोनकर ने बताया कि आज दुनिया में हर तरफ दुख, संताप, असंतुष्टि और मानसिक एवं शारीरिक व्याधियाँ व्याप्त हैं। अपने आसपास के जीवन के अध्ययन से लगता है जैसे इन सब के पीछे बाजारवाद है जिसने अनावश्यक रूप से महामारी के स्तर पर तनाव और तृष्णा फैला दिया है। मनुष्य के सोचने समझने की शक्ति को क्षीण कर रखा है। आज छोटी छोटी उम्र के युवाओं को हृदय रोग, मधुमेह, कैन्सर, किडनी फेल्योर जैसी तमाम बीमारियों ने घेर लिया है। आज अवसाद हर जीवन का हिस्सा बन चुका है। लोगों की व्याधियों से उत्पन्न व्यापार के अवसर बाज़ारवाद को ललायित करते हैं इसीलिये वैज्ञानिक शोधों का मानसिक श्रम उपचार के लिये नित नई औषधियों एवं निदान उपकरणों की खोज की तरफ़ है, स्वस्थ्य जीवन शैली के ज्ञान की तरफ़ नहीं है जिसके माध्यम से पृथ्वी के सम्पूर्ण जीवन को रोगमुक्त रखा जा सकता है।
उन्होंने बताया कि ये व्याधियाँ वास्तविक होतीं तो हम प्रकृति के गोद मे विकासक्रम के दौरान विलुप्त हो गये होते, १०० वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर पाते। बाजारवाद यह स्वीकार नहीं कर सकता कि उपचार व्यापार नष्ट हो जाये इसलिये हम सब बाज़ारवाद की सहूलियत से जन्मे जीवनशैली को जीने के लिये बाध्य हैं, जिसने हमारे मन को अशांत और व्यथित कर रखा है। डाक्टर सोनकर ने बताया कि अनुवांशिक विज्ञान एवं डीएनए कोड्स के अपने अध्ययन के दौरान उन्होने जाना कि हमारा मन ही हमारी सारी जैविक क्रियाओं का संचालक है। एक अशान्त मन जैविक क्रियाओं को स्वस्थ रूप से क्रियान्वित नहीं कर सकता। जो मन को सन्तुष्ट, प्रसन्न, प्रेममय और आशावान रख सके ऐसे जीवनशैली के ज्ञान के प्रसार की आवश्यकता है।
उन्होंने बताया कि विज्ञान वह शक्ति है जो निरंतर नए-नए आविष्कार करती रहती है। परंतु आधुनिक युग में वैज्ञानिक ज्ञान के बढ़ते उपयोगिता के कारण विज्ञान मानव जीवन में वरदान के साथ-साथ अभिशाप भी सिद्ध हो रहा है। एक ओर जहां मनुष्य विज्ञान का उपयोग अपने हित में कर रहा है वहीं दूसरी ओर मानव को ही नष्ट करने के लिये भयंकर विनाशकारी अस्त्र शस्त्रों के निर्माण हो रहा है। डा सोनकर ने बताया कि वास्तव में विज्ञान को वरदान या अभिशाप बनाने वाला मनुष्य की मानसिकता है। यदि हम वैज्ञानिक क्षमता का उपयोग शाश्वत कल्याण के लिए करे तो वह हमारे लिए वरदान सिद्ध है। इसके विपरीत इन उपकरणों का मानव जीवन में गलत उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया जाए तो वह हमारे लिए अभिशाप है। इसलिए हमें वैज्ञानिक ज्ञान के विकृत उपयोग से जन्मे अभिशाप से बचना चाहिए इसकी शक्ति को कल्याणकारी कार्यों में लगाना चाहिए।