जगत की आसक्तियां मिटाने का एकमात्र उपाय सत्संग – बाला शास्त्री 

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अनपरा।श्री अनंतेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में चल रही श्रीमद् भागवत महापुराण के सप्तम एवं समापन दिवस पर कथा व्यास परम पूज्य पंडित वाला वेंकटेश शास्त्री जी ने श्रीमद् भागवत महापुराण के एकादश स्कंद में सत्संग की महिमा का वर्णन करते हुए बताए की जिस समय देवता गण भगवान से अपने स्वधाम पधारने की प्रार्थना कर रहे थे उसी समय भगवान श्री कृष्ण के पास परम सखा उद्धव जी का आगमन हुआ उद्धव जी  भगवान से आग्रह करते हैं कि आगे घोर कलि काल आने वाला है इस कलि काल में प्राणी काम क्रोध लोभ मोह धन वैभव में आसक्त हो जाएगा उसके मुक्ति का उपाय क्या होगा भगवान उद्धव जी को समझाते हैं की जगत की आसक्तियां केवल सत्संग से ही नष्ट हो सकती हैं यही कारण है कि सत्संग भगवान को भी बस में कर लेता है भगवान कहते हैं योग, संख्य, धर्मपालन, और स्वाध्याय, तपस्या ,त्याग, इंस्टापूर्ति ,और दक्षिणा , से भी मैं उतना प्रसन्न नहीं होता।

जितना सत्संग से इतना ही नहीं व्रत, यज्ञ ,वेद ,तीर्थ ,और यम, नियम ,भी सत्संग के समान मुझे बस में करने में समर्थ नहीं है भगवान कहते हैं सुग्रीव, हनुमान, जामवत, विभीषण, जटायू ,प्रहलाद, गोपिया, यह भी वेदों का अध्ययन करने नहीं गए थे केवल सत्संग से ही हमें प्राप्त किए हैं इसलिए भगवान को प्राप्त करने के लिए एवं आसक्तियों से दूर होने के लिए सर्वश्रेष्ठ साधन सत्संग ही है ।इसके पूर्व शास्त्री जी ने भगवान के 16108 विवाहों के प्रसंग एवं भगवान की संतति का बड़े ही विस्तार से वर्णन करते हुए राजा नृग की कथा में बताएं कि झूठ और मिथ्या भाषण करने से जीव के द्वारा किए गए पुण्य शीघ्र ही  क्षिण हो जाते हैं इसलिए प्रयास करना चाहिए कि झूठ एवं मिथ्या भाषण से बचना चाहिए आगे शास्त्री जी ने भगवान के परम भक्त सुदामा जी के प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए बताएं कि सुदामा जी सत्संग करते थे और इस सत्संग के कारण भगवत कृपा प्राप्त हुई और भगवान के पास पहुंचने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ सत्संग की इतनी महिमा है की  कर्महीन मनुष्य भी अपने कर्म में अग्रसर हो जाता है जब वह कुछ क्षण सत्संग में देने लगे तब इसके बाद शास्त्री जी ने सुभद्रा हरण का प्रसंग यदुवंशियों के द्वारा ऋषियों का परिहास ऋषियों से मिलने वाले यदुवंशियों को श्राप प्रभास क्षेत्र में जाकर यदुवंशियों का संहार भगवान के द्वारा उद्धव जी को दिव्यज्ञान प्रदान कर स्वधाम के लिए प्रस्थान सुकदेव जी का अंतिम उपदेश है श्रीमद् भागवत जी की विषय अनुक्रमणिका का बड़े ही विस्तार से वर्णन कर अंत में भागवत जी के अंतिम श्लोक का वाचन किये इस अवसर पर उपस्थित भारी संख्या में भक्तों ने भाव विभोर होकर कथा श्रवण किये।

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