पार्शियल नी-रिप्लेसमेंट अर्थराइटिस मरीजों के लिए बना वरदान

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वाराणसी. जोड़ों और हड्डियों की समस्याओं में ऑस्टियोअर्थराइटिस दूसरी सबसे कॉमन प्रॉब्लम है. सिर्फ जोड़ों से जुड़ी दिक्कतों की बात की जाए तो भारत में ऑस्टियोअर्थराइटिस बहुत ही आम समस्या है और 40 फीसदी लोग इससे पीड़ित होते हैं. ऑस्टियोअर्थराइटिस भी अर्थराइटिस का ही एक रूप है जिसमें एक या उससे ज्यादा ज्वॉइंट्स के कार्टिलेज को अचानक नुकसान पहुंचता है. कार्टिलेज, प्रोटीन की तरह का एक पदार्थ होता है, जो हड्डियों के जोड़ों के बीच कुशन यानी तकिये का काम करता है. ऑस्टियोअर्थराइटिस एक ऐसी समस्या है जो किसी भी ज्वॉइंट को प्रभावित कर सकता है और ये आमतौर पर हाथों, घुटनों, कूल्हों और रीढ़ में होता है. जोड़ों के दर्द की समस्या कोई हल्की नहीं है, इसके कारण इंसान को ठीक से चल पाने में कठिनाई होती है, सीढ़ियां चढ़ने में मुश्किल होती है, साथ ही घुटनों को मोड़ना भी दर्दनाक बन जाता है. घुटनों पर सूजन भी आ जाती है.
मॉडर्न वर्ल्ड में सब कुछ बहुत तेजी से आगे जरूर बढ़ रहा है, लेकिन इसके साथ ही व्यक्ति की लाइफस्टाइल पर भी बुरा असर पड़ रहा है. इसके नतीजे ये हो रहे हैं कि हर उम्र के लोग भी अलग-अलग किस्म की बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं. ऐसी ही एक समस्या आजकल सामने आ रही है घुटनों के दर्द की. तीन में से एक यंग अडल्ट घुटनों के दर्द से परेशान हैं जिन्हें मांसपेशियों में असंतुलन के कारण पेन की समस्या होती है और इससे उनके नी-कैप पर भी असर पड़ता है. घुटनों के दर्द से होने वाली समस्याएं और इससे बचाव के नए-नए एडवांस तरीकों के बारे में लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशयलिटी अस्पताल साकेत ने वाराणसी में एक सेशन का आयोजन किया.
मैक्स सुपर स्पेशयलिटी अस्पताल साकेत में ऑर्थोपेडिक्स एंड ज्वॉइंट रिप्लेसमेंट के एसोसिएट कंसलटेंट, डॉ.नंदन कुमार मिश्रा ने नी-पेन और इसके ट्रीटमेंट के बारे में विस्तार से जानकारी दी. घुटनों के दर्द के ट्रीटमेंट में नए एडवांसमेंट्स हुए हैं और कम से कम चीर-काट करके पार्शियल नी-रिप्लेसटमेंट यानी बटन सर्जरी की जा रही हैं. ये सर्जरी खासकर मिडिल एज ग्रुप के लिए वरदान साबित हो रही है. इस सर्जरी में घुटनों के डैमेज ज्वॉइंट्स को ठीक किया जाता है. नी-रिप्लेसमेंट से लोगों को दर्द से आराम मिलता है, उनका चलना-फिरना आसान हो जाता है और वो क्वालिटी लाइफ गुजारते हैं. नी-रिप्लेसमेंट कराने का असर 15 साल से ज्यादा तक रहता है.
डॉ.नंदन कुमार मिश्रा का कहना है कि घुटनों के दर्द की दिक्कत कई रिस्क फैक्टर के कारण होती है. अगर किसी व्यक्ति को मोटापे की समस्या है, कम एक्सरसाइज करते हैं, हड्डियों के घनत्व का इशू है या कोई प्रोफेशनल इंजरी है तो इन सबसे नी-पेन होने लगता है. दर्द के कारण फिजिकल फिटनेस पर भी असर आता है और काम करने की क्षमताएं कम होने लगती हैं, इससे रुटीन लाइफ पर भी नेगेटिव असर होता है और भविष्य में बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है. एक हैरान करने वाली बात ये है कि ये पेन पुरुषों की तुलना में महिलाओं को तीन गुना ज्यादा होता है और अंतः नी-रिप्लेसमेंट की आवश्यकता पड़ती है.
पिछले पांच सालों में नी-रिप्लेसमेंट के केस काफी बढ़े हैं. ज्वॉइंट रजिस्ट्री (आईएसएचकेएस)  के ताजा आंकड़े के अनुसार, पिछले पांच साल में भारत में 35 हजार से ज्यादा नी-रिप्लेसमेंट (टीकेआर) किए गए. डाटा से ये भी सामने आया कि 75 फीसदी टीकेआर 45-70 वर्ष की महिलाओं के किए गए. एक और आंकड़ा ये है कि 97 फीसदी से ज्यादा केस यानी 33 हजार मामलों में जो टीकेआर किए गए वो ऑस्टियोअर्थराइटिस के थे.
डॉ. नंदन कुमार मिश्रा ने बताया, पार्शियल नी-रिप्लेसमेंट (अर्थ्रोलास्टी) नए केस में बहुत ही ज्यादा सफल है. भारत में पार्शियल नी अर्थ्रोप्लास्टी के लिए ज्यादातर सर्जन्स ट्रेंड नहीं होते हैं, ऐसे में अगर किसी केस में दोबारा सर्जरी भी करनी पड़ती है तो इस प्रक्रिया से नी को फिर से पूरे तरीके से रिप्लेस किया जा सकता है. नी-रिप्लेसमेंट की जो नई तकनीक आई है उसने घुटनों को और लंबे समय तक बेहतर बनाए रखने में मदद की है. पहले नी-रिप्लेसमेंट सिर्फ बुजुर्ग लोगों के कराए जाते थे लेकिन अब तकनीक बदल गई है और यंग आबादी भी अपने दर्द से छुटकारा पाने के लिए नी-रिप्लेसमेंट सर्जरी करा रही है.श्श्
ये सर्जरी बेहद सुरक्षित भी है. पार्शियल नी-रिप्लेसमेंट एक मिनिमली इनवेसिव सर्जरी है और इसमें मरीज के घुटने के ऊपर सिर्फ 2-3 इंच छोटा सा कट लगाया जाता है. इस सर्जरी में मरीज की नेचुरल बोन और टिशूज को किसी किस्म का नुकसान नहीं पहुंचता है और पूरी सर्जरी बहुत ही नेचुरल लगती है. सर्जरी कराने के 3-6 हफ्तों बाद ही मरीज मार्केट से सामान लाने और घर की थोड़ी बहुत सफाई जैसी अपनी डेली एक्टिविटीज करने लगता है. अगर अपनी कार में अपने घुटने को सही से मोड़ सकते हैं और आप ब्रेक लगाने व एक्सिलरेटर दबाने में सक्षम हैं तो सर्जरी के तीन हफ्ते के अंदर मरीज ड्राइव भी कर सकता है. मौजूदा वक्त में यंग आबादी भी घुटनों के दर्द से जूझने लगी है, ऐसे में पार्शियल नी-रिप्लेसमेंट एक बेहतर विकल्प बन गया है. इस प्रक्रिया सबसे खास बात ये है कि जिस तरह से भारतीय लोगों के बैठने की आदत होती है, उसमें इससे कोई फर्क नहीं आता. रिकवरी के बाद वॉकिंग, स्विमिंग, गोल्फिंग, बाइकिंग जैसी एक्टिविटीज आराम से की जा सकती हैं. लेकिन हां, सर्जरी के बाद घुटनों पर ज्यादा प्रेशर बनाने वाले कामों जैसे-जॉगिंग, टेनिस, जंपिंग, रनिंग और अन्य स्पोर्ट्स से बचें. आप अपने घुटने को कितना चला सकते हैं कितनी नहीं, ये डॉक्टर से जरूर कंसल्ट कर लें

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