भारत विभाजन एक त्रासदी” विषयक संगोष्ठी एवं वाद विवाद प्रतियोगिता का हुआ आयोजन

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*भारत को 15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश शासन से लगभग 200 वर्षो की गुलामी के पश्चात आजादी मिली

*विभाजन की विभीषिका का आघात लाखों भारतीयों को सहना पड़ा*

*यह विभाजन मानव इतिहास के सबसे बड़े विस्थापन में से एक है, जिसमें लगभग 20 मिलियन लोग प्रभावित हुए*

      वाराणसी। भारत को 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन से लगभग 200 वर्षो की गुलामी के पश्चात आजादी मिली। नए स्वतंत्र भारत का निर्माण हुआ, किंतु विभाजन की विभीषिका का आघात लाखों भारतीयों को सहना पड़ा। यह विभाजन मानव इतिहास के सबसे बड़े विस्थापन में से एक है, जिसमें लगभग 20 मिलियन लोग प्रभावित हुए। उन्हें अपना घर, कस्बा, शहर छोड़ना पड़ा तथा शरणार्थी के रूप में जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस विभाजन के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। अपनी आजादी का जश्न मनाते हुए एक कृतज्ञ राष्ट्र मातृभूमि के बेटे-बेटियों को भी नमन करता है। जिन्हें हिंसा के उन्माद में अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। 

        उदय प्रताप स्वायत्तशासी कालेज के केंद्रीय पुस्तकालय के सभाकक्ष में शनिवार 14 अगस्त की विभाजन की विभीषिका को स्मरण करते हुए एक संगोष्ठी/वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। संगोष्ठी एवं वाद विवाद प्रतियोगिता का शीर्षक भारत विभाजन एक त्रासदी था। संगोष्ठी का उद्घाटन प्राचार्य प्रोफेसर धर्मेंद्र कुमार सिंह के उद्बोधन से प्रारंभ हुआ। प्राचार्य ने उन वीर आत्माओं को जिन्होंने देश विभाजन के दौरान अपने प्राणों की आहुति दी श्रद्धांजलि देते हुए युवा वर्ग से अपील करते हुए कहा कि यह उनकी जिम्मेदारी है कि भारत की अखंडता बनी रहे और भारत का विखंडन दोबारा न होने पाए। संगोष्ठी संयोजिका प्रोफेसर अंजू सिंह ने कहा कि विभाजन किसी भी राष्ट्र के हित में नहीं होता है यह मानव जाति के लिए अभिशाप है। संगोष्ठी को डॉक्टर संजीव सिंह, राजेश कुमार, अंकित सिंह, सपना सिंह ने भी संबोधित किया। छात्र-छात्राओं ने वाद विवाद  प्रतियोगिता में भाग लिया एवं आकाश सिंह चंदेल, अनुराग कुमार एवं आद्या यादव को क्रमशः प्रथम द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। उन्हें पदक देकर पुरस्कृत किया गया। 

      कार्यक्रम में प्रोफेसर संजय कुमार साही, प्रोफ़ेसर नरेंद्र कुमार सिंह, प्रोफ़ेसर सुधीर साही, प्रोफेसर बनारसी मिश्रा सहित अन्य लोगो की गरिमामय उपस्थिति रही।

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