ग्रंथ ही नहीं पंथ भी है श्रीरामचरितमानस- शालिनी त्रिपाठी 

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बबुरी चंदौली । -स्थानीय क्षेत्र के बौरी ग्राम सभा में चल रही  नौ दिविशिय संगीतमय श्री रामकथा  के  छठवे दिन में कथावाचिका श्वर कोकिला मानस मयूरी शालिनी त्रिपाठी जी ने बताया कि जैसे ही जनक जी को यह पता चलता है कि हमारे घर ऋषि विश्वामित्र आए हैं तो उनके आगमन के लिए गए तो देखा की वहा दो युवक भी है तो उन्होंने पूछा कि यह कौन है जिनको देख *मैं कब बना संसारी मुझे होश ना था , मेरा निर्मल निर्मल मन था कोई दोष ना था।*

     जब भगवान राम जब मिथिला में नगर भ्रमण करने निकलते हैं तो मिथिलानिया ने कहा *दशरथ राज दुलारे नजर तोहे लग जायेगी।* तमाम प्रयास के बाद भी जब राम जी ने सर नही ऊपर किया तो इसका मर्म व्यास जी में बताया कि जो *भक्ति के नगरी में चलता है वह हमेशा सर झुका कर चलता हैं।* इसलिए प्रभु अपना सर झुका कर चल रहे हैं। 

प्रातः गुरुदेव की पूजन हेतु पुष्प लेने पुष्प वाटिका गए तो उन्होंने माली से पूछा की क्या हम आपकी फुलवारी से पुष्प ले सकते हैं, तब माली ने कहा कि *बगिया बीच जाने ना दाइयों राम जी विनती सुनो।* सुना है कि आपके चरण स्पर्श से पत्थर नारी में परिवर्तित हो गई इसलिए, पुष्प वाटिका में जब पुष्प चुनने लगे तभी वाटिका में जानकी जी गिरजा पूजन हेतु आगमन होता है । बाग विलोकन राज कुंवर दोऊ आए और उन्होंने *हमपे चलाई दियो टोना किशोर गौर सावरो सलोना ।* इस प्रकार वर्णन किया तब सीता जी राम जी के दर्शन हेतु वाटिका में आ रही हैं जैसे ही राम जी ने देखा तो जानकी जी ने अपने आखों को बंद कर लिया और गिरजा पूजन कर उन्होंने कहा *मोर मनोरथ जानहुं निके बसहू सदा उर पुर सबही के,* तब गौरा माता ने कहा कि आपकी मनोकामना पूर्ण होगी। आगे व्यास जी ने जानकी जी की विवाह के बारे में  बताया कि मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को बड़े ही धूम धाम से राजा राम सरकार का विवाहोत्सव मनाया जाता है। यह महोत्सव विशेष रूप से मिथलांचल में बहुत उत्साह के साथ मनाते हैं। त्रेता युग में पृथ्वी पर राक्षसों का अत्याचार अपनी चरम सीमा पर था।   यज्ञ की समाप्ति के पश्चात विश्वामित्र जी जनक पुरी के रास्ते से वापसी आने के समय राजा जनक के सीता स्वयंवर की उद्घोषणा की जानकारी मिली। मुनि विश्वामित्र ने राम एवं लक्ष्मण जी को साथ लेकर सीता के स्वयंवर में पधारें। सीता स्वयंवर में राजा जनक जी ने उद्घोषणा की जो भी शिव जी के धनुष को भंग कर देगा उसके साथ सीता के विवाह का संकल्प कर लिया। स्वयंवर में बहुत राजा महाराजाओं ने अपने वीरता का परिचय दिया परन्तु विफल रहे। 

अब कोई वीरता का अभिमानी नाराज न हो । मैंने जान लिया पृथ्वी वीरो से खाली हो गयी है ।।अब आशा छोड़ कर अपने अपने घर जाओ । ब्रह्मा जी ने सीता का विवाह लिखा ही नहीं है ।

इधर जनक जी चिंतित होकर घोषणा किया जिससे लखन जी नाराज हो बोले । लखन सकोप बचन जे बोले । डगमगानि महि दिग्गज डोले ।। सकल लोग सब भूप डराने । सिय हिय हरसू जनकु सकुचाने ।।  

  तभी मुनि विश्वामित्र समय शुभ जान राम को शिव धनुष भंग करने का आदेश दिया, राम जी ने मुनि विश्वामित्र जी की आज्ञा मानकर शिव जी की मन ही मन स्तुति कर शिव धनुष को एक ही बार में भंग कर दिया। धनुष भंग होते ही परशुराम का आगमन होता है उन्होंने पूछा कि किसने धनुष तोड़ा तब राम जी ने कहा कि *होइह कोऊ दास तुम्हारा।* फिर लखन से बाद विवाद के बाद राम को पहचान लिया और कहा कि *राम रमापति कर धनु लेहू मिटहू मोर संदेहू।*

   उसके उपरान्त राजा जनक ने सीता का विवाह बड़े उत्साह एवं धूम धाम के साथ राम जी से कर दिया। साथ ही दशरथ के तीन पुत्रों भरत के साथ मांडवी, लक्ष्मण के साथ उर्मिला एवं शत्रुघ्न जी के साथ श्रुतकीर्ति का विवाह भी बड़े हर्ष एवं धूम धाम के साथ कर दिया ।

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