:आज़ादी की 75 वीं पूर्व संध्या पर आधी आबादी ( महिला एवं ट्रांस व्यक्ति ) की आज़ादी के सवाल पर ‘ मेरी रातें मेरी सड़कें ‘ शीर्षक से आयोजित हुआ सांस्कृतिक कार्यक्रम। अस्सी घाट पर एकत्र हो कर महिलाओ व ट्रांसजेंडर पर हो रही हिंसा और गैर बराबरी के खिलाफ आवाज उठाई गयी। आजादी के नारों के साथ महिलाओं व ट्रांस व्यक्तियों ने अपनी गीत संगीत कविता भाषण के साथ मार्च निकालकर अनूठा आजादी का जश्न मनाया।
14 अगस्त 2022 दिन रविवार को ” मेरी राते मेरी सड़कें ” अभियान के तहत वाराणसी शहर की महिलाओं, लड़कियों व ट्रांस पर्सन्स ने अस्सी घाट पर सांस्कतिक कार्यक्रम किया व मार्च निकाला। कार्यक्रम रात 11 बजे से शुरू हुआ। इस कार्यक्रम के दौरान शामिल विभिन्न समुदायों की महिलाओं, लड़कियों व ट्रांस व्यक्तियों ने आजादी और बराबरी के गीत गाये, कविता व नृत्य के द्वारा अपने तरह के अनूठे किस्म का आयोजन किया। रात और सड़क ये दो मजबूत सन्देश देने वाले प्रतिक के रूप में इस अभियान का हिस्सा है। घाट पर आयोजित हुई सभा में वक्ताओं ने महिलाओं व ट्रांस व्यक्तियों के विरुद्ध बढ़ते अपराधो और अपराधियों पर कार्यवाही के बजाये पीड़ितों को ही कटघरे में खड़े किये जाने की प्रवृत्ति पर सवाल खड़ा किया गया। सभा के बाद आज़ादी के प्रतिक बहुलतावादी तिरंगे झंडे को हाथों में लेकर लहराते हुए एक मार्च निकाला गया।
कार्यक्रम के विषय में बताते हुए एक युवती ने बताया की आज के आयोजन से वस्तुतः हम पितृसत्तात्मक सोच को चुनौती देना चाहते हैं जो महिलाओं को सुरक्षा के नाम पर घरों में कैद करने का नियम बनाती है। उपस्थित महिलाओं ने एक स्वर से तय किया की आज की यह आधी रात की जुटान एक शुरुवात भर है। इन्ही अनूठे तरीकों से आगे समाज में बराबरी और सुरक्षा की लड़ाई लड़ी जायेगी। सभी महिलाओं ने मिलकर ये तय किया की हम आगे इन सारे मुद्दों पर समाज और सरकार से संवाद करेंगे। कार्यक्रम में शामिल महिलाऐं, लड़कियां व ट्रांस व्यक्ति हर जाति, धर्म और संगठन से परे सिर्फ अपने हक़ के लिए इकठ्ठा हुए और एक दूसरे से ये वादा किये की हम सभी मिलकर समाज की इन रूढ़ियों को तोड़ेंगे।
महिलाओं व ट्रांस के विरूद्ध होने वाली प्रत्येक घटनाओं के बाद मंत्रियों, नेताओं और समाज में पित्रसत्ता के समर्थकों द्वारा लड़कियों को ही जिम्मेदार बताने वालों को आड़े हाथों लिया गया। मार्च को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि आज पूरा देश आजादी के जश्न में डूबा है। कही परेड, कही झांकियां, कहीं आजादी की वीर गाथाएं , कही भाषण और इन सबके बीच कही एक निर्भया, शबीना, रागिनी नामों की तमाम लड़कियां घर से बाहर आजादी तलाशती हुए खतरों का सामना करते हुए त्रासद गुलाम सदृश ज़िन्दगी जीने को मजबूर है। क्या कभी महसूस किया है आपने कैसा लगता होगा जब आप कुछ बनने का सपना ले कर घर से बाहर कदम रखें और बाहर निकलते ही किसी की हैवानियत भरी नजर आपकी छाती पर तो कभी शरीर के दूसरे अंगों पर होती है ? आप उनसे बचते बचाते फिर आगे बढ़ते है और फिर वही नज़र अब आपका पीछा करती रहती है। आपके विरोध के बावजूद भी तब आप को छूने की कोशिश की जाती है और फिर, फिर तो कहानी अख़बारों में छपती है। यकीन मानिये देश में आधी आबादी इसी डर के साये में जी रही है, इसी डर के साथ वो स्कूल/कॉलेज, कार्यस्थल और यहाँ तक की कई बार घर में भी रहती है।
इस तरह की घटनाएं पूरी दुनिया में हो रही हैं ये मानते हुए सरकार, प्रशासन और समाज अपनी भूमिका से जवाबदेही से मुंह नहीं मोड़ सकते। यह दुःखद है कि केंद्रीय स्तर पर एक अभियान ‘ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ‘ जोर शोर से चल रहा है और दूसरी तरफ महिलाओं के प्रति होती घटनाओं पर उन्हें ही रात में निकलने का दोषी मानते हुए एक लम्बी सलाह की लिस्ट और धमकी थमा दी जाती है। रोमियो स्कवाड के रहते हुए ही हाथरस की दुखद घटना घटी। सोशल मीडिया पर लड़कियों महिलाओ के तस्वीरों और निजी जानकारी का दुरूपयोग का कोई संज्ञान ही नहीं लेता। बुल्ली बाई नामक ऐप पर महिला पत्रकारों सेलिब्रेटियों के तस्वीरों के साथ उनकी नीलामी के बोली लगाई जाती है। उनके मोबाईल न० सार्वजनिक कर दिए जाते है। इन शर्मनाक घटनाओं की पुनरावृत्ति कदापि नहीं होनी चाहिए।
मार्च में महिलाओं व ट्रांस व्यक्ति के समर्थन में पुरुष भी अच्छी संख्या में शामिल रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ इंदु पांडेय ने किया। रणधीर, नीति, मैत्री, इंदु पांडेय, सुजाता चक्रवर्ती , विजेता ,जाग्रति राही , मुनीज़ा खान, पारमिता, नीता चौबे,ज्योति,रवि,एकता,पूजा वर्मा,मीनाक्षी, चिंतामणि, रितेश,निशानी,प्रवीण दुबे,युद्धवेश,पीयूष,राहुल,पूर्णा,रणधीर,निहार,डॉ. आरिफ, सुरेंद्र सिंह,नंदलाल मास्टर,सलमान,करीना,सोनू,बिंदु सिंह,वंदना, राज अभिषेक,दिनेश यमन,रजत,शहजादी,कुसम, धनंजय, रामजन्म,रोहित राणा सहित बड़ी संख्या में लोगो की भागीदारी रही।
प्रेषक
डॉ इन्दु पांडेय
दख़ल संगठन
9984720797