पुत्रों की सलामती के लिए माताओं ने रखा जीवित्पुत्रिका निर्जला व्रत

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सोनभद्र। क्षेत्र में शुक्रवार को जीवित्पुत्रिका व्रत पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया गया।अपने संतान की सलामती एवं दीर्घायु के लिए माताओं ने 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत रख पूजा अर्चना किया।व्रती महिलाओं ने नदी, सरोवर के किनारे व मंदिर परिसर में पहुंच कर पूजा पाठ किया। दोपहर में महिलाओं ने जहां प्रसाद बनाकर तैयारी की तो वहीं पुरुषों ने बाजार जाकर फल फूल की खरीदारी की। शाम होते ही व्रती महिलाएं गाजे-बाजे के साथ पूजा स्थल पर पहुंची। व्रती महिलाओं के साथ उनके परिजन पूजा की थाल लेकर घाटों पर पहुंच पूजा अर्चन में भाग लिया। गोठ बनाकर बैठी महिलाओं ने गीत गाकर व जीमूतवाहन की कथा के साथ पूजा पाठ किया। इस दौरान चारों तरह भक्तिमय माहौल रहा।

आपको बता दें कि जीवित्पुत्रिका पर्व अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।इसे जितिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत संतान के रक्षा के लिए रखा जाता है। महिलाएं इस दिन संतान की सुरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य के लिए पूरा दिन निर्जल व्रत रखती हैं। इस व्रत के संबंध में भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताया था कि यह व्रत संतान की सुरक्षा के लिए किया जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जो जिमूतवाहन से जुड़ी है। सत्य युग में गंधर्वों के एक राजकुमार थे, जिनका नाम जिमूतवाहन था। वे सद्आचरण, सत्यवादी, बडे उदार और परोपकारी थे। जिमूतवाहन को राजसिंहासन पर बिठाकर उनके पिता वन में वानप्रस्थी का जीवन बिताने चले गए। जिमूतवाहन का राज-पाट में मन नहीं लगता था। वे राज-पाट की जिम्मेदारी अपने भाइयों को सौंप पिता की सेवा करने के उद्देश्य से वन में चल दिए। वन में ही उनका विवाह मलयवती नाम की कन्या के साथ हो गया।

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